लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए NDA उम्मीदवार ओम बिरला (Om Birla) बुधवार को ध्वनिमत से सदन के स्पीकर चुने गए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उन्हें आसंदी तक छोड़ने आए. 18वीं लोकसभा का स्पीकर बनने के साथ ही ओम बिरला ने एक इतिहास रच दिया और लगातार दूसरे कार्यकाल में स्पीकर चुने जाने वाले पहले सांसद बने.
सदन की कार्यवाही शुरू होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा था, जबकि विपक्ष की ओर से कांग्रेस नेता, के सुरेश उम्मीदवार थे.
प्रधानमंत्री ने ओम बिरला को बधाई देते हुए कहा कि उनका अनुभव देश के काम आएगा. वहीं राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने कहा, 'हमें विश्वास है कि आप विपक्ष की आवाज दबने नहीं देंगे.'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन को संबोधित करते हुए कहा कि ओम बिरला जीतकर आए और इतिहास बनाया. साथ ही पीएम मोदी ने ओम बिरला की मुस्कान की तारीफ भी की.
PM मोदी ने कहा, '17वीं लोकसभा की प्रोडक्टिविटी 97% रही है,जो कि 25 साल में सबसे ज्यादा है. कोरोना जैसे मुश्किल वक्त में आपने हर सांसद से निजी तौर पर उनका हाल पूछा.' उन्होंने कहा,
कोरोना काल में आपने संसद का काम रुकने नहीं दिया
कोरोना के कठिन काल में भी हम काम कर पाए
कोरोना काल में भी सदन ने 170% प्रोडक्टिविटी दी
आपने सदन की गरिमा के लिए कड़े फैसले भी लिए
इस साहस पूर्ण काम के लिए आपका अभिनंदन
नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ओम बिरला को दोबारा स्पीकर चुने जाने पर बधाई दी. उन्होंने कहा, 'ये हाउस देश की जनता की आवाज है. सरकार के पास राजनीतिक ताकत है, लेकिन विपक्ष भी जनता की आवाज है. ये जरूरी है कि जनता के बीच विश्वास बना रहे.' उन्होंने कहा,
ये सदन भारत के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है
विपक्ष भी देश के लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करता है
सदन में विपक्ष की आवाज को भी सुना जाना चाहिए
मुझे भरोसा है कि आप हमारी आवाज को जरूर सुनें
विपक्ष की आवाज को दबाकर सदन चलाना अलोकतांत्रिक तरीका है
विपक्ष की आवाज को सुनकर आप देश के संविधान की रक्षा करेंगे
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने कहा, 'आपके पास 5 साल का अनुभव है. आपको पुराने और नए सदन का अनुभव है. हमें उम्मीद है कि विपक्ष की आवाज नहीं दबाई जाएगी.' अखिलेश ने कहा,
निष्पक्षता इस महान पद की महान जिम्मेदारी
आप लोकतांत्रिक न्याय के मुख्य न्यायधीश की तरह बैठे हैं
हमारी अपेक्षा है कि किसी भी जनप्रतिनिधि की आवाज न दबाई जाए
निष्कासन जैसी कार्रवाई करके सदन की गरिमा को ठेस न पहुंचाया जाए
आपका अंकुश विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष पर भी रहना चाहिए
शिवसेना (UTB) सांसद अरविंद सावंत ने कहा- 'देश के कई कानून तब पास हुए, जब हम निष्कासित थे. मणिपुर में घटना होती है, किसी के आंसू नहीं निकलते. किसान आंदोलन करते हैं, किसी को कष्ट नहीं होता. बेरोजगार सड़कों पर धूमते हैं, लेकिन किसी को दर्द नहीं होता. हम जो दीवारे खड़ी कर रहे हैं, ये दीवारें टूटनी चाहिए.'
वहीं, शिरोमणि अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने कहा- हम उम्मीद करेंगे कि आप छोटी पार्टियों को भी उतना ही मौका देंगे, जितना बड़ी पार्टियों को देते हैं. मेरा अनुरोध है कि आप पहले से ज्यादा मौका दें.'
बता दें कि अकाली दल पंजाब में कभी NDA का हिस्सा हुआ करता था, जो बाद में अलग हो गया. मोदी 1.0 में और फिर मोदी 2.0 सरकार में हरसिमरत कौर को केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बनाया गया था. लेकिन सितंबर 2020 में कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने मोदी 2.0 कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था.
लोकसभा स्पीकर ओम बिरला के भाषण के दौरान विपक्षी सांसद अपनी बात रखने के लिए हो-हल्ला करने लगे. इस पर स्पीकर बोले- 'जब स्पीकर सीट से खड़ा हो जाता है, तब सदस्यों को बैठ जाना चाहिए. ये मैं पहली बार कह रहा हूं, दोबारा नहीं कहना पड़े.' विपक्ष के सांसदों के भाषण के बाद एक बार फिर स्पीकर ओम बिरला ने अपनी बात रखी.
उन्होंने कहा, 'PM मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार NDA की सरकार बनी है. जनता की आकांक्षाएं अपेक्षाएं बढ़ी हैं, इसलिए हमारा दायित्व है कि हम उन्हें पूरा करें. लोकसभा में पक्ष-विपक्ष की मर्यादित सहमति होनी चाहिए. सार्थक चर्चा और संवाद हो और विकसित भारत के संकल्प के साथ काम हो.'
ओम बिरला ने कहा, '281 नए सांसद चुन कर यहां पहुंचे हैं. हमारी युवा पीढ़ी संविधान को जाने, समझे. मेरी कोशिश रहेगी कि मैं सभी सदस्यों को पर्याप्त समय दूं. सभी पक्षों के विचार यहां आने चाहिए.'
उन्होंने कहा, 'हम अलग-अलग विचारधारा से चुनकर आते हैं, लेकिन देश सबसे पहले है. जिन मुद्दों पर असहमति होगी, आप उसे व्यक्त करें, चर्चा में सुझाव भी दें. पक्ष और विपक्ष मिलकर सदन चलाता है. मेरी अपेक्षा रहेगी कि आप सब निर्बाध रूप से सदन चलाएं.'
स्पीकर ने कहा, 'मैं कभी सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करना नहीं चाहता, लेकिन जब नियम तोड़े जाते हैं तो कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं. विरोध को संसदीय मर्यादा के तहत दर्ज कराएं.'