महाराष्ट्र ने विधानसभा चुनाव में अपना आदेश सुना दिया है. महायुति को अगले 5 साल शासन का निर्देश है. गठबंधन 236 सीटों पर आगे है या जीत चुकी है, जबकि महाविकास अघाड़ी महज 56 सीटों पर सिमट गई है.
BJP खुद 132 सीटें पर आगे है या जीत चुकी है. जबकि शिवसेना के खाते में 55 और NCP 40 सीटें आई हैं. वहीं महाविकास अघाड़ी में शामिल कांग्रेस 15, NCP (शरद पवार) 10 और शिवसेना (UBT) 20 सीटों पर सिमट गई है. वहीं SP 2 सीटों पर जीत दर्ज की है.
आखिर महायुति ने ऐसा क्या किया कि लोकसभा चुनाव में प्रदेश में पस्त होने वाला गठबंधन आज इतना चुस्त हो गया. 48% वोट शेयर के साथ ऐतिहासिक बहुमत लाने को तैयार है. वैसे तो कोई भी एक वजह चुनाव जैसी जटिल प्रक्रिया का रुख नहीं बदल सकती, लेकिन महायुति की जीत के पीछे कई अहम वजह हैं. यहां हम इन्हीं की चर्चा करने वाले हैं.
तमाम पार्टियां चुनाव की प्रक्रिया में वोटों के ध्रुवीकरण की संभावना को खोजती हैं, ताकि संभावना को जीत की वजह में बदला जा सके. महाराष्ट्र चुनाव भी सामाजिक विज्ञान के नजरिए से बेहद दिलचस्प रहा.
लोकसभा चुनाव के पहले मराठा आरक्षण के नाम पर बड़ा ध्रुवीकरण हुआ था. इसका विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे इलाकों में महायुति को तगड़ा झटका लगा था. हालांकि इन इलाकों में किसान और कृषि का मुद्दा भी अहम था. दोनों इलाकों में कुल मिलाकर महायुति महज 2 लोकसभा सीटें जीत पाई थी. मनोज जरांगे के नेतृत्व में मराठा आरक्षण के मुद्दे पर पूरे गठबंधन की तगड़ी घेराबंदी हुई थी.
लेकिन इस बार ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला. जरांगे बिल्कुल भी सक्रिय नहीं हुए. मराठा आरक्षण कोई मुद्दा ही नहीं बना. नतीजा ये हुआ कि विदर्भ और मराठवाड़ा में महायुति की एकतरफा जीत हुई. जबकि पारंपरिक तौर पर विदर्भ में कभी BJP मजबूत नहीं रही. दोनों इलाकों में कुल 108 विधानसभा सीटें हैं. कहा जा सकता है कि तमाम दूसरी रणनीतियों के साथ प्रधानमंत्री का 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा इस तरह के विभाजन को कमजोर करने में कुछ हद तक कामयाब रहा.
दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी की जातिगत जनगणना कराने और 50% की आरक्षण की सीमा खत्म करने का खास असर होता नहीं लगा. अगर होता तो 22% SC-ST आबादी होने वाले प्रदेश में महायुति की इतनी बुरी दुर्गत नहीं होती.
वैसे इस चुनाव की शुरुआती पिच में धार्मिक ध्रुवीकरण इतना बड़ा मुद्दा नहीं था. लेकिन मौलाना सज्जाद नोमानी ने एक वीडियो जारी कर मुस्लिमों से महाविकास अघाड़ी को वोट देने की अपील की. उन्होंने यहां तक कह दिया कि जो लोग गठबंधन को वोट नहीं करेंगे उनका बहिष्कार किया जाएगा.
बस यहीं से धार्मिक बयानबाजी शुरू हो गई. BJP समर्थकों के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तक इसे 'वोट जिहाद' का नाम दे दिया. कई हिंदू साधु-संतों ने भी इसके विरोध में वीडियो जारी किए. स्वामी हंसराज ने एक वीडियो में हिंदुओं को 'एक हैं तो सेफ हैं' का नारा तक याद दिलाया. माना जा रहा है कि इस पूरे प्रकरण से हिंदू ध्रुवीकरण को बल मिला.
जितना जनसमर्थन महायुति को मिला है, उससे उन्हें महिला वोट बैंक के एक बड़े हिस्से के समर्थन की बात साफ हो रही है. मतलब महिलाओं के लिए चलाई गई योजनाएं कारगर रही हैं. 50% वोट को कंसोलिडेट कर वोट बैंक में बदलना किसी भी चुनाव में अहम रणनीति साबित हो सकती है.
