कनाडा की कमान अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को खरी-खोटी सुनाने वाले लिबरल पार्टी के मार्क कार्नी के हाथों में ही रहेगी. कनाडा के सरकारी चैनल CBC और CTV न्यूज के मुताबिक कनाडा में हुए आम चुनाव में मार्क कार्नी को ही जीत मिलने का दावा किया गया है. हालांकि लिबरल पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला है, सरकार बनाने के लिए किसी दूसरी पार्टी को अपने साथ जोड़ना होगा.
मतदान खत्म होने के बाद, लिबरल्स को कंजर्वेटिव पार्टी की तुलना में संसद की 343 सीटों में से अधिक सीटें जीतने का अनुमान था, हालांकि ये साफ नहीं हुआ कि उन्हें कितनी सीटें मिली हैं. लिबरल्स हाउस ऑफ कॉमन्स में सबसे बड़ी पार्टी हो सकती है, लेकिन फिर भी बहुमत के लिए जरूरी 172 के आंकड़े से पीछे रह सकती है.
फिर भी, लगातार चार बार चुनाव जीतकर लिबरल पार्टी ने एक इतिहास रच दिया है, जो कि आमतौर पर कनाडा की राजनीति में होता नहीं है. लिबरल्स पार्टी को आखिरी बार 2015 में बहुमत हासिल हुआ था. लेकिन 2019 और 2021 में उसे बहुमत नहीं मिला और पार्टी ने गठबंधन सरकार चलाया.
कार्नी, कनाडा के वोटर्स को ये भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि आर्थिक संकटों से निपटने के उनके अनुभव ने उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का सामना करने के लिए तैयार कर दिया है. ट्रंप ने पिछले दिनों कहा था कि कनाडा को अमेरिका में मिला देना चाहिए, उसे अमेरिका का 51वां राज्य बना देना चाहिए. ये जीत कनाडावासियों का जवाब है कि उन्हें ट्रंप का ये ऑफर कतई मंजूर नहीं है.
हालांकि कार्नी की प्राथमिकताओं में से एक अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ संबंधों को आगे बढ़ाना है. जब मार्च के अंत में दोनों ने बात की, तो कार्नी और ट्रंप इस बात पर सहमत हुए कि वे चुनाव के तुरंत बाद एक नए आर्थिक और सुरक्षा संबंध के बारे में बातचीत शुरू करेंगे. उन्होंने कहा कि जब संसद वापस शुरू होगी, तो ये संभव है कि हम लिबरल्स को अमेरिकी टैरिफ बाधाओं के सामने कनाडा की अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करने पर केंद्रित कानून पेश करते हुए देखेंगे.
कार्नी का जन्म 16 मार्च 1965 को कनाडा के फोर्ट स्मिथ में हुआ था. उन्होंने अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है. AFP की रिपोर्ट के मुताबिक, वो हॉकी के प्लेयर भी रह चुके हैं.
कार्नी एक अर्थशास्त्री रहे हैं, उनके पास राजनीति का कोई अनुभव नहीं रहा है. 60 साल के कार्नी 2008 से 2013 तक बैंक ऑफ कनाडा के गवर्नर और 2013 से 2020 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड के गवर्नर रहे हैं. कार्नी आर्थिक संकटों से निपटने के महारथी हैं. उन्होंने 2008 की ग्लोबल मंदी के बाद बैंक ऑफ कनाडा तथा ब्रेक्सिट प्रक्रिया के दौरान बैंक ऑफ इंग्लैंड की कमान संभाली थी.
2013 में, यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने बैंक ऑफ इंग्लैंड का प्रमुख पद संभालने के लिए कार्नी को चुना, जिससे वे 1694 में बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना के बाद से इस संस्था का नेतृत्व करने वाले पहले गैर-ब्रिटिश व्यक्ति बन गए. इसके बाद ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ छोड़ने के लिए मतदान किया और 2016 के ब्रेक्सिट मतदान के बाद बाजारों को आश्वस्त करने में कार्नी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
जस्टिन ट्रूडो की जगह जब कार्नी ने लिबरल पार्टी की कमान अपने हाथ में ली थी और मार्च में कनाडा के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे तो उनके पास हाउस ऑफ कॉमन्स यानी कनाडा की संसद में कोई सीट नहीं थी. यानी वो सांसद नहीं थे. वो कनाडा के इतिहास में केवल दूसरे शख्स हैं, जिनके पास हाउस ऑफ कॉमन्स में कोई सीट नहीं होने के बावजूद PM बने. इस बार उन्होंने ओटावा के पास नेपियन सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. यानी इस बार PM बनते वक्त सदन में उनके पास अपनी सीट होगी.
जस्टिन ट्रूडो जब प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने पिछले साल खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों का हाथ होने का आरोप लगाया था. जिससे दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ी सी खटास आ गई थी. भारत ने ट्रूडो के आरोपों को गलत बताते हुए कहा कि कनाडा के साथ "मुख्य मुद्दा" ये है कि कनाडा ने अपने देश में खालिस्तानी अलगाववादियों को जगह दे रखी है. इसके बाद ट्रूडो को अपनी ही पार्टी में विरोध झेलना पड़ा, इसलिए मार्च में कार्नी ने प्रधानमंत्री की गद्दी संभाली. तबसे ही भारत को कनाडा के साथ रिस्ते सुधारने की उम्मीद जग गई थी.