संसद का बजट सत्र शुरू होने में अब 24 घंटे से भी कम समय बचा है. 31 जनवरी, शुक्रवार को बजट सत्र शुरू होगा, इकोनॉमिक सर्वे पेश किया जाएगा, जिसमें सरकार की आय और खर्च का हिसाब-किताब होगा और फिर 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट-2025 पेश करेंगी.
केंद्र के इस बजट से अलग-अलग वर्ग की कई सारी अपेक्षाएं हैं. पिछले कुछ महीनों में वित्त मंत्रालय ने अलग-अलग संगठनों और संघों के साथ बैठकें की थीं. संघों ने अलग से भी अपनी अपेक्षाएं बताई हैं, जबकि आम आदमी भी बजट से राहत की उम्मीद लगाए बैठा है. खासतौर से मिडिल क्लास टैक्सपेयर्स.
एक्सपर्ट्स का भी मानना है कि अपकमिंग बजट में कन्ज्यूमर स्पेडिंग को बढ़ावा देने के उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए. इससे टैक्स का बोझ कम होगा और डिस्पोजेबल इनकम को बढ़ावा मिलेगा.
टैक्स स्ट्रक्चर की समीक्षा
सिंतबर 2024 तक GDP में 62% हिस्सेदारी वाली कंजप्शन, बाद के महीनों में बढ़ी महंगाई और घटते कंज्यूमर डिमांड के चलते कम हो गई है. ऐसे में व्यवसायिक संगठन FICCI के सदस्यों ने भी डिमांड बढ़ाने और ग्रोथ को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डायरेक्ट टैक्स स्ट्रक्चर की समीक्षा का समर्थन किया है.
FICCI ने अपने सदस्यों के बीच पिछले दिनों एक सर्वे कराया था. इसके मुताबिक, टैक्स स्लैब और टैक्स दरों पर फिर से विचार करना जरूरी है, क्योंकि इससे लोगों के हाथों में अधिक पैसा आ सकता है और इकोनॉमी में खपत की मांग बढ़ सकती है.
फिक्की ने ये बजट-पूर्व सर्वे दिसंबर, 2024 के अंत और जनवरी, 2025 के बीच किया था, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों की 150 से अधिक कंपनियों से प्रतिक्रियाएं मिलीं. सर्वे में शामिल सदस्यों को उम्मीद है कि नए वित्त वर्ष 2025-26 में देश की GDP ग्रोथ रेट 6.5% से 6.9% हो सकती है.
कन्फ्यूजन में रहते हैं टैक्सपेयर्स
मौजूदा दो टैक्स सिस्टम की वजह से टैक्सपेयर्स को ओल्ड टैक्स रिजीम या नई डिफॉल्ट टैक्स रिजीम में से किसी एक को चुनना पड़ता है. इनकम टैक्स विभाग के आंकड़ों के अनुसार, आकलन वर्ष 2024-25 के लिए करीब 72% ITR न्यू टैक्स रिजीम के तहत दाखिल किए गए थे. यानी 9 करोड़ टैक्सपेयर्स में से करीब 6.5 करोड़ इनकम टैक्सपेयर्स ने न्यू टैक्स रिजीम को चुना और लगभग 2.5 करोड़ लोग ने ओल्ड टैक्स रिजीम का चुना. हालांकि 6.5 करोड़ में से 70% से ज्यादा टैक्सपेयर्स ने 5 लाख रुपये या उससे कम की टैक्सेबल इनकम की सूचना दी.
इनकम टैक्स एक्सपर्ट CA अमित रंजन का मानना है कि ज्यादातर इंडिविजुअल टैक्सपेयर्स, खास तौर पर नौकरीपेशा लोग, प्रोफेशनल्स की मदद लिए बिना अपनी टैक्स लायबिलिटी की कैलकुलेशन खुद करते हैं. ऐसे में कौन सी टैक्स रिजीम का विकल्प ज्यादा फायदेमंद है, इसका चुनाव करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है. टैक्स स्ट्रक्चर को आसान बनाए जाने से थोड़ी राहत मिल सकती है.
इन विषयों पर भी दिया गया जोर
FICCI के सर्वे में उत्तरदाताओं ने टैक्स व्यवस्था को सरल बनाने, ग्रीन टेक्नोलॉजी/ रीन्युएबल और और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के विकास को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ डिजिटलीकरण के जरिये कंप्लायंस आसान बनाने के लिए एक मजबूत नीतिगत कदम उठाने का भी आह्वान किया.
इस सर्वे में टैक्स सर्टेनिटी प्रदान करने, कस्टम्स ड्यूटी की समीक्षा करने और TDS प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाने पर भी जोर दिया गया है.