ADVERTISEMENT

Haryana Elections 2024: सूर्यास्त की तरफ JJP-INLD; चौटाला परिवार की 86 साल की सियासी विरासत पर सवाल!

Haryana Elections: 2024 से ठीक पहले 2019 का चुनाव भी INLD के लिए आपदा साबित हुआ था. पार्टी महज 1 सीट जीत पाई. जबकि पार्टी का वोट शेयर घटकर 2.5% पर आ गया.
NDTV Profit हिंदीसुदीप्त शर्मा
NDTV Profit हिंदी04:38 PM IST, 08 Oct 2024NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी
  • 2019 के चुनाव से पहले तक प्रदेश की दूसरी बड़ी पार्टी रही INLD हरियाणा विधानसभा चुनाव में महज 2 सीटों पर आगे चल रही है.

  • जबकि बीते चुनाव में किंगमेकर बने दुष्यंत चौटाला बादली सीट पर छठवें नंबर पर हैं. उनकी पार्टी एक भी सीट जीतने की स्थिति में नहीं है.

हरियाणा में 2024 के विधानसभा चुनाव वैसे तो कई मायनों में अहम हैं. गैर-जाट मुख्यमंत्री वाली BJP जीत की हैट्रिक लगाने के करीब है. भले ही कांग्रेस के खेमे में निराशा हो, लेकिन पार्टी के प्रदर्शन में भी सुधार है, वोट शेयर के मामले में कांग्रेस और BJP लगभग बराबर हैं.

लेकिन ये चुनाव हरियाणा में एक बड़ी सियासी करवट का भी संकेत दे रहा है. इस क्षेत्र की राजनीति में करीब 9 दशकों से सक्रिय चौटाला परिवार के कदम उखड़ते हुए नजर आ रहे हैं. ताऊ देवीलाल की विरासत को संभालने वालीं INLD और JJP बुरे तरीके से फ्लॉप रही हैं.

BJP के उभार के बाद कमजोर हुई चौटाला परिवार की सियासी जमीन

1996 में अपनी स्थापना के बाद से INLD ने 2024 के पहले 5 विधानसभा चुनाव लड़े हैं. 2014 तक पार्टी का वोट शेयर 25% के आसपास स्थिर रहा है. इस बीच पार्टी 2000-2005 के बीच सत्ता में भी रही, तब अभय चौटाला के पिता और देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री थे.

2014 के विधानसभा चुनाव में पार्टी BJP के बाद 19 सीटें और 24% वोट शेयर के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसक गई थी. ये वो समय था, जब BJP मोदी लहर में लगातार नई टेरेटरीज में एंट्री कर रही थी.

परिवार का झगड़ा और 2019 का चुनाव

लेकिन 2018 में अभय चौटाला और अजय चौटाला की तकरार में अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला ने JJP नाम से अलग पार्टी बना ली. ये INLD को बड़ा झटका था. ताऊ देवीलाल के छोटे बेटे और ओमप्रकाश चौटाला के छोटे भाई भी दुष्यंत के साथ आए. जबकि दूसरी तरफ अभय चौटाला और शिक्षक भर्ती घोटाले में बंद उनके पिता ओमप्रकाश चौटाला थे.

2019 का चुनाव INLD के लिए आपदा साबित हुआ. पार्टी महज 1 सीट जीत पाई. पार्टी का वोट शेयर घटकर 2.5% पर आ गया.

लेकिन इस चुनाव में परिवार की दूसरी पार्टी JJP किंगमेकर की भूमिका में आई. 10 सीटें जीतकर BJP को समर्थन देकर दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री बने. भले ही निजी तौर पर दुष्यंत के लिए अच्छा प्रदर्शन रहा हो, लेकिन चौटाला परिवार की दोनों पार्टियां मिलकर महज 11 सीटें जीतीं और इनका कंबाइन वोट शेयर भी 17.4% रहा. ये पिछले चुनाव के आधार पर लगभग 6.5% की गिरावट थी.

