दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' (Bharat Ratna Award) दिए जाने की घोषणा की गई है. केंद्र सरकार ने दिवंगत कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती से पहले उन्हें इस सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा की है. 24 जनवरी को उनकी जयंती है.
कर्पूरी ठाकुर, सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले बिहार के तीसरे व्यक्ति होंगे. उनसे पहले प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और लोकनायक जयप्रकाश नारायण को भारत रत्न दिया जा चुका है.
कर्पूरी ठाकुर की पहचान जननायक की रही है. जन-जन के नेता रहे ठाकुर को भारत रत्न सम्मान दिए जाने की घोषणा के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का धन्यवाद किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने X अकाउंट पर पोस्ट में लिखा, 'मुझे खुशी है कि भारत सरकार ने सामाजिक न्याय के प्रतीक जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है. वो भी ऐसे समय में, जब हम उनकी जन्मशती मना रहे हैं.'
आगे उन्होंने लिखा, 'दलितों के उत्थान के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता और उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक ताने-बाने पर एक अमिट छाप छोड़ी है. ये पुरस्कार न केवल उनके उल्लेखनीय योगदान का सम्मान है, बल्कि हमें अधिक न्यायसंगत समाज बनाने के उनके मिशन को जारी रखने के लिए भी प्रेरित करता है.'
सादगी के पर्याय और सिद्धांतों की प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री रहे और फिर दो बार वे मुख्यमंत्री रहे. वे पहले एक शिक्षक रहे, फिर राजनेता बने. वे स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उनकी असली पहचान ‘जननायक’ की रही है.
ये फैसला लेने के लिए मैं सरकार को बिहार के 15 करोड़ लोगों की ओर से धन्यवाद देना चाहता हूं.रामनाथ ठाकुर, कर्पूरी ठाकुर के बेटे
24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर जिला के पितौंझिया में उनका जन्म हुआ था. उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम कर्पूरीग्राम रखा गया. पिता गोकुल ठाकुर सीमांत किसान थे और नाई का काम किया करते थे.
कर्पूरी ठाकुर ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय करीब 26 महीने जेल में बिताया था. 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान, दो कार्यकाल में वे बिहार के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि अपनी सादगी के चलते उन्होंने कभी भी पद का लाभ नहीं लिया.
दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर अपना एक ढंग का घर तक नहीं बनवा पाए थे. एक बार प्रधानमंत्री रहते चौधरी चरण सिंह उनके घर गए तो दरवाजा छोटा होने के चलते उन्हें सिर में चोट लग गई. उन्होंने कहा, 'कर्पूरी, इसको जरा ऊंचा करवाओ.'
कर्पूरी का जवाब था- 'जब तक बिहार के गरीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?'
यहां तक कि 70 के दशक में जब पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों को सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी, तो भी कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया था. जब उनके निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए, तो ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे. उन्हें आश्चर्य हुआ कि 1952 से लगातार विधायक रहे कर्पूरी ठाकुर दो बार मुख्यमंत्री भी बनें, लेकिन अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया.