जिन फाउंडर्स ने कंपनी खड़ी की, अपनी मेहनत झोंकी, अपना खून-पसीना बहाया, यूनिकॉर्न बनाया, उन्ही फाउंडर्स में से 40% ने डील पूरी होने के बाद कंपनी को टाटा बाय-बाय, गुड बाय कह दिया.
BQ Prime को मिली एक्सक्लूसिव रिपोर्ट, जिसे डेटा इंटेलीजेंस प्लेटफॉर्म द क्रेडिबल (TheKredible) ने तैयार किया है, के मुताबिक 671 फाउंडर्स में से 272 (लगभग 40%) ने वेंचर के अधिग्रहण किए जाने के बाद ही इस्तीफा दे दिया.
इस्तीफा देने वाले इन 272 फाउंडर्स में करीब 60% ने डील के तुरंत बाद ही इस्तीफा दे दिया. बाकी फाउंडर्स, जो कंपनी में काम करते रहे, वो भी अधिग्रहण के बाद औसतन 6 से 7 महीने के अंदर ही पैरेंट कंपनी को इस्तीफा थमाकर चलते बने.
रिपोर्ट के मुताबिक, 671 फाउंडर्स में 236 (करीब 35%) अपने स्टार्टअप के साथ बने रहे. वहीं, 108 (करीब 16%) ने अधिग्रहण करने वाली कंपनियों में सीनियर रोल ले लिया.
इसके साथ ही, 139 (करीब 21%) फाउंडर्स ने अपने स्टार्टअप को छोड़ दिया और किसी अन्य वेंचर की तरफ बढ़ गए. करीब 14% फाउंडर्स अन्य कंपनियों में रेगुलर जॉब की तरफ बढ़ गए. इसके अलावा 12 फाउंडर्स तो इन्वेस्टर बन गए और किसी वेंचर कैपिटल फर्म को ज्वाइन कर लिया.
यूनिकॉर्न्स की इस लिस्ट में फ्लिपकार्ट और मेंसा ब्रांड्स सबसे आगे हैं, जिन्होंने 21 अधिग्रहण किए. इसके बाद बायजूज ने 19 अधिग्रहण किए हैं.
जोमैटो और कल्ट.फिट ने 16 स्टार्टअप्स का अधिग्रहण किया है. अपग्रैड, पेटीएम, फ्रेशवर्क्स ने क्रमशः 15, 14 और 12 कंपनियों का अधिग्रहण किया.
वेंचर कैपिटल फर्म फाड नेटवर्क प्राइवेट (Faad Network Pvt.) के CEO आदित्य अरोड़ा कहते हैं, फाउंडर्स अपनी कंपनी को छोड़ देते हैं, क्योंकि आमतौर पर जब वो किसी बड़ी संस्था को ज्वाइन करते हैं, तो उन्हें एक छोटी टीम के मुकाबले किसी बड़ी टीम को हैंडल करने का ट्रांजिशन बड़ा मुश्किल होता है.
इसके साथ ही विजन में अंतर भी एक बड़ी समस्या होती है. वो कहते हैं, 'फाउंडर्स का विजन बहुत अलग होता है, क्योंकि वो चीजों को बहुत माइक्रोलेवल नजरिए से देखते हैं, लेकिन जब वो किसी बड़ी ऑर्गनाइजेशन में जाते हैं, तो वहां अलग ही विजन होता है.'
टाइमलाइन की समस्या भी फाउंडर्स के लिए एक बड़ी चुनौती होती है. अरोड़ा के मुताबिक, 'स्टार्टअप बहुत कम छोटी टाइमलाइन पर चलते हैं और उनका बजट भी छोटा होता है. वो चीजों को तुरंत एग्जीक्यूट करते हैं, लेकिन बड़ी ऑर्गनाइजेशन में, चीजें पूरी करने के लिए समय और बजट ज्यादा लगता है. बड़ी ऑर्गनाइजेशन में श्रेणियां होती हैं, वहीं स्टार्टअप्स में ऐसी व्यवस्था न के बराबर होती है. इसी वजह से मुझे लगता है कि फाउंडर्स किसी भी बड़ी ऑर्गनाइजेशन के हिसाब से मिसफिट बैठते हैं.'
भारत के 3 सबसे बड़े स्टार्टअप्स द्वारा अधिग्रहण किए जाने के बाद फाउंडर्स ने क्या किया:
फ्लिपकार्ट ने 2011 में स्टार्टअप्स के अधिग्रहण का सिलसिला शुरू किया. 2011 में फ्लिपकार्ट ने समीर निगम की कंपनी माइम360 को खरीदा, जो अब फोनपे के फाउंडर और CEO हैं. फ्लिपकार्ट ने इसके बाद, मिंत्रा, ईबे इंडिया, क्लियरट्रिप ट्रैवल सर्विसेज समेत कई अन्य कंपनियों का अधिग्रहण किया.
जिन 21 कंपनियों का फ्लिपकार्ट ने अधिग्रहण किया, इसमें 12 फाउंडर्स ने यूनिकॉर्न स्टार्टअप को अलविदा कह दिया. मेक मोचा के मोहित रंगराजू और अर्पिता कपूर ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा सौंपा. वहीं, मिंत्रा के मुकेश बंसल और आशुतोष लवानिया ने क्रमशः 16 और 33 महीने में कंपनी को छोड़ दिया.
बायजूज ने अब तक 19 कंपनियों का अधिग्रहण किया है. इसमें 8 ने कुछ समय में अपने स्टार्टअप को छोड़ दिया. वहीं 5 ने तुरंत ही इस्तीफा दे दिया. इसके अलावा व्हाइटहैट जूनियर के करन बजाज कंपनी में 12 महीने तक बने रहे.
ओस्मो के फाउंडर जेरोम स्कोलर ने बायजूज के अधिग्रहण के बाद 28 महीने तक कंपनी में काम किया.
जोमैटो ने अब तक 16 स्टार्टअप्स का अधिग्रहण किया है. इसमें से 6 फाउंडर्स ने तत्काल प्रभाव से कंपनी के साथ अपने रास्ते अलग कर लिए. इनमें स्पार्स लैब्स के पंकज बत्रा, मेकानिस्ट के अल्पर टेकिन, लंचटाइम के इगोर ट्रेसलिन, और मेन्यू मेनिया के क्रिस्टियन रोसेक्यू और करन गिब्सन शामिल हैं.
10 फाउंडर्स ने अपने स्टार्टअप से अधिग्रहण के बाद इस्तीफा दिया.
इसमें रनर के फाउंडर्स अर्पित दवे कंपनी के साथ 31 महीने और मोहित कुमार सबसे ज्यादा 49 महीने तक बने रहे. वहीं, अरविंद रेड्डी ने 29 महीने बाद कंपनी छोड़ी.