मिडिल क्लास की खपत में गिरावट लंबे समय तक जारी रहने की आशंका, जानिए क्यों?

नंदिता राजहंसा और सौरभ मुखर्जी ने मार्सेलस ब्लॉग में लिखा है कि 5-10% भारतीय कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं.

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मिडिल क्लास (Middle Class) के लोग संपत्ति बनाने और अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए जिन वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करते हैं, उनमें मंदी लंबे समय तक जारी रहने की आशंका है. इस बात को लोन और बचत ट्रेंड्स का विश्लेषण करने के बाद नंदिता राजहंसा और सौरभ मुखर्जी कहा है.

मार्सेलस ब्लॉग में लेखकों ने कहा कि पूंजीगत वस्तुओं और सेवाओं के निर्माण के बजाय उपभोग के लिए भारतीय परिवारों के बीच बढ़ते लोन पर अधिक जोर है.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के मुताबिक, भारत में निजी खपत 2022-23 में 5.3% तक धीमी हो गई है, जबकि 2019-20 में ये 7.9% थी. दूसरी ओर, GDP के परसेंट के रूप में भारत की नेट राष्ट्रीय बचत पिछले 50 वर्षों में सबसे निचले स्तर पर थी.

मिडिल क्लास के लोग एंट्री-लेवल कारों, स्कूटरों और कंप्यूटर, टेलीविजन और वाशिंग मशीन जैसे वस्तुओं की मांग करते हैं. वे रेल टिकट और FMCG उत्पादों पर भी निवेश करते हैं. लेख के अनुसार, इन प्रोडक्ट्स की मांग कम रहेगी क्योंकि वे कम बचत के साथ लोन के बोझ से जूझ रहे हैं.

खपत में कमी के कारण भारत के कुछ शहरों में मांग की तुलना में फ्लैटों की सप्लाई में ग्रोथ दर्ज की जाने लगी है. निर्माण करने वाली चींजो में भी मांग में भी गिरावट आई है.

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मार्सेलस ब्लॉग में अपने पिछले लेख का हवाला देते हुए मुखर्जी और राजहंसा ने कहा कि 5-10% भारतीय कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं. वे अपने डेली खर्च को पूरा करने और अपने कर्ज की अदायगी को जारी रखने के लिए कई लोन ले रहे हैं.

भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चला है कि पिछले दशक में रिटेल लोन डिस्ट्रीब्यूशन में भी उछाल आया है. वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) से पता चला है कि 45% उधारकर्ता सबप्राइम हैं, जिसका अर्थ है कि उनके पास लोन जोखिम है और उनके डिफॉल्ट होने की सबसे अधिक संभावना है.

पिछले दशक में, भारतीयों ने तेजी से उधार लिया है. एसेट बनाने के लिए नहीं बल्कि उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लिया है. इसके अलावा, खाद्य कीमतों में उछाल के बावजूद उनकी आय स्थिर रही. इसने भारतीयों को दुनिया भर में सबसे अधिक ऋणी बना दिया है. अमेरिका और चीन को पीछे छोड़ दिया है. GDP के परसेंट के रूप में भारत का गैर-आवासीय घरेलू लोन दक्षिण कोरिया के बाद दूसरे स्थान पर है.

गैर-आवासीय ऋणों में उछाल 2020 के बाद देखा गया जब महामारी ने पूरी दुनिया को हिला दिया था. अब, भारत उन देशों से आगे निकल गया है जो परंपरागत रूप से ज्यादा खपत के लिए जाने जाते हैं.

जब तक भारतीय अपने लोन के बोझ को कम करने में व्यस्त रहेंगे, वे संपत्ति बनाने के लिए कोई भी फंड आवंटित करने से परहेज करेंगे. तो वो उन्हें लोन के जाल में फंसाए रखेगा.