Dabur India Brand Story: वॉशरूम से लेकर ड्रेसिंग रूम तक और किचन से लेकर बेडरूम तक, टूथपेस्ट से लेकर साबुन-शैंपू तक और तेल-घी से लेकर रूम फ्रेशनर तक. और फिर इस लिस्ट में हनी और च्यवनप्राश को कैसे भूल सकते हैं. FMCG सेक्टर के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक है- डाबर.
बहुत संभव है कि हमारे-आपके घरों में इस कंपनी का कोई न कोई आइटम दिख ही जाए. करीब 11,000 करोड़ के रेवेन्यू वाली इस कंपनी की कर्ताधर्ता है- बर्मन फैमिली (The Burman family), जो अब रेलिगेयर एंटरप्राइजेज का नियंत्रण लेने के इरादे को लेकर चर्चा में है. रेलिगेयर (Religare) ब्रोकरेज, इंश्योरेंस और फाइनेंसिंग सेक्टर में एक बड़ा नाम है.
इंटरनेशनल ब्रैंड्स को टक्कर देने की कूवत रखने वाली 'डाबर' ने कुछ महीनों, कुछ वर्षों या कुछ दशकों में ये मुकाम हासिल नहीं कर लिया, बल्कि इसके पीछे एक सदी से ज्यादा की मेहनत, नीयत और नीतियां हैं.
डाबर के अनोखे नाम की तरह इसके ब्रैंड बनने की कहानी भी अनोखी है, जिसकी शुरुआत होती है, ब्रिटिश इंडिया में वर्ष 1884 से. इसी साल डाबर नाम के कंपनी की नींव पड़ी.
एक वैद्य ने रखी नींव, ऐसे पड़ा 'DABUR' नाम
कलकत्ता के बर्मन परिवार में एक वैद्य थे, डाॅ एस के बर्मन (SK Burman). डाबर कंपनी बनाने से पहले अपनी छोटी-सी एक क्लिनिक में वे आयुर्वेदिक तरीके से मरीजों का इलाज किया करते थे. उन्हें आयुर्वेदिक दवाएं बनाने का भी शौक था.
उन दिनों हैजा और मलेरिया जैसी बीमारियों का प्रकोप था. बर्मन इन बीमारियों की दवाएं बनाने में लगे रहते. लोग उन्हें डाकटर (Daktar) कहकर बुलाया करते थे. उस दौर में आयुर्वेद में लोगों का खूब भरोसा था. बर्मन की दवाएं सस्ती भी होती थीं और कारगर भी. उनकी दवा से बहुत सारे मरीज ठीक होने लगे. एक समय तो उन्होंने साइकिल से भी दवाएं बेची. दवाओं की मांग बढ़ने लगी. वे ऑर्डर पर दूर-दराज दवाएं भेजने लगे.
साल आया- 1884, जब एस के बर्मन ने आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स कंपनी की नींव रखी. डाकटर (Daktar) के DA और अपने सरनेम बर्मन (Burman) के BUR को मिलाकर उन्होंने कंपनी का नाम रखा- डाबर (DABUR). इस कंपनी के बैनर तले वो आयुर्वेदिक हेल्थकेयर प्रोडक्ट और दवाएं बनाने लगे.
लोकप्रियता और मांग बढ़ी, बढ़ता गया कारोबार
1896 तक डाबर के प्रोडक्ट इतने लोकप्रिय हो गए कि उन्हें एक फैक्ट्री लगानी पड़ी. 1900 की शुरुआत में डाबर ने नेचर बेस्ड आयुर्वेदिक दवाओं के क्षेत्र में एंट्री मारी. कारोबार चल पड़ा था. 1907 में डॉ एस के बर्मन का निधन हो गया. इसके बाद कंपनी की बागडोर संभाली उनके बेटे सी एल बर्मन ने.
1919 में सी एल बर्मन ने रिसर्च लैब शुरू किया और डाबर के प्रोडक्ट्स का विस्तार किया. 1936 में डाबर इंडिया (Dr. SK Burman) प्राइवेट लिमिटेड नाम से ये एक कंपनी बन गई.
डाबर की कमान धीरे-धीरे सी एल बर्मन के दो बेटों पूरन और रतन चंदन ने संभाली. पूरन प्रोडक्शन देखते थे, जबकि रतन मार्केटिंग का काम. दोनों की अगुवाई में कंपनी ने 1940 के दशक में डाबर आंवला हेयर ऑयल लॉन्च किया, जो अपने तरह का पहला प्रोडक्ट था.
