महाराष्ट्र विधानसभा ने मराठा आरक्षण बिल को सर्वसम्मति से पारित कर दिया, जिससे मराठा समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण मिलेगा. दशकों के रिसर्च के बाद महाराष्ट्र स्टेट सोशली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड बिल 2024 पारित होने के बाद रिव्यू के लिए भेजा जाएगा.
ये निर्णय महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा प्रस्तुत एक व्यापक रिपोर्ट के बाद लिया गया है, जो लगभग 2.5 करोड़ परिवारों को कवर करने वाले एक सर्वेक्षण पर आधारित है. ये सर्वेक्षण राज्य में मराठा समुदाय के सामने आने वाले सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की सावधानी पूर्वक पड़ताल करता है.
रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में मराठा समुदाय आबादी 28% है. उन्होंने कहा, 'ये सर्वेक्षण लगभग 2-2.5 करोड़ लोगों पर किया गया है.
बिल को पारित करने की जल्दबाजी मराठा आरक्षण के एक्टिविस्ट मनोज जारांगे द्वारा भूख हड़ताल के कारण हुई, जिन्होंने 10 फरवरी को अपना विरोध शुरू किया था. मराठा आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा के लिए एक विशेष विधानसभा सत्र बुलाने की जारांगे की लगातार मांग ने जोर पकड़ा, जिसका परिणाम हाल ही में बिल को पेश किया गया है.
नए कानून का प्राथमिक उद्देश्य मराठा समुदाय द्वारा अनुभव किए गए आर्थिक संघर्षों को संबोधित करना है. सर्वेक्षण से पता चलता है कि 21.22 % मराठा परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं, जो राज्य के औसत 17.4 % से अधिक है. इसके अतिरिक्त, 84% मराठा परिवार 'प्रगतिशील' श्रेणी में नहीं आते हैं, जिससे वे आरक्षण के लिए पात्र हैं
सर्वेक्षण में पता चला कि महाराष्ट्र में 94% किसान आत्महत्याएं मराठा परिवारों से जुड़ी हैं
जारांगे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार का 10% या 20% आरक्षण देना तब तक कोई मायने नहीं रखता जब तक ये आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी के तहत नहीं आता है.
सरकार हमें वो चीज दे रही है जो हम नहीं चाहते हैं, हम अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं, लेकिन वे हमें इसके बजाय एक अलग कोटा दे रहे हैं. उन्होंने साफ कर दिया कि उनका संघर्ष जारी रहेगा.