जानिए क्यों जोमैटो की बढ़ती लागत से डूबे छोटे रेस्त्रां, मुनाफा हुआ खत्म?

छोटे रेस्त्रां मालिकों ने NDTV प्रॉफिट के साथ बातचीत में बताया कि उन्हें ज्यादा कमिशन और ग्रोथ की उम्मीद थी, लेकिन अब उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

Source: Company X

छोटे रेस्त्रां मालिक जोमैटो (Zomato) के साथ जुड़कर अपने बिजनेस को बढ़ाने को उम्मीद कर रहे थे, अब वे फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. छोटे रेस्त्रां मालिकों ने NDTV प्रॉफिट के साथ बातचीत में बताया कि उन्हें ज्यादा कमिशन और ग्रोथ की उम्मीद थी. लेकिन अब उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

कैसे हो रहा है नुकसान?

बेंगलुरु में आइसक्रीम स्टोर स्कूपफुल के मालिक ए रेवंत दिनेश एक स्टोर चलाते हैं और 6 ऑनलाइन लोकेशन ऑपरेट करते हैं. दिनेश कुछ समय से जोमैटो से जुड़े हुए हैं. अप्रैल के महीने में दिनेश ने 17,000 रुपये की बिक्री की, इसमें से उन्होंने 30% लगभग 5,500 रुपये कमीशन का पेमेंट किया और विज्ञापन के लिए 10,000 रुपये दिए. उनके पास मात्र 1500 रुपये बचे. कुल मिलाकर उनको नुकसान उठाना पड़ा है.

दिनेश ने अफसोस जताते हुए कहा, 'मुझे प्लेटफॉर्म पर लिस्टिंग के बाद ही खर्चों का चक्र समझ में आया, जबकि मैंने सोचा था कि लिस्टिंग से मुझे फायदा मिलेगा, लेकिन प्लेटफॉर्म पर विज्ञापनों पर लगातार खर्च किए बिना मैं ऐसा नहीं कर सकता.'

उन्होंने कहा, 'अगर मैं विज्ञापनों पर खर्च करना बंद कर देता हूं, तो प्लेटफॉर्म मेरी दुकान का प्रचार नहीं करता है और अगर कोई रेस्त्रां खोजकर ऑर्डर भी करता है तो प्लेटफॉर्म डिलीवरी पार्टनर नियुक्त नहीं करता है.'

दिनेश अब इस महीने के अंत तक जोमैटो से बाहर निकलने जा रहे हैं.

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इसी तरह नोएडा की सोनी कुमारी, जो एक मीडियम साइज के रेस्त्रां सफ्रोमा की मालकिन हैं, उनकी भी कहानी कुछ ऐसी ही है. जोमैटो पर लिस्टिंग के सात महीने बाद वो जितना कमा रही हैं, उससे ज्यादा गवां रही हैं. दिनेश की तरह वो भी 30% कमीशन, 14 रुपये प्रति किलोमीटर डिलीवरी शुल्क देती हैं और हर ऑर्डर के लिए विज्ञापनों और छूट पर खर्च करती हैं. उन्होंने कहा कि शुरुआत में जोमैटो के अधिकारियों ने हमें बहुत भरोसा दिलाया था कि उनके साथ जुड़ने से मेरे बिक्री ऑर्डर बढ़ेंगे, लेकिन एक बार जब मैं जुड़ी, तो खर्च बढ़ता ही गया. सोनी कुमारी भी जोमैटो से बाहर निकल गयी हैं.

सबके लिए एक जैसी नहीं है सर्विस

गुरुग्राम के वंदित मलिक शिकायत करते हैं कि व्यवस्था सबके लिए एक समान नहीं है. उन्होंने कहा, 'मैकडॉनल्ड्स, डोमिनोज और अन्य जैसी बड़ी फूड चेन बहुत कम कमीशन देती हैं, अक्सर बड़ी छूट नहीं देती हैं और विज्ञापनों पर भारी खर्च किए बिना ही लोगों तक पहुंच बना लेती हैं.'

उनका दावा है कि जहां अधिकांश छोटे बिजनेस 22-30% कमीशन देते हैं. वहीं बड़ी फूड चेन लगभग 8-9% कमीशन देती हैं. मलिक गार्लिक ब्रेड नामक एक ब्रांड के मालिक हैं और उनके चार क्लाउड किचन हैं जहां वे विभिन्न ब्रांडों के तहत विभिन्न प्रकार के फूड प्रोडक्ट बेचते हैं.

मलिक ये भी शिकायत करते हैं कि जोमैटो के ग्रोथ मैनेजर कोई मदद नहीं करते हैं और केवल व्यवसायों को अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं.

उन्होंने कहा, 'ग्रोथ मैनेजर ने मुझे कोई ग्रोथ नहीं दी है, वे हमें प्रतिस्पर्धियों के आधार पर कितनी छूट देनी है, इस बारे में जानकारी देते रहते हैं. जिससे मेरा और पैसा खर्च होता है. दूसरों की तरह, मलिक को भी घाटा हुआ है और उन्होंने पहले ही अपने तीन क्लाउड किचन बंद कर दिए हैं और आखिरी को भी बंद करने की योजना बना रहे हैं.

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छोटे रेस्टोरेंट मालिकों में निराशा

हाल ही में देश भर के छोटे रेस्टोरेंट मालिकों ने जोमैटो के साथ अपनी बढ़ती निराशा को व्यक्त करने के लिए एक्स और लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लिया है. ये प्लेटफॉर्म अब लगातार शिकायतों और बढ़ती निराशा को व्यक्त करने वाले पोस्ट से भरे हुए हैं. कई रेस्टोरेंट मालिकों ने प्लेटफॉर्म को पूरी तरह से छोड़ने का विकल्प चुना है.