मार्च 2024 तक बदलने वाली है भारतीय कंपनियों के बोर्ड रूम की सूरत! वजह जानते हैं?

कंपनी एक्ट, 2013 के मुताबिक, कोई स्वतंत्र निदेशक ज्यादा से ज्यादा 5-5 साल के दो कार्यकाल तक ही सेवा दे सकता है.

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देश के कॉरपोरेट सेक्टर में जल्द ही बहुत बड़ा बदलाव नजर आने वाला है. अगले साल मार्च तक करीब 200 कंपनियों में 400 स्वतंत्र निदेशकों (Independent Directors) के पद भरने की जरूरत होगी. इससे कई नामी-गिरामी कंपनियों के बोर्डरूम की सूरत बदल जाएगी. सवाल उठता है कि आखिर कंपनियों में नए स्वतंत्र निदेशकों को लाने की जरूरत क्यों पड़ रही है? इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं.

बदलाव की मूल वजह?

कॉरपोरेट सेक्टर में इस बदलाव के पीछे है कंपनी का कानून. कंपनी एक्ट, 2013 के मुताबिक, कोई स्वतंत्र निदेशक ज्यादा से ज्यादा 5-5 साल के दो कार्यकाल तक ही सेवा दे सकता है. अधिकतम कार्यकाल की सीमा खत्म होने की वजह से कंपनियों को स्वतंत्र निदेशकों के पद भरने होंगे.

इस एक्ट की एक और खास बात है. जिन निदेशकों ने कंपनी एक्ट में संशोधन की तारीख तक अपना अधिकतम कार्यकाल पहले ही पूरा कर लिया था, उन्हें अपने पद से हटने के लिए 10 साल का अतिरिक्त समय दिया गया था. इस अवधि को 'ग्रैंडफादरिंग पीरियड' के रूप में जाना जाता है. यह पीरियड 31 मार्च, 2024 को खत्म हो रहा है. इसी डेडलाइन को लेकर हलचल है.

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फिलहाल कैसे हैं हालात

देश के कॉरपोरेट सेक्टर के हालात कैसे हैं, इस पर भी नजर डालना जरूरी है. कॉरपोरेट गवर्नेंस और वोटिंग एडवाइजरी से जुड़ी एक नामी फर्म है- इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज (IiAS).

इस फर्म ने देश की बड़ी कंपनियों को लेकर हाल ही में स्टडी की है. इसके मुताबिक, देश की टॉप 500 कंपनियों में से लगभग 40% इस बदलाव से प्रभावित हो सकती हैं.

IiAS के मुताबिक, मार्च 2023 के अंत तक 198 कंपनियों में 375 स्वतंत्र निदेशक पहले ही 10 साल से ज्यादा समय तक सेवा दे चुके थे. इन निदेशकों में से करीब 90 ऐसे हैं, जो 20 से ज्यादा साल से पद पर बने हुए हैं. यह डेटा NSE500 इंडेक्स में शामिल कंपनियों के बारे में है. अनुमान है कि वास्तव में पद छोड़ने योग्य निदेशकों की तादाद कहीं ज्यादा हो सकती है.

वित्त वर्ष 2011 के अंत तक, 235 कंपनियों में कम से कम एक स्वतंत्र निदेशक ऐसा था, जिसने 10 साल से ज्यादा समय तक सेवा की थी. FY22 के अंत तक यह संख्या घटकर 213 और FY23 के अंत तक 198 रह गई. यानी पिछले दो साल के भीतर नए निदेशकों को लेकर कंपनियों में सुगबुगाहट कुछ तेज हुई है.

जानकारों का मानना है कि 'ग्रैंडफादरिंग पीरियड' के रूप में कंपनियों को अतिरिक्त 10 साल दिया जाना एकदम पर्याप्त था. इसके बावजूद, कंपनियों में स्वतंत्र निदेशकों के रूप में नए चेहरों को पेश करने की प्रक्रिया काफी धीमी रही. साल 2024 नई संभावनाओं के दरवाजे खोलेगा. कंपनियों को अपने बोर्ड के ढांचे में बदलाव के लिए अच्छा मौका है.

बोर्डरूम के अन्य मुद्दे

IiAS ने कंपनियों के बोर्डरूम से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी कई तथ्य पेश किए हैं. इसकी रिपोर्ट में कहा गया है कि 18 कंपनियों के बोर्ड का आकार 15 या उससे ज्यादा का है. इनमें एस्कॉर्ट्स, ITC, L&T और डाबर जैसी कंपनियां शामिल हैं.

ऐसा पाया गया है कि बड़े बोर्ड में परिवार के सदस्यों और प्रमोटर के प्रतिनिधियों को जगह मिलती है. बोर्ड का बड़ा आकार किसी फैसले तक पहुंचने की खातिर आम सहमति बनाने में बाधक होता है. कंपनियों के कामकाज में भी इससे जटिलता पैदा होती है. इससे बोर्डरूम के टैलेंट पर भी बुरा असर पड़ता है.

स्टडी से यह भी पता चला कि निदेशकों की औसत आयु 60 साल थी. यह आंकड़ा पिछले तीन साल में काफी हद तक स्थिर रहा है.

कंपनी एक्ट, 2013 के तहत, अप्रैल 2014 से बोर्ड में एक महिला निदेशक को शामिल करने की भी जरूरत थी. IiAS की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में एक साल के भीतर बोर्ड निदेशक पद संभालने वाली महिलाओं की संख्या दोगुनी हो गई. लेकिन कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से यह प्रगति धीमी पड़ गई है. मार्च, 2023 तक बोर्ड सीटों में महिलाओं की संख्या 18.2% थी. मार्च, 2020 में यह आंकड़ा 16.7% था.

उम्मीद की जानी चाहिए कि कंपनियों के बोर्डरूम में होने जा रहा बदलाव न केवल कॉरपोरेट सेक्टर, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मददगार साबित हो सकेगा.

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