कॉरपोरेट मंत्रालय को नहीं मिले बायजूज में पैसे की हेरफेर के सबूत, जांच एजेंसियों के पास नहीं जाएगा मामला: सूत्र

बायजूज के गवर्नेंस में कुछ कमियां छूट गई थीं, जिनके बारे में कंपनी ने खुद बताया और इन मामलों में जरूरी पेनल्टी लगाई गई: सूत्र

Source: Reuters/Canva

कॉरपोरेट मंत्रालय (MCA) का मानना है कि बायजूज (Byju's) के खिलाफ फंड्स की हेरफेर के आरोप निराधार हैं. भले ही कंपनी में गवर्नेंस से जुड़ी खामियां पाई गई हैं. ये जानकारी मंत्रालय के जांच दस्तावेजों से मिली है, जो सूत्रों के हवाले से NDTV Profit को हासिल हुए हैं.

मंत्रालय का कहना है कि 'खातों में छेड़छाड़ और पैसे की हेरफेर से जुड़े आरोप निराधार हैं और किसी भी जांच अधिकारी और दूसरे मंत्रालय, विभाग या प्रशासन को ऐसे किसी भी मामले की जांच सौंपने का इरादा नहीं है.'

रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय का कहना है कि कंपनी बढ़ते बिजनेस के बीच एक्सपर्ट्स की मदद से गवर्नेंस के बेहतर सिद्धातों को लागू करने में धीमी रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 'इसके चलते कुछ कमियां रह गईं, जो कंपनी ने खुद जाहिर कीं, जिसके बाद जरूरी जुर्माना लगाया गया, जिसे चुका दिया गया है. भले ही बायजूज बेहतर सिद्धांतों के पालन करने के लिए बाध्य नहीं थी, क्योंकि ये प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है, लेकिन इनका पालन कर कंपनी एक उदाहरण पेश कर सकती थी.'

रिपोर्ट में हालांकि बायजूज में बढ़ते खराब वर्क कल्चर का जिक्र नहीं है, जिसके तहत सेल्स एग्जीक्यूटिव्स को बेहद कठिन टारगेट्स दिए जाते थे. साथ ही रिपोर्ट में बायजू रवींद्रन या उनके परिवार के किसी सदस्य को किसी तरह के गैरकानूनी काम के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है.

अकाउंटिंग पॉलिसी में बदलाव पर भी आपत्ति नहीं

इसके अलावा मंत्रालय को उस तरह की अकाउंटिंग पॉलिसी चेंज में भी कोई समस्या नजर नहीं आई, जिसके जरिए स्टार्टअप पर अपनी आय को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के आरोप लगाए जा रहे थे.

जहां तक FY22 के नतीजे घोषित करने और AGM बुलाने में बायजूज की लगातार देरी की बात है, तो मंत्रालय ने पाया कि ऐसा मुमकिन है, जिसकी वजह ग्लोबल एक्सपेंशन, वित्त की कमी या फिर लगातार हो रहे विस्तार के चलते पर्याप्त अनुभव वाले पेशेवरों की कमी हो सकती है.

कम बजट के चलते डेलॉयट का इस्तीफा

डेलॉयट के इस्तीफे पर MCA का कहना है कि जिस ऑडिट फीस पर कंपनी और ऑडिटर के बीच सहमति बनी थी, उसमें डेलॉयट एक बड़ी टीम की तैनाती नहीं कर पा रही थी, जबकि बायजूज के कई अधिग्रहण के चलते ऐसा जरूरी थी.

वहीं पीक XV पार्टनर्स, चैन जुकरबर्ग और प्रोसस जैसे निवेशकों के इन्वेस्टर रिप्रेजेंटेटिव के बोर्ड छोड़ने पर मंत्रालय ने कहा कि कि ऐसा संभव है कि बायजूज के प्रोमोटर्स और डायरेक्टर्स अपने क्रियाकलापों में ज्यादा पारदर्शी रहे हैं.

Also Read: Prosus के 4,100 करोड़ रुपये डूबे; इन्वेस्टर फर्म ने बायजूज में पूरे निवेश को राइट ऑफ किया