अगर आपने हाल के सालों में किसी IPO (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) में निवेश किया है, तो संभावना है कि आपके आधे से ज्यादा पैसे कंपनी की ग्रोथ में नहीं लगे होंगे, बल्कि ये मौजूदा शेयरहोल्डर्स को नकद में मिला होगा. प्राइम डेटाबेस के मुताबिक पिछले दशक में IPO की मिलने वाले 60-80% हिस्सा ऑफर फॉर सेल यानी OFS से आया है. इसका मतलब है कि IPO के जरिये जुटाए गए हर 100 रुपये में से सिर्फ 20-40 रुपये ही ग्रोथ के लिए नई पूंजी है, जबकि बाकी मौजूदा शेयर होल्डर्स अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं.
OFS स्ट्रक्चर विभिन्न प्रकार के पुराने शेयर होल्डर्स के लिए एग्जिट यानी कंपनी से बाहर निकलने या अपनी हिस्सेदारी कम करना का जरिया है, लेकिन दिक्कत ये है कि सेलर्स की दो सबसे बड़ी कैटेगरी में कंपनी के प्रोमोटर और प्राइवेट इक्विटी/वेंचर कैपिटल निवेशक हैं.
2020 से प्रोमोटरों ने सभी OFS बिक्री का 44-77% हिस्सा लिया है, जिससे वे सबसे बड़े सेलर्स बन गए हैं. कई प्रोमोटर IPO का इस्तेमाल नियंत्रण बनाए रखते हुए धीरे-धीरे अपनी होल्डिंग कम करने के तरीके के रूप में करते हैं. इसके विपरीत प्राइवेट इक्विटी/वेंचर कैपिटल निवेशक आमतौर पर OFS राशि का 5-19% योगदान करते हैं, क्योंकि वे अपने शुरुआती फेज में स्टार्टअप को फंड करने के बाद अपने निवेश से बाहर निकलना चाहते हैं.
प्राइम डेटाबेस के MD प्रणव हल्दिया ने बताया, प्राइवेट इक्विटी/वेंचर कैपिटल की सेलिंग का बढ़ना भारत में उद्योग के विकास से जुड़ा है. 2000 के दशक की शुरुआत में उभरी निजी इक्विटी और वेंचर कैपिटल फर्में IPO को एक एग्जिट स्ट्रैटेजी के रूप में इस्तेमाल करती हैं. लेकिन वे केवल बेचने वाली कंपनियां नहीं हैं - कंपनी के प्रमोटर अक्सर बड़ी हिस्सेदारी भी बेच देते हैं.
क्या निवेशकों को चिंतित होना चाहिए?
ऐसे IPO को लेकर अक्सर संदेह होता है, जहां ऑफर का एक बड़ा हिस्सा OFS होता है. कई निवेशकों को डर है कि अंदरूनी लोगों के पैसे निकालने का मतलब है कि उन्हें अब कंपनी के भविष्य पर भरोसा नहीं है. हालांकि, हिस्टोरिकल डेटा इस धारणा को चुनौती देते हैं.
हल्दिया ने बताया कि 90 के दशक और 2000 के दशक की शुरुआत में IPO का एक बड़ा हिस्सा नई पूंजी से बना था. ये जरूरी नहीं कि बेहतर स्टॉक परफॉरमेंस में तब्दील हो.
IPO में निवेश करने वालों के लिए मुख्य बात ये है कि IPO का स्ट्रक्चर - चाहे वो OFS हो या फ्रेश कैपिटल -हैवी इश्यू. इसकी सफलता का निर्धारण नहीं करती है. जो मायने रखता है वो है कंपनी के व्यावसायिक बुनियादी सिद्धांत, विकास रणनीति और उद्योग का दृष्टिकोण.