देश की सियासत में कर्नाटक ‘इज्जत का सवाल’ बन चुका है. 2018 में येदियुरप्पा ने सरकार तो बना ली थी लेकिन विश्वासमत हासिल करने से पहले ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. कांग्रेस और JDS ने मिलकर सरकार तो बना ली और कुमारस्वामी मुख्यमंत्री भी बन गये, लेकिन ऑपरेशन लोटस ने खेल कर दिया था और येदियुरप्पा के नेतृत्व में BJP सरकार ने वापसी की थी. इस तरह सत्ता में वापसी का मौका दोनों कुनबों को है.
BJP भी सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है वहीं कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में वापसी का प्रयासरत है. JDS को भी भरोसा है कि एक बार फिर वह कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब हो सकते हैं.
BJP के लिए दक्षिण में पहली बार कमल कर्नाटक में ही खिला था. आज भी दक्षिण भारत में BJP की मौजूदगी का परचम कर्नाटक में लहरा रहा है. हिन्दुत्व कार्ड BJP को प्रतिफल देता रहा है. इसके बावजूद समुदाय की सियासत कर्नाटक में हावी है.
लिंगायत समुदाय, वोक्कालिगा समुदाय और नाथ समुदाय कर्नाटक की सियासत में अहम भूमिका निभाते हैं. लिहाजा समुदायों को साधने के लिए योगी आदित्यनाथ से लेकर येदियुरप्पा और SS कृष्णा तक को BJP आजमाती आयी है और ताजा चुनाव में भी यह कोशिश दोहरायी जाती दिख रही है.
क्षेत्रवार देखें तो कर्नाटक को छह हिस्सों में बांट सकते हैं. BJP की मजबूत पकड़ वाले क्षेत्र हैं तटीय कर्नाटक और सेंट्रल कर्नाटक जहां BJP को क्रमश: 19 में से 16 और 27 में से 21 सीटें मिली थीं. मुंबई कर्नाटक में भी BJP का प्रदर्शन अच्छा रहा था जहां उसे 44 में से 26 सीटें मिली थीं.
कांग्रेस के लिए हैदराबाद कर्नाटक और बेंगलुरू बेहतरीन प्रदर्शन वाले इलाके हैं जहां कांग्रेस को 40 में 21 और 28 में 13 सीटें मिली थीं. ओल्ड मैसूर में भी कांग्रेस त्रिकोणीय संघर्ष में दूसरे नंबर पर थी. यहां 66 में से 30 सीटें JDS और 20 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. BJP को 15 सीटें मिली थीं.
कर्नाटक में कांग्रेस और JDS अलग-अलग लड़ रहे हैं और चुनावी रणनीति के हिसाब से यही मुफीद है. हालांकि यह भी सच है कि चुनाव बाद दोनों दल साथ आ सकते हैं. त्रिशंकु विधानसभा होने पर JDS की स्थिति मजबूत हो जाती है क्योंकि कांग्रेस और BJP में से एक को वह समर्थन देने के लिए राजी कर सकता है.
हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री HD देवगौड़ा BJP को प्राथमिकता नहीं देते और उनकी प्राथमिकता कांग्रेस के समर्थन से कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने की रहती है.
JDS की ताकत ओल्ड मैसूर है. वोक्कालिगा समुदाय पर पार्टी की मजबूत पकड़ है. इसके साथ ही किसानों के बीच भी पार्टी लोकप्रिय है. इसका लाभ उसे एक बार फिर मिलेगा.
कांग्रेस के लिए अवसर है कि वह BJP के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा उठाए. ‘कट मनी सरकार’ के रूप में BJP पर हमला करने की रणनीति कांग्रेस ने बना रखी है. येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री हटा दिए जाने के बाद लिंगायत समुदाय पर कांग्रेस डोरे डाल रही है.
वहीं वोक्कालिगा समुदाय के वोटों को आकर्षित करने के लिए कांग्रेस नेता D शिवकुमार पूरी मशक्कत कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर माने जाते हैं.
2024 के आम चुनाव को देखते हुए कर्नाटक का महत्व BJP के लिए बहुत ज्यादा है. जीत BJP का मनोबल इतना ऊंचा कर देगी कि 2023 में अन्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पर भारी पड़ जाएगी. वहीं अगर नतीजे उल्टे रहे तो कांग्रेस मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में BJP को नाकों चने चबवा सकती है.
अगर ऐसा हुआ तो 2024 से पहले कांग्रेस में नयी जान फुंक जाएगी. यही वजह है कि कर्नाटक में BJP विधानसभा चुनाव में ही इतनी मेहनत कर लेना चाहती है ताकि चुनाव बाद किसी ऑपरेशन लोटस की जरूरत ही ना रह जाए.
कर्नाटक ऐसा प्रदेश है जहां BJP 36.22% वोट पाकर ही सत्ता में है. कांग्रेस और JDS की सम्मिलित ताकत सीटों में भले कम हो गयी हो लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में करीब 57% है. BJP के लिए एंटी इनकंबेंसी के बीच अपनी ताकत बढ़ाना आसान नहीं है और यह तय है कि अगर वोट नहीं बढ़े तो इसका असर सीटों पर भी पड़ेगा.
BJP के लिए यह बात जरूर महत्वपूर्ण है कि विपक्ष के जिन विधायकों को इस्तीफे दिलाकर उसने सत्ता हासिल की थी, उन्हें दोबारा टिकट देकर चुनाव जिताने में वह मोटे तौर पर कामयाब रही थी. मगर, दोबारा क्या वह ऐसा कर पाएगी?- यह बड़ा सवाल है.
मगर, इतना जरूर है कि त्रिकोणीय संघर्ष के कारण BJP के लिए सत्ता तक पहुंचने का मौका बनता है और वह इस मौके को भुनाने में भी कामयाब रहती है.
भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच चुनाव लड़ रही BJP अगर सत्ता में वापसी नहीं कर पाती है तो देशभर में भ्रष्टाचार का मुद्दा BJP के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल हो सकता है. यह खतरा बड़ा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर लगातार भ्रष्टाचार के मुद्दे को BJP के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करती रही है लेकिन सफल नहीं हो सकी है.
जाहिर है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठा का विषय बन चुके हैं.