सरकार अपने नियंत्रण में ले पीडीएस दुकानें : वधवा समिति की सिफारिश

उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीपी वधवा की अध्यक्षता वाली समिति ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने के लिए उचित दर की दुकानों का नियंत्रण सरकार को अपने हाथ लेने की सिफारिश की है।

उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डीपी वधवा की अध्यक्षता वाली समिति ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने के लिए उचित दर की दुकानों का नियंत्रण सरकार को अपने हाथ लेने की सिफारिश की है। समिति ने गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वालों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सब्सिडी पर खाद्य सामग्री देने की व्यवस्था खत्म करने की भी सिफारिश की है।

उच्चतम न्यायालय को सौंपी गई अपनी अंतिम रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वधवा समिति ने उचित दर दुकानों के मालिकों, ट्रांसपोर्टर, नौकरशाह और नेताओं में सांठ-गांठ का जिक्र करते हुए कहा है कि उसकी सिफारिशों को लागू करके ही इस पर अंकुश लगाया जा सकेगा।

समिति ने कहा है कि उचित दर दुकान ही भ्रष्टाचार का केन्द्र बिन्दु है जहां जनता को ठगने के लिऐ इसके मालिक, ट्रांसपोर्टर, नौकरशाह और नेताओं में सांठ-गांठ है। समिति के अनुसार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के खाद्यान्न की काला बाजारी के कारण असल लोग इसके लाभ से वंचित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में बेहतर होगा कि भ्रष्ट उचित दर दुकानों का संचालन सरकार अपने हाथ में ले ले।

इसके लिए आवश्यक है कि राज्यों में नागरिक आपूर्ति निगम का गठन हो जो उचित दर दुकानों पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत स्वतंत्र रूप से उचित दर दुकान के स्तर पर खाद्यान्न वितरण का काम करे।

वधवा समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि उचित दर की दुकानें निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित करने की बजाय बेहतर होगा यदि राज्य स्तर पर निगम, पंचायती राज संस्थाएं, सहकारी समितियां और महिलाओं के स्व-संचालित समूह इनका संचालन करें।

समिति ने कहा है, ‘‘कॉर्पोरेशन के संचालन में होने वाले किसी भी नुकसान की भरपाई के लिए सरकार के बजट में प्रावधान होना चाहिए। जहां पर उचित दर दुकानों के लिए दुकान और गोदाम नहीं हैं वहां सरकार और निगम को मदर डेयरी या एटीएम या डाकघर की तर्ज पर इनका निर्माण करना चाहिए। इस तरह के निगम की कमान भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को दी जानी चाहिए।’’

वधवा समिति ने कहा कि गरीबी की रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले परिवारों की श्रेणी खत्म की जानी चाहिए क्योंकि यह खाद्यान्न काला बाजार में भेजने का एक बड़ा जरिया है। समिति ने कहा है कि यदि न्यायालय महसूस करता है कि इस श्रेणी को खत्म करना संभव नहीं है तो इस वर्ग का दायरा एक लाख रुपए की सालाना आमदनी वाले परिवारों तक सीमित करने पर विचार किया जा सकता है।

समिति के अनुसार प्रधान मंत्री से लेकर निचले स्तर पर सभी सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने और इसे पुनर्गठित करने की हिमायत कर चुके हैं। इस प्रणाली के पुनरुद्धार के लिए कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में पांच लाख से अधिक उचित दर दुकानों से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत खाद्यान्न वितरित किया जाता है। इसके तहत ही केन्द्र सरकार एपीएल और बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के लिए राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को खाद्यान्न आवंटित करती है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के संचालय के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की संयुक्त जिम्मेदारी होती है। केन्द्र सरकार जहां खाद्यान्न खरीदने, भंडारण, उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाने और थोक में उसके आवंटन की जिम्मेदारी देखता है वहीं राज्य सरकार के पास उचित दर दुकानों के जरिये उपभोक्ताओं में इसके वितरण की जिम्मेदारी है।

लेखक NDTV Profit Desk
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