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राजस्थान का राजनीतिक ऊंट करवट बदलेगा या टूट जाएगा रिवाज?

कांग्रेस की वापसी होगी, सरकार बदलने का रिवाज बदलेगा या फिर दस्तूर जारी रहेगा- इस बारे में अभी से कोई कुछ बताने की स्थिति में नहीं है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी01:48 PM IST, 12 Jun 2023NDTV Profit हिंदी
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Rajasthan Politics. राजस्थान की पहचान है ऊंट. ऊंट किस करवट बैठेगा- बहुत लोकप्रिय मुहावरा भी है. विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में राजस्थान के लोग यह बता पाने में समर्थ नहीं हो रहे हैं कि राजस्थान में ऊंट किस करवट बैठेगा. कांग्रेस की वापसी होगी, सरकार बदलने का रिवाज बदलेगा या फिर दस्तूर जारी रहेगा- इस बारे में अभी से कोई कुछ बताने की स्थिति में नहीं है.

राजस्थान एक ऐसा प्रदेश है जिस बारे में न BJP आश्वस्त है न ही कांग्रेस. हर बार सरकार बदलने वाले इस प्रदेश में जीत की बारी अब BJP की है. लेकिन, वास्तव में BJP खुद अपने परफॉर्मेंस को लेकर आश्वस्त नहीं है. BJP, प्रदेश में नेतृत्व या चेहरा नहीं तय कर सकी है जिसे आगे रखकर चुनाव लड़ा जा सके. वहीं, कांग्रेस दो स्पष्ट नेतृत्व के बीच लड़ाई में फंसी है.

कांग्रेस-BJP दोनों दलों में नेतृत्व का संकट

कांग्रेस और BJP दोनों ही दलों का आलाकमान नेतृत्व के संकट का हल ढूंढ़ने में दिलचस्पी दिखाने में पीछे रहे हैं. लेकिन, कर्नाटक में विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद अब दोनों ही दलों की यह प्राथमिकता बन गयी लगती है. जो दल सबसे पहले नेतृत्व का संकट हल कर पाएगा, उसके लिए संभावना अधिक रहेंगी.

2018 के विधानसभा चुनाव में BJP पर कांग्रेस को 1% से कम वोटों की बढ़त थी. कुछ महीने बाद हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP को 12% से ज्यादा की बढ़त हासिल हो गयी. हालांकि रोचक तथ्य ये भी है कि बीते साढ़े चार साल में हुए दो तिहाई उपचुनाव कांग्रेस ने जीते हैं. इस वक्त राजस्थान में BJP के 22 सांसद रह गये हैं. ये स्थिति राजस्थान के बारे में राजनीतिक विश्लेषकों को कोई स्पष्ट निष्कर्ष निकालने से रोकती है.

2018 के विधानसभा चुनाव में एक नारा बहुत उछला था- मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं. जाहिर है ये नारा BJP समर्थकों की ओर से उछाला गया था. BJP की हार में इस नारे का बड़ा योगदान था. मगर, राजस्थान गंवाने के बाद भी BJP ने कुछ सबक सीखा हो, ऐसा नहीं लगता. वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) उपेक्षित पड़ी रहीं. BJP में कई गुट बन गये. इसके बावजूद कभी गुटों को जोड़ने की पहल BJP में नहीं दिखाई दी.

दो विधानसभाओं के चुनाव नतीजे और वोट प्रतिशत का अध्ययन ये बताता है कि राजस्थान में कांग्रेस लगातार मजबूत हुई है. मगर, लोकसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेरने वाले साबित हुए हैं. लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें कांग्रेस हार गयी थी. BJP को 61% वोट मिले जबकि कांग्रेस 34% वोट ही पा सकी. राजस्थान के 55% आदिवासियों ने BJP के लिए वोट किया जबकि कांग्रेस के लिए 40% लोगों ने मतदान किया.

गुटबाजी खत्म करना है चुनौती

कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद से मध्य प्रदेश और राजस्थान BJP में हलचल तेज है. आलाकमान, पार्टी के तमाम धड़ों को जोड़ने की जरूरत को संज्ञान में ले रहा है. मगर, राजस्थान BJP के लिए ये सवाल बड़ा है कि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा या फिर कोई नया चेहरा सामने आएगा. जिस तरह से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने बीते दिनों ये खुलासा किया कि संकट की घड़ी में वसुंधरा राजे के समर्थन से ही उनकी सरकार बनी थी, उस कारण BJP की अंतर्कलह बढ़ गयी जो गहलोत का वास्तव में मकसद था. BJP का नेतृत्व वसुंधरा को नियंत्रण में रख पाता है या नहीं, इस पर निश्चित रूप से BJP का सियासी भविष्य निर्भर करेगा.

कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट (Sachin Pilot) के बीच खुले संघर्ष का सामना कर रही है. सचिन पायलट खुद कांग्रेस सरकार के ही खिलाफ सड़क पर हैं. पार्टी आलाकमान किसी एक का समर्थन या विरोध नहीं कर पा रहा है. ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट ही सत्ता और विपक्ष बन गये हैं. कांग्रेस और BJP में फर्क ये है कि अशोक गहलेत अपने दम पर चुनाव की तैयारी शुरू कर चुके हैं. सचिन पायलट भी उसी राह पर हैं. मगर, BJP या BJP का स्थानीय नेतृत्व अब तक चुनाव मैदान में कमर नहीं कस सका है.

जोश में है कांग्रेस

राजस्थान में ओल्ड पेंशन स्कीम और हेल्थ गारंटी बड़े नारे हैं जिन्हें सामने रखकर अशोक गहलोत चुनावी तस्वीर सजा रहे हैं. कर्नाटक की तरह आलाकमान की ओर से लोककल्याणकारी नीतियों को अमली जामा पहनाने वाली गारंटी ही चुनाव का मुद्दा होंगे. हालांकि BJP हर मोर्चे पर अशोक गहलोत सरकार को विफल करार दे रही है. मगर, BJP को अब चेहरा सामने लाना होगा ताकि समय रहते राजनीतिक संघर्ष को और तेज किया जा सके.

जातीय समीकरण पर भी है नजर

राजस्थान की सियासत में गुर्जर महत्वपूर्ण हैं. किसानों और आदिवासियों की भी भूमिका है. अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री बनाकर BJP ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. सतीश पूनिया, अश्विनी वैष्णव, ओम बिड़ला, गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे नेता हर वर्ग और समुदाय को प्रतिनिधित्व देते हुए BJP को मजबूत कर रहे हैं.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि उनकी सरकार में आम तौर पर संतोष है. कहीं कोई एंटी इनकंबेंसी नहीं है. 9 में से 6 उपचुनावों में जीत को गहलोत सबूत के तौर पर पेश करते हैं. मगर, दावे और सच्चाई में फर्क होता है. आम मतदाता जब अपनी जुबान से या फिर चुनाव में वोट देकर ही वर्तमान सरकार के बारे में अपना मत देता है. ऐसे में अशोक गहलोत की सरकार को दोबारा सत्ता में लाने की कोशिश दिखेगी या फिर रिवाज कायम रहेगा कि पिछली बार कांग्रेस, तो इस बार BJP. नतीजे चाहे जो हों दिलचस्प चुनाव का गवाह बनने जा रहा है राजस्थान- इसमें कोई संदेह नहीं.

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