अब 2024 के चुनाव में दोनों पार्टियों के साथ-साथ चौटाला परिवार का सियासी सूरज अस्त होता नजर आ रहा है. इस चुनाव की खासियत ये भी है कि कांग्रेस भले ही दूसरे नंबर पर रही हो, लेकिन पार्टी ने अपनी जमीन को मजबूत भी किया है.

इसी तरह BJP ने भी 2024 में अपना ऐतिहासिक प्रदर्शन किया. मतलब साफ है कि बीते एक दशक की राजनीति में जाट बेल्ट में कांग्रेस (BJP गैर जाट वोटर्स में मजूबत मानी जाती है) ने INLD को नुकसान पहुंचाया है, इस तरह कांग्रेस ने गैर-जाट बेल्ट में BJP के उभार से हुए अपने नुकसान की भरपाई की है.

आजादी के पहले चौटाला परिवार और देवीलाल की राजनीति

देवीलाल का परिवार राजस्थान के बीकानेर से ताल्लुक रखता है. 20वीं सदी में चौटाला गांव आ गए, जहां 5 साल के देवीलाल के पुरखों को बड़ी जमींदारी मिली थी. मतलब उनका परिवार चौटाला का चौधरी परिवार था.

देवीलाल स्कूली जीवन से ही आजादी के आंदोलन में कांग्रेस से जुड़ गए थे. उन्होंने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान स्कूल भी छोड़ दिया और पूरी तरह आजादी की लड़ाई में जुट गए. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देवीलाल को 2 साल के लिए जेल भी जाना पड़ा.

देवीलाल के बड़े भाई साहिब राम सिहाग आजादी के पहले पंजाब प्रांत के चुनाव में विधायक भी चुने गए. इस तरह चौटाला परिवार का 20वीं सदी के चौथे दशक में सक्रिय राजनीति में आगाज हुआ. 1952 में देवीलाल पहली बार पंजाब प्रांत के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने.

देवीलाल ने तय किया हरियाणा से भारत की राजनीति तक का सफर

देश के विकास का रास्ता खेतों से होकर जाता है: देवीलाल

देवीलाल ने हरियाणा में खुद को पहले किसानों की राजनीति से स्थापित किया, इस दौरान वे कई बार जेल गए. 60 के दशक में उन्होंने खुद को अलग हरियाणा प्रदेश की मांग की बड़ी आवाज के तौर पर स्थापित किया. 1971 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. इमरजेंसी के दौरान वे 19 महीने जेल में भी रहे. 1977 में जनता पार्टी जब पूरे देश में इमरजेंसी विरोधी लहर के दौरान प्रदेश में सत्ता में आई, तब देवीलाल पहली बार मुख्यमंत्री बने.

अगले कुछ साल प्रदेश की राजनीति में देवीलाल की बंसीलाल और भजनलाल से सियासी टक्कर के रहे. देवीलाल ने बाद में चरण सिंह समेत अन्य बड़े नेताओं के साथ मिलकर लोकदल बनाया.

1987 का चुनाव हरियाणा में ऐतिहासिक रहा, जहां कांग्रेस महज 5 सीटों पर सिमट गई. देवीलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.

1989 में देवीलाल लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और राजीव गांधी के बाद बनी VP सिंह की सरकार में उपप्रधानमंत्री बने. गौर करने वाली बात है कि देवीलाल खुद भी प्रधानमंत्री पद के अहम दावेदार थे. लेकिन उन्होंने खुद ही VP सिंह का नाम बढ़ाया. वे चंद्रशेखर की सरकार में भी उपप्रधानमंत्री रहे. 1996 में उन्होंने INLD की स्थापना की.

देवीलाल के चार बेटों में से ओमप्रकाश चौटाला उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने और 2000 में मुख्यमंत्री भी बने.

कुलमिलाकर चौटाला परिवार का जो सूर्य बीते 10 साल से ढलान की तरफ था, अब उसकी रात गहरा गई है, जल्द अगर बदलाव नहीं आए, तो इस रात की नई सुबह होना काफी मुश्किल हो जाएगा.

NDTV Profit हिंदी
फॉलो करें
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT