तेरी भी जीत और मेरी भी! कर्नाटक आलाकमान के फैसले के बाद क्या सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार एक-दूसरे के प्रति यही सोच रहे होंगे? दरअसल, बड़ी जीत के बाद सबसे बड़ा सवाल यही था कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा. बरसों पहले JDS छोड़ कांग्रेस में आए सिद्धारमैया या फिर शुरू से कांग्रेस में रहे और संकटमोचक साबित हुए DK शिवकुमार?
हालांकि शुरुआत से सिद्धारमैया भारी पड़ते नजर आ रहे थे, लेकिन कर्नाटक कांग्रेस चीफ शिवकुमार ने कर्नाटक में कांग्रेस को जीत दिलाने में दिन-रात मेहनत की, उसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था.
CM की कुर्सी सिद्धारमैया को मिली, जबकि डीके शिवकुमार को डिप्टी CM पद दिया गया, साथ ही वो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी बने रहेंगे. NDTV के मुताबिक - कहा जा रहा है कि पार्टी आलाकमान ने 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों के मद्देनजर ये फैसला लिया है.
आइए समझने की कोशिश करते हैं कि CM पद के लिए क्यों सिद्धारमैया पार्टी आलाकमान की पहली पसंद बने और क्यों शिवकुमार के लिए भी ये घाटे का सौदा नहीं है?
पहली वजह: आय से अधिक संपत्ति के मामले में DK शिवकुमार इनकम टैक्स और ED की जांच का सामना कर रहे हैं, वहीं भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत CBI भी उनके खिलाफ इन्वेस्टिगेशन कर रही है. ऐसे में पूरी संभावना है कि BJP इन मामलों को लेकर कांग्रेस को घेरेगी. BJP को भ्रष्टाचार पर घेरकर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस के लिए ये स्थिति भारी पड़ती. आगे चूंकि 2024 आम चुनाव है, ऐसे में पार्टी कतई नहीं चाहेगी कि BJP को ऐसा मौका मिले.
DK के खिलाफ CBI की कार्रवाई पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी थी और इस फैसले के खिलाफ CBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी फिलहाल DK को राहत दी. लेकिन कर्नाटक CM पद को लेकर मंथन कर रही कांग्रेस के लिए ये एक रिमाइंडर जैसा था. ऐसे में फैसला सिद्धारमैया के पक्ष में गया.
दूसरी वजह: कर्नाटक में सिद्धारमैया का कद और कार्यकाल, उन्हें DK की तुलना में भारी साबित कर रहा था. प्रदेश भर के विधायकों में वे सबसे उम्रदराज और अनुभवी हैं. जैसा कि वो कुछेक बार कह चुके हैं कि शायद ये उनका अंतिम चुनाव हो. शिवकुमार आगे नहीं आते तो सिद्धारमैया ही कांग्रेस के निर्विरोध CM फेस थे. ज्यादातर विधायक भी उनके पक्ष में थे.
तीसरी वजह: जातीय समीकरण भी सिद्धारमैया को DK से आगे ले गया. शिवकुमार OBC जाति 'वोक्कालिगा' से हैं. उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से अन्य जाति समूह कांग्रेस से छिटक सकते थे. चूंकि कांग्रेस की जीत में सभी सामाजिक वर्गों की हिस्सेदारी है. ऐसे में कांग्रेस गैर-वोक्कालिगा की आवाजों को नजरअंदाज नहीं कर सकती थी. इसके उलट देखें तो वोक्कालिगा जाति समूह की पसंद DK शिवकुमार को डिप्टी CM बनाकर उनकी नाराजगी भी दूर होगी.
पहली वजह: CM पद की रेस में बेशक परिस्थितियां सिद्धारमैया के पक्ष में थीं, लेकिन आलाकमान का फैसला, DK शिवकुमार के लिए भी घाटे का सौदा नहीं है. कांग्रेस में 'एक व्यक्ति, एक पद' का नियम है, लेकिन DK 'अपवाद' साबित हुए. उन्हें इस नियम से छूट देते हुए डिप्टी CM भी बनाया जा रहा है और उनसे प्रदेश अध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद भी वापस नहीं लिया जा रहा है. 2 महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए सरकार और पार्टी, दोनों जगह उनका कद बड़ा रहेगा.
दूसरी वजह: NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, DK शिवकुमार को तो महत्वपूर्ण विभाग मिलना तय है ही, उनके करीबी विधायकों को भी कैबिनेट में जगह मिलेगी और अच्छे विभाग भी. कांग्रेस आलाकमान ने कैबिनेट में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसा फैसला लिया है.
तीसरी वजह: सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल के दौरान उन्होंने DK शिवकुमार को पहले वर्ष के लिए कैबिनेट में शामिल करने से भी इनकार कर दिया था. इससे सिद्धारमैया के निरंकुश होने की धारणा बनी. उन्होंने कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे सहित पार्टी के अन्य दिग्गज नेताओं को राज्य के मामलों से अलग कर दिया था. इस बार सिद्धारमैया के सामने DK मजबूत बनकर उभरे और खुद को साबित किया.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कर्नाटक के CM की कुर्सी के एवज में DK शिवकुमार ने कई मायनों में अच्छी सौदेबाजी की. कुछ सीनियर लीडर्स के मुताबिक, शिवकुमार शायद पहले से जानते थे कि CM की रेस में सिद्धारमैया उनसे आगे हैं, लेकिन शिवकुमार का मकसद ये तय करना था कि सरकार पूरी तरह सिद्धारमैया की मुट्ठी में न रहे, बल्कि सरकार में उनका भी मजबूत हस्तक्षेप रहे.