तमाम विश्लेषकों समेत खुद एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में माना है कि माझी लाडकी बहीण योजना बड़ी गेमचेंजर साबित हुई है. शिंदे सरकार इस योजना के तहत लाभार्थियों को 1,500 रुपये/महीना देती रही है. संकल्प पत्र में इसे 2,100 रुपये करने का वायदा किया गया है. प्रधानमंत्री भी अपनी आधा दर्जन से ज्यादा रैलियों में इस योजना के साथ-साथ लखपति दीदी जैसी महिला फोकस योजनाओं पर खास फोकस करते रहे.
नतीजों में बढ़त बनाने के साथ ही एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें शिंदे ने जीत की वजह बताते हुए कहा कि डबल इंजन की सरकार से प्रदेश में विकास कार्यों को युद्ध स्तर की गति मिली और इसका चुनाव में भी लाभ मिला.
36 सीटों वाली मुंबई में इंफ्रा बड़ा मुद्दा है. महाराष्ट्र सरकार ने शहर में कोस्टल रोड, अटल सेतु, एक्वा मेट्रो लाइन, नवी मुंबई एयरपोर्ट जैसे बड़े इंफ्रा प्रोजेक्ट्स पर काम पूरा किया है. चाहे अमित शाह हों या प्रधानमंत्री मोदी या फिर शिंदे और फडणवीस, सबने अपने प्रचार के दौरान मुंबई में इन कार्यों का बखूबी प्रचार किया है.
लेकिन इंफ्रा के कार्य मुंबई तक ही सीमित नहीं रहे, शिंदे सरकार के दौरान पुणे में मेट्रो प्रोजेक्ट्स को तेजी मिली. साथ ही मुंबई से नागपुर तक समृद्धि एक्सप्रेसवे का शुभारंभ हुआ, जो ठाणे, नासिक, औरंगाबाद, जालना और नागपुर जैसे जिलों से निकला है.
BJP और महायुति का कैंपेन ज्यादातर पॉजिटिव चीजों पर रहा. चाहे इंफ्रा डेवलपमेंट की बात हो या फिर महिलाओं को अतिरिक्त आर्थिक सशक्तीकरण की, महायुति ने अपने प्रचार में अलग-अलग वर्गों के विकास के लिए क्या किया जा सकता है, इसी पर फोकस ज्यादा रखा. वैचारिक स्तर पर भी महायुति में ज्यादा साफगोई रही और अगर आखिर में हिंदुत्व कार्ड को छोड़ दिया जाए, तो किसी विभाजन पर खास फोकस नहीं दिखा.
दूसरी तरफ MVA के प्रचार में तीनों सहयोगियों के बीच एक साझा वैचारिक जमीन की कमी दिखाई दी. ना ही ठोस मुद्दों पर गठबंधन राय बना पाया. ऊपर से शिवसेना (UBT) को लेकर जो वैचारिक टकराव बना हुआ है, वो तो बरकरार ही रहा. उद्धव ने भी मुंबई जैसे अहम इलाके में विकास विरोधी पॉलिटिक्स करने की कोशिश की.
विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे इलाके कृषि बहुल हैं. दोनों इलाकों में कर्ज माफी, फसल का सही भाव और किसानों का आर्थिक सशक्तीकरण बड़ा मुद्दा है. इन दोनों क्षेत्रों में मिलाकर विधानसभा करीब 40% सीटें हैं. BJP ने अपने संकल्प पत्र में इस मुद्दे से जुड़ी कई अहम घोषणाएं कीं. यही वजह रही कि विदर्भ और मराठवाड़ा में लोकसभा चुनाव के करारे झटके के बावजूद विधासनभा चुनाव में महायुति एकतरफा प्रदर्शन करने में कायमाब रही.
महायुति ने 15% तक नमी वाले सोयाबीन की खरीद का वायदा किया. सोयाबीन खरीद के लिए MSP 6,000 रुपये क्विंटल रखा जाएगा. इसके अलावा भावांतर योजना को भी लागू करने की बात संकल्प पत्र में की गई. महायुति ने किसानों की कर्ज माफी के साथ-साथ किसान सम्मान निधि को बढ़ाकर 25,000 करने का वायदा भी अपने मेनिफेस्टो में शामिल किया है.