देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की दिशा में सरकार आगे बढ़ गई है. आज कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी दे दी है. सितंबर में गठित और पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल की रिपोर्ट को कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है.
अपनी रिपोर्ट में रामनाथ कोविंद पैनल ने वन नेशन वन इलेक्शन के ढेरों फायदे गिनाए हैं. पैनल का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से 'चुनावी प्रक्रिया (और) शासन में बदलाव आएगा' और 'संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल होगा'. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों सहित 32 दलों और प्रमुख न्यायिक हस्तियों ने इसका समर्थन किया है.
पैनल ने कहा कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के कई फायदे हैं, ये मतदाताओं के लिए चुनावी प्रक्रिया को आसान बनाता है. इससे अर्थव्यवस्था में स्थिरता आएगी. इससे व्यवसायों और कॉरपोरेट फर्म्स को नीतियों में बदलाव का डर नहीं रहेगा, उनको फैसले लेने में आसानी होगी.
पैनल का कहना हैकि सभी तीन स्तरों - लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और पंचायतों के लिए चुनाव कराने से 'प्रवासी श्रमिकों के मतदान के लिए छुट्टी मांगने के कारण सप्लाई चेन और प्रोडक्शन साइकल में व्यवधान से बचा जा सकेगा.
इससे पहले मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने के मौके पर सरकार की उपलब्धियों की लिस्ट जारी की गई थी. इस दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इसी कार्यकाल में एक देश, एक चुनाव लागू करेंगे.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भी PM मोदी ने अपने भाषण में भी एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में समिति बनाई गई है, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है. इस कार्यकाल में एक देश एक चुनाव होगा.
रामनाथ कोविंद पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे. इसके लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता होगी, लेकिन संवैधानिक संशोधन के लिए राज्यों की ओर से किसी सत्यापन की जरूरत नहीं होगी.
हाई लेवल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 1951 और 1967 के बीच में भी चुनाव एक साथ कराए गए थे.
इन सिफारिशों के तहत, इसे दो चरणों में लागू किया जाएगा. पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाया जाएगा. दूसरे चरण में लोकल बॉडी इलेक्शन जैसे- पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव होंगे, जो कि आम चुनाव के 100 दिनों के बाद कराए जाएंगे. सभी चुनावों के लिए एक कॉमन इलेक्टोरल रोल होगा. इसे लेकर पूरे देश में चर्चा की जाएगी. इसे लागू करने के लिए एक इंप्लीमेंटेशन ग्रुप का गठन किया जाएगा
पहले चरण में लोकसभा के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव हों
दूसरे चरण में लोकसभा-विधानसभा के साथ स्थानीय निकाय चुनाव हों
पूरे देश मे सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए
सभी के लिए वोटर आई कार्ड भी एक ही जैसा होना चाहिए
पैनल ने मार्च में अपनी रिपोर्ट पेश की थी. अपनी रिपोर्ट में पैनल ने कहा कि उसने अपना फैसला देने से पहले दुनिया के कई देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन किया था, और अर्थशास्त्रियों और चुनाव आयोग से सलाह मशवरा भी किया था. हाई लेवल कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 1951 और 1967 के बीच में भी चुनाव एक साथ कराए गए थे.
कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां शुरू से ही इसका विरोध करती आईं हैं. उनका कहना है कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' वर्तमान संविधान के तहत संभव नहीं है और ये सरकार की सिर्फ एक 'नौटंकी' है जो पानी का परीक्षण करने के लिए 'गर्म हवा के गुब्बारे छोड़ती' रहती है.