पहला फैक्ट- देश में लैपटॉप और टैबलेट का मार्केट साइज 6 बिलियन डॉलर यानी करीब 50 हजार करोड़ रुपये के बराबर है. डेलॉइट इंडिया का अनुमान है कि 2028 तक ये बढ़कर 8.4 बिलियन डॉलर हो जाएगा.
दूसरा फैक्ट- इस सेगमेंट में घरेलू मांग का महज 30-32% ही देश में असेंबल किया जाता है. बाकी करीब 70% के लिए हमारी निर्भरता ज्यादातर चीन और दूसरे देशों पर है.
तीसरा फैक्ट- सस्ते और इकोनॉमी लैपटॉप का बाजार में दबदबा. लैपटॉप अब भी एक बड़े उपभोक्ता वर्ग की पहुंच से दूर है.
ये तीनों फैक्ट छिपी हुई गूढ़ सूचनाएं नहीं है, बल्कि पब्लिक डोमेन में हैं. और शायद यही वजह है कि पहले रिलायंस (Reliance) ने जियोबुक (Jio-Book Laptop) और अब गूगल (Google) ने क्रोमबुक (Chromebook Laptop) को 'सबसे सस्ते लैपटॉप' के तौर पर भारतीय बाजार में पेश किया है.
टेक दिग्गज गूगल ने हाल ही में HP के साथ पार्टनरशिप में क्रोम बुक लॉन्च किया. 16,499 रुपये वाले जियो बुक के सामने गूगल-HP ने क्रोमबुक को 15,990 रुपये की शुरुआती कीमत के साथ बाजार में उतारा है. इस मार्केट सेगमेंट में फिलहाल ये ही 2 बड़े खिलाड़ी हैं.
पॉलिसी और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि लैपटॉप सेगमेंट के मार्केट साइज और लो बजट कंपटीशन के साथ-साथ इन लॉन्चिंग के व्यापक मायने हैं. भारतीय बाजार पर और यहां के उपभोक्ता वर्ग पर इसका बड़ा असर पड़ने वाला है.
भारत बड़ा बाजार, कंपनी-ग्राहक दोनों को फायदा
IT एक्सपर्ट और कॉलमिस्ट प्रभात सिन्हा का कहना है कि भारत इकोनॉमी की दृष्टि से भी एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय बाजार है, सो पूरी दुनिया की नजर यहां के कंज्यूमर्स पर है.
BQ Prime हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा, 'सरकार की पॉलिसी के चलते हाल के वर्षों में फॉक्सकॉन (Foxconn), पैनासोनिक (Panasonic) और इसुजु (Isuzu) जैसी विदेशी कंपनियों को यहां अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स लगाने पड़े हैं. और अब गूगल को भी देश में ही मैन्युफैक्चरिंग का फैसला लेना पड़ा.'
HP के चेन्नई स्थित फैक्ट्री में क्रोमबुक की मैन्युफैक्चरिंग शुरू हुई है. सरकार की PLI स्कीम के तहत HP भी एप्लिकेंट है, जाहिर है कि कंपनी को इसका फायदा मिलेगा. पॉलिसी के लिहाज से तो ये अच्छा है ही, ग्राहकों के हक में भी है, क्योंकि लो बजट लैपटॉप सेगमेंट में जियोबुक की मोनोपॉली नहीं बनेगी और बाजार में प्रतिस्पर्धा का फायदा मिलेगा.प्रभात सिन्हा, को-फाउंडर, ग्लोबल IT कंपनी इंटेलीजेंज आईटी (Intelligenz IT)
सरकारी नीतियां और देश में मैन्युफैक्चरिंग का माहौल
केंद्र सरकार देश को आने वाले कुछ वर्षों में मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित करना चाह रही है. टेक, मीडिया और इनोवेशन एक्सपर्ट प्रो फरहत बशीर खान कहते हैं, 'चीन से इंपोर्ट कम करने की पॉलिसी और मेक इन इंडिया पर जोर देने की नीतियां इस महत्वाकांक्षा के लिए ट्रिगर का काम कर रही हैं तो PLI यानी प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव जैसी योजनाएं देसी और विदेशी कंपनियों को इसके लिए प्रोत्साहित कर रही हैं.'
पहले, PLI 1.0 का आउटले 7,350 करोड़ रुपये था, जिसे अब सरकार ने बढ़ा दिया है. इसे बढ़ाकर 17,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है. HP समेत कई IT कंपनियों को इसका फायदा मिलेगा. इंपोर्ट प्रतिबंधों से कुछ दिन पहले ही सरकार ने PLI 2.0 की घोषणा की थी.
कुछ महीने पहले सरकार की ओर से लैपटॉप और संबंधित कॉम्पोनेंट के इंपोर्ट पर प्रतिबंध की खबरें आई थीं. बाद में इसे थोड़ा लचीला किया गया और IT कंपनियों के लिए नया इंपोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम तैयार किया गया. संभवत: नवंबर से लागू होने वाले नियमों के तहत कंपनियों को इंपोर्ट किए गए सारे प्रोडक्ट्स का रजिस्ट्रेशन और पूरा हिसाब-किताब DGFT यानी विदेश व्यापार निदेशालय को देना जरूरी होगा.प्रो फरहत बशीर खान, शिक्षाविद्, पॉलिसी स्ट्रैटेजिस्ट और इनोवेशन एक्सपर्ट
प्रो खान इस सख्ती के पीछे 2 बड़ी वजह बताते हैं. पहली वजह- सिक्योरिटी और जासूसी से जुड़ा. उपकरण दूसरे देशों के होंगे तो पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. दूसरी वजह ये कि PLI स्कीम और अन्य नीतियों के बावजूद मैन्युफैक्चरिंग काे जो बूस्ट मिलना था, वो मिला नहीं. चीन को मात देने के लिए देश में मैन्युफैक्चरिंग जरूरी है.