एक पीढ़ी ने अगली पीढ़ी को तैयार किया
कारोबार बढ़ता जा रहा था और दूसरी ओर परिवार भी. संयुक्त परिवार होना कंपनी की कामयाबी के पीछे एक अहम पहलू था. एक ही छत के नीचे 7 परिवार रहते थे. खाना-पीना साथ होता था और अक्सर व्यवसाय बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा भी होती रहती थी. इस तरह एक पीढ़ी ने अगली पीढ़ी को तैयार किया.
कोलकाता से दिल्ली शिफ्ट हुई कंपनी
कोलकाता में डाबर का कारोबार ठीक चल रहा था, लेकिन 1960 के दशक के अंत में पश्चिम बंगाल में शुरू हुए नक्सली आंदोलन के कारण सामाजिक, राजनीतिक उथल-पुथल के बीच उद्योग-धंधे प्रभावित होने लगे. ट्रेड यूनियन की आक्रामकता के बीच भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और बिड़ला ग्रुप जैसी कई कंपनियों ने अपने मुख्यालय ट्रांसफर कर लिया. बर्मन फैमिली ने भी दिल्ली को अपना ठिकाना बनाया. 1972 से डाबर का कामकाज दिल्ली से चलने लगा. तब से यहीं कंपनी का मुख्यालय है.
पहला IPO, बाहरी कमान और रिकॉर्ड टर्नओवर
1994 में डाबर ने IPO लेकर आया. कंपनी पर भरोसे के चलते इसका IPO 21 गुना ज्यादा सब्सक्राइब हुआ. 1996 में कंपनी हेल्थकेयर, फैमिली प्रोडक्ट और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट तीन हिस्सों में बंटी.
अपनी बुक 'They Meant Business: 50 Inspiring Stories from Indian Biz' में रोजमेरी मरांडी ने बताया है कि 1998 तक डाबर की कमान बर्मन परिवार की चौथी और पांचवीं पीढ़ी के पास थी. इस दौरान ही डाबर ने हेयर ऑयल से लेकर च्यवनप्राश और टूथपेस्ट जैसे प्रोडक्ट्स मार्केट में उतारे.
बिजनेस को और तेजी से बढ़ाने के लिए बर्मन फैमिली ने बाहरी विशेषज्ञ से सलाह लेने की सोची. ग्लोबल फर्म मैकिन्से एंड कंपनी ने बर्मन परिवार को व्यवसाय का नियंत्रण छोड़ने का सुझाव दिया.
1998 में पहली बार बर्मन फैमिली से बाहर, कंपनी की कमान प्रोफेशनल के हाथ में सौंपी गई और 2 साल बाद ही वर्ष 2000 में कंपनी का टर्नओवर 1 हजार करोड़ रुपये के पार पहुंच गया.
21वीं सदी में अधिग्रहण का दौर
डाबर इंडिया का विस्तार 21वीं सदी में काफी तेजी से हुआ. कंपनी ने धड़ाधड़ कई अधिग्रहण भी किए और अपने शेयरहोल्डर्स को मालामाल भी किया. 2005 में 143 करोड़ रुपये में बलसारा का अधिग्रहण किया. फिर 2008 में फेम का अधिग्रहण किया. दोनों ही अपने-अपने सेक्टर की लीडिंग कंपनियां रही हैं.
और फिर 2010 में इसने पहली विदेशी कंपनी का अधिग्रहण किया. कंपनी ने तुर्की की लीडिंग पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स कंपनी होबी कोज़मेटिक ग्रुप (Hobi Kozmetik Group) को 69 मिलियन डॉलर में खरीदा. इसी साल अमेरिका की नमस्ते लेबोरेटरीज में भी 100% इक्विटी का अधिग्रहण किया. 2011 में कंपनी ने अजंता फार्मा के ओवर-द-काउंटर ब्रांड '30-प्लस' का अधिग्रहण किया.
