ADVERTISEMENT

Karnataka Elections 2023: कर्नाटक में क्यों दूध पर आया राजनीतिक उबाल?

नंदिनी स्थानीय स्तर पर बेहद लोकप्रिय मिल्क ब्रैंड है जो कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन (KMF) से जुड़ा है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी07:46 PM IST, 11 Apr 2023NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
NDTV Profit हिंदी
Follow us on Google NewsNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदीNDTV Profit हिंदी

कर्नाटक में 'नंदिनी बनाम अमूल' (Nandini Vs Amul) की लड़ाई सियासी दलों को बहुत रास आ रही है. चुनावी दंगल में कर्नाटक (Karnataka) की अस्मिता से जोड़कर इस लड़ाई को वोट बटोरने का हथकंडा बना दिया गया है.

नंदिनी स्थानीय स्तर पर बेहद लोकप्रिय मिल्क ब्रैंड है जो कर्नाटक को-ऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन (KMF) से जुड़ा है. वहीं अमूल गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) से जुड़ा देशभर में लोकप्रिय मिल्क ब्रैंड है. कर्नाटक बनाम गुजरात बनाकर भी इस कारोबारी स्पर्धा को पेश किया जा रहा है ताकि चुनावी लाभ लिया जा सके.

कर्नाटक में घर-घर पहुंचा ब्रैंड नंदिनी

नंदिनी मिल्क पार्लर का हेडक्वार्टर बेंगलुरू में है. ये 1955 में अस्तित्व में आया था. मगर, 1984 के बाद ही ये लोकप्रिय हुआ जब कर्नाटक सरकार KMF के सहयोग के लिए खड़ी हुई. सब्सिडी और इंसेंटिव पाकर KMF ने अपना विस्तार किया. 21वीं सदी के पहले दशक में इस विस्तार ने जोर पकड़ा. न सिर्फ दूध उत्पादकों को फायदा हुआ बल्कि ग्राहकों के लिए भी ये वरदान साबित हुआ.

देश में सबसे सस्ता दूध बेचने वाला ब्रैंड बन चुका है नंदिनी. इसके बावजूद ये देशव्यापी ब्रैंड नहीं बन सका है तो इसकी वजह भी सब्सिडी और इंसेंटिव ही है जो कर्नाटक के बाहर अन्य प्रदेशों में नंदिनी को उपलब्ध नहीं है. कारोबारी भाषा में कह सकते हैं कि संरक्षणवाद ही नंदिनी ब्रैंड के विस्तार में बाधा भी बन रहा है.

क्यों चर्चा में है नंदिनी

नंदिनी, चर्चा में है क्योंकि वो कर्नाटक की पहचान बन चुका है. वो चर्चा में है क्योंकि राजनीति का विषय बन चुका है. अमूल ब्रैंड से स्पर्धा ने भी उसे चर्चा में ला दिया है. कर्नाटक की अस्मिता का ब्रैंड बनाम गैर कर्नाटक ब्रैंड की लड़ाई ने भी नंदिनी को चर्चा का केंद्र बना दिया है. एक तरह से राष्ट्रवाद का लघुस्वरूप कर्नाटक में देखने को मिल रहा है जिसे क्षेत्रवाद भी कह सकते हैं और नंदिनी इस क्षेत्रवाद का गान बन चुका है.

कर्नाटक की सियासत में नंदिनी की लोकप्रियता का चुनावीकरण होता दिख रहा है. कांग्रेस और JDS नंदिनी ब्रैंड के झंडाबरदार नजर आ रहे हैं तो BJP भी खुद को अमूल ब्रैंड मार्का साबित न कर दिया जाए, इसके लिए प्रयत्नशील है. इसका कारण ये है कि KMF का ओल्ड मैसूर के इलाकों जैसे माण्डया, मैसूरु, रामनगर और कोलार के अलावा सेंट्रल कर्नाटक में देवांगिर में जबरदस्त प्रभाव है. 120 से 130 विधानसभा क्षेत्रों तक KMF की मजबूत पकड़ है.

नंदिनी के साथ तो कर्नाटक के साथ?

वोक्कालिगा समुदाय ही नहीं लिंगायत समुदाय तक में KMF की पहुंच और पकड़ है. लिहाजा BJP को अपने लिंगायत समुदाय की नाराजगी का डर भी सता रहा है और JDS और कांग्रेस वोक्कालिगा समुदाय को कर्नाटक अस्मिता से जोड़कर नंदिनी ब्रैंड की आवाज बुलंद कर रहे हैं. नेताओं के बयान ऐसे आ रहे हैं मानो जो नंदिनी के साथ खड़ा है वो कर्नाटक के साथ है और बाकी कर्नाटक के खिलाफ.

ये स्थिति क्यों बनी? दरअसल बीते दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक रैली में कहा था, 'अगले तीन साल के भीतर अमूल और नंदिनी मिलकर कर्नाटक के हर गांव में प्राइमरी डेयरीज का संचालन करेंगे.' बस ये बात तूल पकड़ती चली गयी. इस बयान को कर्नाटक में अमूल ब्रांड की वकालत और उसे स्थापित करने की कोशिश के तौर पर देखा जाने लगा. सियासत को अक्सर ऐसा बंटवारा सूट करता है.