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कैंडी-टेक(CandyTech) की रिपोर्ट के अनुसार, इंडियन लैपटॉप मार्केट में HP की हिस्सेदारी 33.8% है. इसके बाद डेल (19.4%) और लेनोवो (17.6%) दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं. और फिर एसर(Acer), आसुस (Asus) और अन्य कंपनियां. गूगली की पार्टनरशिप HP के साथ है, जिसके आगे जियो दूर-दूर तक कहीं नहीं है.
तो क्या जियो को झटका लगेगा?
प्रो फरहत बशीर खान का कहना है कि देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में सरकार की पहली प्राथमिकता है- देश में मैन्युफैक्चरिंग से घरेलू जरूरतें पूरी करना. इसके बाद सरकार का फोकस, यहां से निर्यात पर होगा. उन्होंने कहा, 'सरकार अभी भले ही नियमों को लचीला रखे, लेकिन आगे सख्त कर सकती है. और संभव है कि आने वाले कुछ महीनों या वर्षों में चीन से इंपोर्ट पर बैन लगा दिया जाए.'
उनका कहना है, 'जो भी कंपनियां IT कॉम्पोनेंट के लिए चीन के भरोसे है, उन्हें या तो बदलाव करना होगा या फिर आने वाले समय में कारोबार समेटने की भी नौबत आ सकती है.'
IT एक्सपर्ट प्रभात सिन्हा कहते हैं, 'भारत इसमें कैपेबल है कि ये मैन्युफैक्चरिंग हब बने. हालांकि यहां मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोलना यहां अब भी दूसरे देशों की तुलना में थोड़ा मुश्किल रहा है, लेकिन सरकार, सिंगल विंडो सिस्टम के जरिये सुधार कर रही है और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस में देश की रैंकिंग काफी सुधरी है.'
पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स से जुड़े पॉलिसी प्रोफेशनल अतुल ठाकुर भी सिन्हा की बात से सहमति रखते हैं.
कोविड काल के बाद भारतीय बाजार की ओर दुनिया आशा भरी नजरों से देख रही है. बाजार का आकार, बड़ा उपभोक्ता वर्ग और प्रो-इंडस्ट्री पॉलिसीज दुनिया में भारत की बढ़ती हिस्सेदारी को बढ़ावा दे रही हैं. भारत की इंडिजिनियस स्ट्रेंथ इसे 'ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स का घर' बनाने में क्रांतिकारी भूमिका निभाएगी.अतुल ठाकुर, पॉलिसी प्रोफेशनल, ऑथर और कॉलमिस्ट
बाजार में तगड़ा कंपटीशन
जियो को झटका लगने के सवाल पर प्रभात सिन्हा ने कहा, 'सॉफ्टवेयर में गूगल और हार्डवेयर में HP माहिर खिलाड़ी हैं. ये जगजाहिर है कि जियो लैपटॉप मैन्युफैक्चरिंग के लिए कॉम्पोनेंट के आयात पर निर्भर है और चीन से खासा इंपोर्ट करता है.'
आगे वे कहते हैं, 'कुछ कंपनियां दूसरे देशों में यूनिट खोल कर प्रतिबंधित देश से वहां इंपोर्ट करने के बाद लेबलिंग बदल कर भारत आयात करने का विकल्प भी चुनती हैं. लेकिन ये अस्थायी फंडा साबित होगा. जियो शायद ऐसा न ही करे. सरकार की पॉलिसी को देखते हुए जियो को भी अपनी पॉलिसी में बदलाव करना होगा. नहीं तो उसे झटका लग सकता है.'
फीचर्स के मामले में देखें तो रैम से लेकर, हार्डडिस्क, कैमरा और कम्पैटिबिलिटी तक, गूगल-HP का क्रोमबुक, जियो-बुक से बेहतर दिख रहा है. जाहिर है कि ग्राहकों को फायदा मिलेगा. वहीं कीमत में भी 500 रुपये का अंतर है. यानी क्राेमबुक कम कीमत में बेहतर लैपटॉप दिख रहा.
अंतिम यूजर तक पहुंचे फायदा तो क्रांति संभव!
इकोनॉमिक्स की गोल्डन थ्योरी है, किसी भी सेक्टर में परफेक्ट कंपटीशन से ग्राहकों को फायदा होता है. अतुल ठाकुर कहते हैं, 'IT सेक्टर में अब मल्टीनेशनल कंपनियों और बड़े घरेलू खिलाड़ियों के बीच कड़ा कंपटीशन दिख रहा है. उम्मीद की जाती है कि अंतिम कंज्यूमर (End User) तक वास्तविक लाभ पहुंचेगा.'
उन्होंने कहा, 'लो बजट लैपटॉप सेगमेंट में प्राइस वॉर को और व्यापक तौर पर देखने की जरूरत है, क्योंकि ये छात्रों और युवा पेशेवरों समेत नए कंज्यूमर्स के बीच आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देगा.'
प्रो फरहत बशीर खान कहते हैं, 'इससे मेक इन इंडिया को बढ़ावा मिलने के साथ डिजिटल इंंडिया अभियान को भी बल मिलेगा. स्मार्टफोन की कीमत में लैपटॉप मिलेगा तो स्टूडेंट्स समेत बड़े उपभोक्ता वर्ग तक इसकी पहुंच होगी. छोटे शहरों के युवाओं के पास लैपटॉप होगा तो इनोवेशन, डिजाइन, रिसर्च और कंप्यूटर आधारित अन्य सेक्टर में नए-नए टैलेंट निकल कर सामने आएंगे. इन सेक्टर्स में क्रांति आ सकती है.