इनोवेशन पर फोकस, फैसलों से चौंकाया
डाबर का फोकस इनोवेशन पर रहा है. कंपनी तुरंत फैसले लेने में आगे रही है और कई मौकों पर चौंकाया भी है. कोरोना महामारी के दौर में जहां अन्य कंपनियां फूंक-फूंक कर कदम रख रही थीं, उस दौरान डाबर ने आक्रामक तरीके से प्रोडक्ट लॉन्च करने का फैसला लिया.
अपने 9 प्रमुख ब्रैंड्स (च्यवनप्राश, हनी, हनीटस, पुदीन हरा, लाल तेल, आंवला, रेड पेस्ट, रियल जूस और वाटिका) सेगमेंट में कंपनी ने कई प्रोडक्ट्स लॉन्च किए.
हाल के 10-12 वर्षों में डाबर इंडिया ने एक के बाद एक कई फाइनेंशियल रिकॉर्ड बनाए. मार्केट कैप से लेकर सेल, रेवेन्यू और प्रॉफिट तक कंपनी का रिकॉर्ड पॉजिटिव रहा है.
कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ
वित्त वर्ष 2023 में कंपनी की बिक्री 5.9% बढ़कर 11,529.89 करोड़ रुपये हो गयी. नेट प्रॉफिट भी 1,707.15 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. मौजूदा कारोबारी साल में पहली तिमाही नतीजे अनुमान के मुताबिक शानदार रहे हैं.
रेलिगेयर का नियंत्रण लेने का इरादा
बर्मन परिवार (The Burman family) ने रेलिगेयर एंटरप्राइजेज (Religare Enterprises) में 26% हिस्से के लिए 2116 करोड़ रुपये का ओपन ऑफर लाने का ऐलान किया है. बर्मन परिवार की डाबर में कंट्रोलिंग हिस्सेदारी है. एक्सचेंज फाइलिंग में बताया गया है कि परिवार की हिस्सेदारी बढ़ाने और रेलिगेयर एंटरप्राइजेज का नियंत्रण लेने के इरादे से ये ओपन ऑफर लाया गया है. इस ओपन ऑफर के बाद रेलिगेयर एंटरप्राइजेज में बर्मन परिवार की हिस्सेदारी 21% से बढ़कर 51% होने की उम्मीद है.
डाबर और बर्मन फैमिली को क्या हासिल होगा?
कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, हेल्थकेयर जैसे सेक्टर में स्थापित डाबर इंडिया की मालिक बर्मन फैमिली अब वित्तीय सेवाओं (Financial Services) में अपनी उपस्थिति स्थापित करने की योजना बना रही है. रेलिगेयर इंटरप्राइजेज, इंश्योरेंस, फाइनेंसिंग, ब्रोकरेज जैसे सेक्टर की लीडिंग कंपनियों में से एक है.
इंश्योरेंस: 'केयर हेल्थ इंश्योरेंस लिमिटेड' के नाम से देश की दूसरी सबसे बड़ी स्टैंडअलोन हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी है. हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में 5.3% मार्केट शेयर है.
फाइनेंस: रेलिगेयर फिनवेस्ट और रेलिगेयर हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्प, छोटे व्यवसाय और किफायती हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर की कंपनियां हैं.
ब्रोकिंग: रेलिगेयर ब्रोकिंग लिमिटेड, इसके पास 10 लाख से अधिक ग्राहक और 1.4 लाख से अधिक एक्टिव क्लाइंट्स हैं. कंपनी कैश, फ्यूचर एंड ऑप्शंस और करेंसी में रिटेल ब्रोकिंग सेवाएं देती है.
ई-गवर्नेंस: इस सेगमेंट में कंपनी, PAN-TAN रजिस्ट्रेशन और TCS-TDS रिटर्न दाखिल करने के लिए नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के साथ फैसिलेशन पार्टनर है. ये एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया के साथ म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर के रूप में भी रजिस्टर्ड है.
डाबर इंडिया के एमेरिटस चेयरमैन आनंद सी बर्मन ने कहा कि, 'प्रस्तावित ओपन ऑफर के बाद हम रेलिगेयर एंटरप्राइजेज को फाइनेंस सेक्टर की एक बड़ी कंपनी बनाएंगे, जो लेंडिंग, ब्रोकिंग और हेल्थ इंश्योरेंस सेवाएं देगी'.
(Source: Dabur India Website, Bloomberg, PTI, 'They Meant Business' Book, Religare, groww.in/stocks/dabur-india-ltd, X@Dabur etc.)