बांग्लादेश में 5 बार की PM शेख हसीना को जिस तरीके से देश छोड़ना पड़ा, ऐसा शायद उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा. महज डेढ़ महीने में हसीना अर्श से फर्श पर आ गईं. वैसे अनहोनी की सुगबुगाहट कुछ दिन से चर्चा में थी. लेकिन NDTV को मिली जानकारी के मुताबिक सेना ने आज हसीना को देश छोड़ने के लिए महज 45 मिनट का वक्त दिया था. जिसके बाद वे आनन-फानन में बांग्लादेश से निकलीं.
बांग्लादेश की राजनीति में बीते 35 साल में शेख हसीना का जितना जबरदस्त दबदबा रहा, उसके चंद दिनों में खत्म होने की कहानी हैरान करने वाली है.
शेख हसीना का जन्म शेख मुजीब-उर-रहमान के घर 1947 में हुआ था. उनके पिता को बांग्लादेश का संस्थापक कहा जाता है, जो 1971 में आजादी की जंग के हीरो और देश के पहले राष्ट्रपति थे.
1975 में सेना के कुछ मिड लेवल ऑफिसर्स ने बांग्लादेश में तख्तापलट को अंजाम दिया. इसमें मुजीब-उर-रहमान, उनकी पत्नी और ज्यादातर पारिवारिक सदस्यों की हत्या कर दी गई. उस वक्त शेख हसीना अपनी बहन शेख रिहाना के साथ यूरोप गई थीं, ऐसे में वे बच गईं.
इस दौरान शेख हसीना ने पहले पश्चिम जर्मनी के बांग्लादेश दूतावास में शरण ली, उसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें शरण दी और अगले 6 साल वे नई दिल्ली में रहीं.
जिया-उर-रहमान के राज में 1981 में उन्हें बांग्लादेश आने की अनुमति मिली. इसके बाद उन्होंने आवामी लीग की कमान संभाली. इस तरह उनका राजनीतिक करियर शुरू हुआ. 80 के दशक में कई बार उन्हें नजरबंद किया गया. इस बीच उनकी राजनीतिक गतिविधियां जारी रहीं.
1986 के चुनाव में शेख हसीना नेता प्रतिपक्ष बनीं और उन्होंने एक विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व किया. 1991 के चुनाव में खालिदा जिया की BNP (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) चुनाव जीती और वे प्रधानमंत्री बनीं.
1996 के चुनाव में पहली बार आवामी लीग शेख हसीना के नेतृत्व में चुनाव जीतने में कामयाब रही. इस तरह हसीना की प्रधानमंत्री के तौर पर पहली बार नियुक्ति हुई. इस कार्यकाल में उन्होंने कई सुधार किए.
बांग्लादेश सरकार ने भारत के साथ गंगा जल समझौता किया, टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोला, बंगबंधु मेगा प्रोजेक्ट शुरू किया. चिटगांव हिल शांति समझौता किया, जिसके लिए शेख हसीना यूनेस्को शांति पुरस्कार भी मिला. उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ समझौते बेहतर किए और नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी भी लेकर आईं.
2001 के चुनाव में आवामी लीग को 40% वोट तो मिले, लेकिन पार्टी को महज 62 सीटें मिलीं. वहीं BNP 230 से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने में कामयाब रही. हालांकि आवामी लीग ने केयरटेकर सरकार और राष्ट्रपति पर खालिदा जिया के पक्ष में चुनावी हेरफेर के आरोप लगाए. ये सरकार 2006 तक चली. 2006 से 2008 के बीच बांग्लादेश में काफी राजनीतिक अस्थिरता रही, जो 2008 के चुनाव में जाकर खत्म हुई.
आवामी लीग की 2008 में वापसी हुई और जातीय पार्टियों समेत अन्य पार्टियों के साथ मिलकर एक बड़ा गठबंधन बनाया गया. 2009 में शेख हसीना दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं, फिर 2014 में तीसरी बार. 2014 के चुनाव को बांग्लादेश की बड़ी पार्टियों ने हिस्सा नहीं लिया था, उनका आरोप था कि चुनाव में बड़े पैमाने पर बैलेट बॉक्स में हेरफेर की तैयारी की गई है.
कुलमिलाकर 2019 और जनवरी 2024 में हुए चुनाव में जीत के बाद शेख हसीना ने 5 चुनाव में जीत का रिकॉर्ड बनाया. वे दुनिया की सबसे लंबे वक्त तक प्रधानमंत्री रहने वाली महिला हैं.
लेकिन इतने चुनाव में जीत के बावजूद भी शेख हसीना पर तानाशाही भरे रवैये से शासन चलाने के आरोप लगते रहे हैं. कम से कम मौजूदा आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों में तो यही दिखा, जहां 300 लोगों की जान चली गई.