माइनिंग रॉयल्टी पर सरकार को 2 महीने में लेना होगा फैसला, SC के ऑर्डर से खनन कंपनियों को राहत की उम्मीद

कोर्ट ने सुनवाई में मौजूदा माइनिंग रेगुलेशंस में 'कैस्केडिंग और कंपाउंडिंग इफेक्ट' पर चिंता भी जताई और कहा कि इससे लीजहोल्डर्स पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी पड़ता है.

प्रतीकात्मक फोटो

माइनिंग रॉयल्टी विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को 2 महीने के भीतर पब्लिक कंसल्टेशन पूरा कर अंतिम फैसला लेने का निर्देश दिया है. दरअसल पिटीशनर का कहना है कि उन्हें कई खनिजों में 'रॉयल्टी पर रॉयल्टी' देनी पड़ती है. मतलब एक महीने के लिए चुकाई गई रॉयल्टी को अगले महीने के रॉयल्टी कैलकुलेशन में भी शामिल किया जा रहा है.

माना जा रहा है कि इस ऑर्डर से माइनिंग कंपनियों को राहत मिलने की उम्मीद बढ़ गई है. कोर्ट ने रॉयल्टी नियमों को समानता के अधिकार का उल्लंघन भी बताया है. दरअसल माइनिंग कंपनियों को राज्य सरकारों को खनिजों पर रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन की अनुमति देने वाले अगस्त 2024 में आए SC के फैसले से तगड़ा झटका लगा था.

रॉयल्टी कैलकुलेशन में संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन: SC

कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई में मौजूदा माइनिंग रेगुलेशंस में 'कैस्केडिंग और कंपाउंडिंग इफेक्ट' पर चिंता भी जताई और कहा कि इससे लीजहोल्डर्स पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी पड़ता है. कोर्ट ने ये भी कहा कि इन नियमों के चलते संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन भी हो रहा है, जो समानता का अधिकार सुनिश्चित करता है.

इस फैसले से टाटा स्टील, JSW स्टील, SAIL जैसी अन्य माइनिंग कंपनियों को राहत मिलने की उम्मीद बढ़ गई है. सबसे बड़ी संभावित राहत टाटा स्टील को मिलेगी, जिसके ऊपर पिछले फैसले से करीब 17,346 करोड़ रुपये की लायबिलिटी बढ़ गई थी.

नुवामा के मुताबिक SAIL, JSW स्टील जैसी कंपनियों को भी 2000-4000 करोड़ रुपये की लायबिलिटी में भी राहत मिल सकती है.

जानें रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन से किस कंपनी पर कितना भार बढ़ा था:

दरअसल माइन्स एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट 1957 के सेक्शन 9 के जरिए खनन के लिए सरकार को रॉयल्टी देना जरूरी होता है. इसी सेक्शन में केंद्र सरकार को रॉयल्टी रेट में हर तीन साल में एक नोटिफिकेशन के जरिए बदलाव का अधिकार दिया गया है. सरकार ने 2016 में खनिजों पर रॉयल्टी के लिए नए नियम भी बनाए थे. ताजा विवाद इन्हीं नियमों से तय हो रही रॉयल्टी से जुड़ा है.

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