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क्या रूस-भारत-चीन ट्रोइका को दुबारा शुरू करना चाहिए? रूसी विदेश मंत्री ने दिया बड़ा बयान

Russia-India-China Troika: पिछले सालों में चीन की सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास और सेना की तैनाती ने तनाव को और बढ़ा दिया है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी12:32 PM IST, 08 Jun 2025NDTV Profit हिंदी
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Russia-India-China Troika: 29 मई को यूराल पर्वतों के पर्म शहर में सुरक्षा और सहयोग पर सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव बोले कि 'रूस-भारत-चीन ट्रोइका (REC) को दुबारा शुरू करना चाहिए.'

'REC को रिवाइव करने का समय आ गया है'

टलावरोव ने कहा, 'मैं रूस, भारत, चीन ट्रोइका (REC) के काम को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने में हमारी रुचि के बारे में बताना चाह रहा हूं, जिसे कई साल पहले (पूर्व रूसी प्रधानमंत्री) येवगेनी प्रिमाकोव की पहल पर स्थापित किया गया था, और जिसने तब से लेकर अब तक न केवल विदेश नीति प्रमुखों के स्तर पर, बल्कि तीनों देशों की आर्थिक, व्यापार और वित्तीय एजेंसियों के प्रमुखों के स्तर पर भी 20 से ज्यादा मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित की हैं. अब जैसा कि मैं समझता हूं, भारत और चीन के बीच सीमा पर स्थिति को शांत करने के तरीके पर एक समझ बन गई है, मुझे लगता है कि इस REC को रिवाइव करने का समय आ गया है.'

लावरोव ने REC को दुबारा शुरू करने के लिए कहा है, लेकिन ऐसा कहना आसान है, पर करना मुश्किल. मौजूदा विवादों और भू-राजनीतिक गतिशीलता को देखते हुए, भारत शायद चीन के साथ इस तरह के त्रिपक्षीय गठबंधन को पूरी तरह से अपनाने के लिए तैयार नहीं होगा. लावरोव ने जो कहा, उसके विपरीत, भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव जारी है. हालांकि कूटनीतिक प्रयास और सैन्य टुकड़ियां पीछे हट गई हैं, लेकिन पूरा समाधान अभी नहीं हुआ है और आगे भी टकराव की संभावना बनी हुई है.

हाल ही में हुए डिस-इंगेजमेंट एग्रीमेंट के बावजूद भारत-चीन सीमा पर स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. पिछले सालों में चीन की सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास और सेना की तैनाती ने तनाव को और बढ़ा दिया है. जैसा कि भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने इस साल की शुरुआत में कहा था, 'भारत चीन के साथ LAC पर तैनात अपने सैनिकों की संख्या को जल्द ही कम नहीं करेगा. दोनों देशों की सेनाओं के बीच अभी भी गतिरोध बना हुआ है और दोनों देशों को तनाव कम करने के लिए विश्वास को फिर से बनाने की जरूरत है.'

2020 में गलवान घाटी में हुई झड़प और सीमा विवाद के चलते भारत और चीन के बीच रिश्ते में तनाव बना हुआ है. जनरल द्विवेदी के बयान से ये साफ हो गया है कि चीन के प्रति विश्वास की कमी है. ये विश्वास की कमी REC को दुबारा शुरू करने में बाधा डालेगी.

भारत-चीन सीमा विवाद सीमा की अलग-अलग व्याख्याओं से उपजा है, जिसमें चीन अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों पर भारत के दावों को झूठा बताता है. चीन ने ऐसे नक्शे जारी किए हैं जिनमें अक्साई चिन (भारत के कश्मीर राज्य का एक क्षेत्र जो 1962 के युद्ध के बाद से चीन के नियंत्रण में है) और पूर्वोत्तर भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश को चीनी क्षेत्र में दिखाया गया है.

इस साल 14 मई को यानी तीन सप्ताह से भी कम समय पहले चीन ने अरुणाचल प्रदेश में अपने क्षेत्रीय दावों को फिर से दोहराया. एक तरफ जहां भारत के साथ राजनयिक संबंधों को बेहतर बनाने के प्रयासों के बारे में बोला जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ चीनी नागरिक मामलों के मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के 27 जगहों के नाम बदल दिए हैं, जिसमें 15 पहाड़, 5 आवासीय क्षेत्र, 4 पहाड़ी दर्रे, 2 नदियां और 1 झील शामिल है. भारत ने अरुणाचल प्रदेश में नए चीनी नामों को 'बेतुका' बताते हुए खारिज कर दिया, जो ये बतलाता है कि ये राज्य हमेशा भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा.

