अमेरिका अपने 47वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका है. टीवी डिबेट्स, तल्ख भाषणों, जानलेवा हमलों और चुनावी पोल्स की रस्साकशी के दौर से गुजरते हुए अमेरिकी चुनाव अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है.
5 नवंबर को अमेरिका की जनता अपने राष्ट्रपति का चुनाव करेगी. लेकिन ये सिर्फ एक अमेरिका के राष्ट्रपति भर नहीं है. ये चुनाव है उस शख्स का जिसके हाथों में सुपरपावर का रिमोट कंट्रोल होगा. जो दुनिया को सामाजिक, आर्थिक और व्यापारिक हर तरीके से प्रभावित करता है. इससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा.
अमेरिका की कमान किसके हाथ में होगी, डॉनल्ड ट्रंप या कमला हैरिस? किसका चुना जाना भारत को किस तरह से असर डालेगा, चलिए ये समझते हैं.
अमेरिका में राष्ट्रपति के बदलने का मतलब है कि उसकी आर्थिक नीतियां भी बदलेंगी, जैसे कि टैक्स रिफॉर्म्स या ट्रेड एग्रीमेंट वगैरह. जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच होने वाले व्यापार पर असर पड़ेगा.
अगर रिपब्लिकन डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत के साथ उनके आर्थिक रिश्ते कैसे होंगे. इसको समझने के लिए ट्रंप की उस विचारधारा को समझना होगा जिसमें वो ट्रेड पॉलिसीज के प्रोटेक्शिनिज्म या संरक्षणवाद को बढ़ावा देते हुए दिखते हैं.
अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप स्टील जैसे प्रोडक्ट पर 25% टैरिफ की बात कह चुके हैं. ट्रंप अक्सर अपने भाषणों में ट्रेड बैलेंस की वकालत करते हैं. ऐसे में वो दूसरे देशों पर ज्यादा टैरिफ लाद सकते हैं.
भारत के लिए ट्रंप का रिकॉर्ड ठीक नहीं रहा है, साल 2017 में ट्रंप ने भारत पर 2.3% का एक्सपोर्ट टैरिफ लगाया था, जिससे एक साल के अंदर ही भारत का स्टील एक्सपोर्ट 46% तक गिर गया था. ट्रंप यहीं नहीं रुके, उन्होंने साल 2019 में, भारत को जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेसेंज (GSP) से भी हटा दिया था, जिससे भारत के एक्सपोर्ट को 560 करोड़ डॉलर का झटका लगा था
हालांकि ट्रंप अपने कार्यकाल के दौरान क्वाड और रक्षा सौदों जैसी पहल पर भारत के साथ गठबंधन कर चुके हैं. उन्होंने डेमोक्रेट्स के उलट स्किल्ड वर्किंग वीजा का समर्थन किया है, लेकिन ऊंचे टैरिफ और आर्थिक प्रतिबंधों पर उनका आक्रामक रुख भारत सहित दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के लिए चुनौतियां पैदा कर सकता है.
इसके उलट, अगर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस चुनकर आती हैं तो वो भारत पर बाइडेन प्रशासन की मिली-जुली विरासत के बावजूद ज्यादा उदार नजरिया अपना सकती हैं.
हैरिस के प्रशासन के तहत भारत के ट्रेड हितों को बेहतर समर्थन मिल सकता है. जलवायु नीति और एनर्जी इंफ्रास्ट्रक्चर पर हैरिस की सोच भारतीय सोलर एक्सपोर्ट की डिमांड को बढ़ा सकता
डिफेंस करार के मोर्चे पर कमला हैरिस का लक्ष्य चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए इंडो-पैसिफिक साझेदारी को मजबूत करना है, जबकि ट्रंप को क्वाड साझेदारी को फिर से जिंदा करने का श्रेय दिया जाता है. ऐसे में किसी भी उम्मीदवार के तहत एक मजबूत अमेरिकी रुख भारत को साउथ ईस्ट एशिया में ज्यादा ताकतवर बना सकता है, उसकी रक्षा क्षमताओं और तकनीकी प्रगति को बढ़ा सकता है.
इस सिक्के का एक पहलू और भी है. ट्रंप की दूसरी पारी से भारत को एक मोर्चे पर फायदा भी हो सकता है. ट्रंप का चीन के साथ ट्रेड वॉर किसी सा छुपा नहीं है. अगर ट्रंप चुनकर आते हैं तो वो अमेरिका फर्स्ट की पॉलिसी के तहत 'चीन प्लस वन' की स्ट्रैटजी को तेजी से बढ़ा सकते हैं. ये भारत के लिए फायदे की बात हो सकती है, वो भी ऐसे वक्त पर जब अमेरिका की कई कंपनियां अपना प्रोडक्शन चीन से निकालकर भारत ले आईं हैं. चीन के मामले में कमला हैरिस का नजरिया है कि हम चीन के साथ संघर्ष नहीं चाहते हैं, हम उनके साथ आर्थिक संबंधों को अलग करने के बारे में नहीं बल्कि जोखिम को कम करने के बारे में सोचते हैं.
H1B वीजा को लेकर ट्रंप का रुख दुनिया को पता है, ट्रंप इसे अमेरिकी लोगों के लिए बुरा बताते रहे हैं. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने आखिरी दिनों में अप्रैल 2017 के "अमेरिकी खरीदें और अमेरिकी को नौकरी पर रखें" को बढ़ावा देने के लिए आदेश जारी किया, जिसमें H1B कार्यक्रम के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने के मकसद से नियमों की एक पूरी सीरीज थी. ट्रंप दूसरे कार्यकाल में उन्हीं नीतियों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं.
हैरिस इमिग्रेशन और ट्रेड से जुड़े कुछ तनावों को कम करने की कोशिश कर सकती हैं. जिससे भारत के लिए नए मौके भी बन सकते हैं. ट्रंप जितने संरक्षणवादी है, कमला हैरिस उतना नहीं हैं. जिसका फायदा भारत की IT इंडस्ट्री और स्किल्ड वर्कफोर्स को मिल सकता है, क्योंकि हैरिस H-1बी वीजा पर थोड़ा नरम रवैया अपना सकती हैं.
H1B के मामले में वैसे भी डेमोक्रेट्स का रिकॉर्ड रिपब्लिकन से बेहतर रहा है. डेमोक्रेट्स प्रशासन में H1B वीजा का औसत अप्रूवल रेट 94.6% रहा है, जबकि रिपब्लिकन के समय ये गिरकर औसतन 90.7% पर आ जाता है.