नंदिनी बनाम अमूल

अमूल ब्रैंड देशभर में मशहूर है, मगर कर्नाटक में ये अपने पैर नहीं फैला सका है तो इसकी वजह है नंदिनी. कीमत के मामले में नंदिनी को हरा पाना अमूल जैसे ब्रैंड के लिए भी मुश्किल है. अगर कीमत पर गौर करें तो मार्च के शुरू में नंदिनी ब्रैंड दूध 50 रुपये लीटर मिल रहा था. आधे लीटर दूध की कीमत 24 रुपये थी. हालांकि, अब इसे परोक्ष रूप से बढ़ा दिया गया है. मात्रा घटा दी गयी है और कीमत स्थिर रखा गई है. एक लीटर का पैकट अब 900 मिली लीटर का और आधे लीटर का पैकेट अब 450 मिली लीटर का हो चुका है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नंदिनी निर्मित टोन्ड मिल्क 39 रुपये प्रति लीटर मिल जाता है. इसमें 3% वसा और 8.5% SNF (सॉलिड्स नॉट फैट) होता है. इसके विपरीत अमूल के टोन्ड मिल्क की कीमत 54 रुपये है.

अमूल दूध नई दिल्ली में जहां 66 रुपये प्रति लीटर मिलता है और गुजरात में 64 रुपये प्रति लीटर तो नंदिनी एक लीटर दूध की कीमत 50 रुपये वसूल करती है. यही कारण है कि अमूल ब्रैंड की पहुंच ऑन लाइन मार्केट या ई-कॉमर्स के जरिए शहरी क्षेत्रों तक ही हो पायी है. अब सियासत का मोहरा बन जाने के बाद अमूल के लिए मुश्किलें और भी बढ़ गयी हैं. हालांकि अमूल की ओर से लगातार सफाई दी जा रही है कि वो नंदिनी के साथ मिलकर कारोबार करना चाहता है, लड़कर नहीं.

कर्नाटक में क्यों सस्ता है दूध?

KMF को कर्नाटक सरकार की ओर से सब्सिडी मिलती है. न सिर्फ सब्सिडी मिलती है बल्कि इंसेंटिव के रूप में भी दूध उत्पादकों एकमुश्त रकम मिलती है. 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री BS येदियुरप्पा ने KMF को 2 रुपये प्रति लीटर का इंसेंटिव दिया था. ये किसानों से खरीदी जाने वाले दूध की रकम के अतिरिक्त रकम हुआ करती थी. 5 साल बाद सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस इंसेंटिव को दोगुना कर दिया. तीन साल बाद कांग्रेस ने इस इंसेंटिव को बढ़ाकर 5 रुपये प्रति लीटर कर दिया. दूध उत्पादकों को कर्नाटक सरकार की ओर से दी जाने वाली इंसेंटिव की राशि बढ़कर 1,200 करोड़ रुपये हो चुकी है.

सब्सिडी और इंसेंटिव के कारण कर्नाटक में सस्ते दूध को बढ़ावा मिला. चाहे सरकार किसी भी पार्टी की रही हो ये सब्सिडी जारी ही नहीं रही, बल्कि बढ़ती रही. इसने बाजार को इस कदर अपने दायरे में ले लिया कि अमूल जैसा ब्रैंड भी कर्नाटक में नंदिनी ब्रैंड को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है.

कर्नाटक में जहां 2007-08 में 58.61 लाख किलोग्राम प्रति दिन दूध का उत्पादन हुआ करता था. वहीं ये 2014-15 में बढ़कर 81.66 लाख किलोग्राम प्रति दिन हो गया. 2021-22 में KMF दूध उत्पादन में केवल गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) से ही पीछे था जो 263.66 लाख किलोग्राम प्रति दिन उत्पादन कर रहा था. नंदिनी और अमूल मिलकर देश में डेयरी सहकारी समूहों के माध्यम से कुल खरीद का 60% हिस्सा खरीद रहे थे. हालांकि, अमूल की पहुंच देशव्यापी है जबकि नंदिनी, कर्नाटक और आसपास के राज्यों तक सिमटा ब्रैंड है.

कर्नाटक में नंदिनी का विशाल नेटवर्क है. 22 हजार गांवों में 24 लाख दूथ उत्पादक इससे जुड़े हैं. कुल 14 हजार को-ऑपरेटिव सोसायटी इससे जुड़ी हैं. ये सोसायटी सीधे दूध उत्पादक किसानों से खरीद करती हैं. प्रति दिन 84 लाख लीटर दूध की खरीद होती है. इन तथ्यों के बावजूद बड़ा सवाल यही है कि क्या कभी नंदिनी कर्नाटक से बाहर भी इतनी ही प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा पाएगी?

NDTV Profit हिंदी
फॉलो करें
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT