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डॉनल्ड ट्रंप ने दूसरे कार्यकाल में अब तक का सबसे बड़ा हमला चीन पर किया, बढ़ सकती है टेंशन

डॉनल्ड ट्रंप ने एक ज्ञापन जारी किया है जिसमें एक प्रमुख सरकारी समिति को तकनीक, ऊर्जा और अन्य रणनीतिक अमेरिकी क्षेत्रों पर चीनी खर्च को कम करने के लिए कहा गया है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी05:55 PM IST, 24 Feb 2025NDTV Profit हिंदी
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डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) प्रशासन ने निवेश, व्यापार और अन्य मुद्दों से जुड़े कई फैसलों के साथ चीन पर निशाना साधा है. इससे अमेरिका और उसके शीर्ष आर्थिक प्रतिद्वंद्वी यानी चीन के बीच संबंध जल्द ही खराब होने को जोखिम बढ़ गया है.

हाल के दिनों में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक ज्ञापन जारी किया है. जिसमें एक प्रमुख सरकारी समिति को तकनीक, ऊर्जा और अन्य रणनीतिक अमेरिकी क्षेत्रों पर चीनी खर्च को कम करने के लिए कहा गया है. प्रशासन ने मैक्सिकन अधिकारियों से चीनी आयात पर ड्यूटी लगाने का भी आह्वान किया है. US ने ये कदम चीनी फर्मों द्वारा अमेरिकी पड़ोसी देश में प्रोडक्शन स्थानांतरित करने के बाद उठाया है ताकि रिपब्लिकन द्वारा लागू किए गए शुल्कों से बचा जा सके.

अमेरिका ने जहाजों के प्रोडक्शन में चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए चीन में बने कमर्शियल जहाजों के उपयोग पर ड्यूटी लगाने का भी प्रस्ताव रखा. सोमवार को चीनी शिपिंग स्टॉक में गिरावट आई, जबकि बेंचमार्क CSI 300 इंडेक्स में उतार-चढ़ाव रहा है. शंघाई में दोपहर 12:30 बजे तक डॉलर के मुकाबले ऑनशोर कारोबार करने वाले युआन में 0.2% की बढ़ोतरी हुई और ये 7.2359 पर पहुंच गया.

कुल मिलाकर, ये कदम ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में बीजिंग को टारगेट करने वाली सबसे व्यापक और फोर्सफूल एक्शन है.

अमेरिका में विदेशी निवेश पर समिति को आदेश देने वाला MoU (सेक्रेटिव पैनल जो विदेशी संस्थाओं द्वारा अमेरिकी कंपनियों या संपत्ति खरीदने के प्रस्तावों की जांच करता है) इन कार्रवाइयों की झड़ी में सबसे प्रभावशाली है. बीजिंग को 'विदेशी विरोधी' बताते हुए इसमें कहा गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रौद्योगिकी, खाद्य आपूर्ति, कृषि भूमि, खनिज, प्राकृतिक संसाधन, बंदरगाह और शिपिंग टर्मिनलों की रक्षा के लिए ये बदलाव आवश्यक हैं.

वाशिंगटन में पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स के सीनियर फेलो मार्टिन चोरजेम्पा ने कहा कि ये बीजिंग के लिए निराशा की बात है, जिसने बातचीत में रियायत के रूप में अमेरिका में बड़े पैमाने पर निवेश की पेशकश करने की उम्मीद की थी. इससे ये सवाल उठता है कि क्या अमेरिका इस तरह के निवेश के लिए खुला होगा. पिछले साल के अंत में उत्तरी अमेरिका में चीन का निवेश महामारी के सबसे बुरे दौर के दौरान देखे गए स्तरों से नीचे गिर गया.

US-आधारित कंसल्टेंसी रोडियम ग्रुप के मुताबिक, कंपनियों ने पिछली तिमाही में कनाडा, मैक्सिको और अमेरिका में केवल $191 मिलियन के नए निवेश की घोषणा की, जो एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 90% से अधिक की गिरावट है. ज्ञापन जारी होने के बाद बीजिंग ने वाशिंगटन से आर्थिक और व्यापार मुद्दों का राजनीतिकरण बंद करने का आग्रह किया. वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि सुरक्षा के आधार पर व्यापारिक संबंधों की समीक्षा को मजबूत करने के लिए अमेरिकी सरकार का दबाव अमेरिका में निवेश करने वाली चीनी कंपनियों के विश्वास को गंभीर रूप से कमजोर करेगा.

ज्ञापन में ये भी कहा गया है कि अमेरिकी सरकार को चीन के साथ 1984 के कर समझौते की भी समीक्षा करनी चाहिए, जो व्यक्तियों और कंपनियों को डबल टैक्सेशन से मुक्त करता है और एक व्यवस्था जिसे 'वेरिएबल इंटरेस्ट एंटिटी' के रूप में जाना जाता है. जिसका उपयोग चीनी फर्म अमेरिकी एक्सचेंजों में लिस्टेड होने के लिए करती हैं.

जहाज मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में चीन की हिस्सेदारी बढ़ी

पिछले एक दशक में वैश्विक जहाज मैन्युफैक्चरिंग क्षमता में चीन की हिस्सेदारी बढ़ी है और दुनिया के नए मैन्युफैक्चरिंग में से लगभग आधे का हिस्सा चीन के पास है, जिसका एक कारण इसकी खुद की घरेलू डिमांड भी है. एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म वेसल्सवैल्यू के मुताबिक, जनवरी में चीन का फ्लीट 255.2 बिलियन डॉलर का था, जो दुनिया में सबसे अधिक है. जापान 231.4 बिलियन डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर था, जबकि अमेरिका 116.4 बिलियन डॉलर के साथ चौथे स्थान पर था.

कॉस्को शिपिंग होल्डिंग्स कंपनी के शेयर, जिसे पहले पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से कथित संबंधों के कारण रक्षा विभाग ने ब्लैकलिस्ट किया था. सोमवार को हांगकांग में इसमें 8.3% तक की गिरावट देखने को मिली. सिंगापुर में लिस्टेड यांगजिआंग शिपबिल्डिंग होल्डिंग्स में भी गिरावट आई.

चीन-अमेरिका के बीच तनाव तब बढ़ रहा है. ट्रंप यूक्रेन में युद्ध को समाप्त करने पर जोर दे रहे हैं, ये कदम ट्रंप और रूसी नेता व्लादिमीर पुतिन के बीच ऐतिहासिक चर्चाओं से शुरू हुआ था. जबकि चीन युद्ध के अंत का स्वागत करेगा क्योंकि इससे यूरोप के साथ उसके संबंधों को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. इससे ये संभावना भी बढ़ जाती है कि एक बार लड़ाई खत्म होने के बाद वाशिंगटन अपना पूरा ध्यान बीजिंग पर लगा देगा.

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