दरअसल, अरुणाचल प्रदेश के लिए समय-समय पर नए नामों की सूची जारी करना चीन की पुरानी आदत है. भारत इन नामों को लगातार और स्पष्ट रूप से खारिज करता रहा है. अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलना चीन के एकतरफा दावों को बनाने का एक रणनीतिक कदम है, जिसे भारत पूरी ताकत से खारिज करता आया है. चीन की चालों का मुकाबला करने और अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए भारत के लिए जरूरी है कि बुनियादी ढांचे, सैन्य प्रतिरोध और वैश्विक गठबंधनों को मजबूत किया जाए.

पहलगाम आतंकी हमले के बाद, चीन ने पाकिस्तान को हथियार देने के लिए तेजी से कदम उठाए. रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीजिंग ने कुछ ही दिनों में पाकिस्तान की वायु सेना को PL-15 एयर-टू-एयर मिसाइलें दीं. भारत के पंजाब में मिले मिसाइल का मलबा एक उन्हीं में से है. इससे पता चलता है कि पाकिस्तान ने जो हमले किए हैं उसमें चीन की भूमिका थी. युद्ध में इस्तेमाल किए गए पाकिस्तानी जेट भी चीन के बनाए हुए थे.

चीन का पाकिस्तान को समर्थन देना भारत की चिंताओं को और बढ़ाता है. चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत के उस प्रस्ताव को रोक दिया था, जिसमें भारत ने अपने खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने वाले पांच आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने को कहा था. ये पांच आतंकवादी अब्दुल रऊफ असगर, साजिद मीर, अब्दुर रहमान मक्की, तल्हा सईद, शाहिद महमूद रहमतुल्लाह हैं जो भारत में कई आतंकी हमलों में शामिल रहे हैं, जिनमें 26/11 हमला, 2019 पुलवामा हमला, 2016 पठानकोट हमला, 2001 संसद हमला और IC-814 हाईजैकिंग शामिल हैं. भारत चाहता था कि उन्हें UNSC वैश्विक आतंकवादी के रूप में डिक्लेयर करे. लेकिन चीन ने ये होने नहीं दिया. पिछले महीने पहलगाम आतंकी हमले में शामिल आतंकवादी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) पर प्रतिबंध लगाने के भारत के अनुरोध को भी चीन ने UNSC में रोक दिया.

जाहिर है, रूस को QUAD को लेकर संदेह है, हालांकि ये एक कूटनीतिक साझेदारी है, सैन्य गठबंधन नहीं. सच तो ये है कि भारत पश्चिम के साथ गठबंधन नहीं कर रहा है, बल्कि, वो मल्टी अलाइनमेंट की पॉलिसी पर चल रहा है. भारत ने अपनी इंडो-पैसिफिक नीति और QUAD में भागीदारी को सावधानीपूर्वक तैयार किया है ताकि समुद्री सुरक्षा को मजबूत किया जा सके और एक स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाए रखा जा सके. दूसरी ओर भारत बहुपक्षीय मंच ब्रिक्स को मजबूत करने के प्रयासों में भी शामिल हो गया है.

भारत आवश्यक रक्षा उपकरण आयात करने के साथ-साथ रूस के साथ अपने घनिष्ठ संबंध बनाए हुए है, जबकि उसने चीन को संतुलित करने के लिए अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी की है. इसमें कोई शक नहीं है कि हाल के सालों में भारत के अमेरिका के साथ संबंध गहरे हुए हैं. हालांकि, भारत अमेरिका का सहयोगी बनने से बचने के लिए अलर्ट रहा है. नई दिल्ली ने एक फ्री विदेश नीति बनाए रखी है और चीन के खिलाफ किसी भी सैन्य गठबंधन में भाग लेने से इनकार कर दिया है.

आखिर में, REC को दुबारा शुरू करने के लिए लावरोव की ये बात वैश्विक मंच पर रूस के महत्व को फिर से बताना है. भारत पहले से ही एक तरफ क्वाड और दूसरी तरफ ब्रिक्स का सदस्य बनकर कूटनीतिक समस्या से जूझ रहा है. भारत-चीन संबंधों की स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि हम अपने पड़ोसी के साथ घनिष्ठ संबंध बना लें, जिसकी नीतियां हमेशा ही हमारे लिए ठीक नहीं रही हैं. शायद हम रूस के साथ निजी तौर पर अपने विचार साझा कर सकते हैं, अपनी चिंताओं को समझा सकते हैं और उन्हें बता सकते हैं कि फिलहाल, हम ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (SEO) को रूस, भारत और चीन के बीच ट्रोइका (REC) के रूप में देखते हैं.

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