19 मई को सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमिटी (SC Expert Committee) ने अदाणी ग्रुप को क्लीनचिट दी. इसके बाद से अदाणी ग्रुप के शेयरों में उछाल जारी है. अदाणी ग्रुप पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट (Hindenburg Report) से क्या सीखना चाहिए और मार्केट रेगुलेटर SEBI की इस पर क्या भूमिका बनती है, इस पर बात BQ प्राइम ने बात की स्टेकहोल्डर एंपॉवरमेंट सर्विसेज (Stakeholder Empowerment Services) के मैनेजिंग डायरेक्टर JN गुप्ता से.
SEBI के पास पर्याप्त रेगुलेशंस
अदाणी हिंडनबर्ग पर SEBI की सावधानी बरतने पर गुप्ता मानते हैं कि मार्केट रेगुलेटर के पास पहले से ही इतने नियम और तरीके हैं, जिनसे वो मार्केट में किसी भी तरह के व्यवधानों की जांच कर सकता है.
जहां तक मार्केट रेगुलेटर की पहुंच है, उन पर SEBI कार्रवाई भी करता है. हिंडनबर्ग रिपोर्ट का सवाल है, तो हिंडनबर्ग जिस देश में है, वहां पर SEBI के नियम लागू नहीं हो सकते. वहीं, अगर कोई भारतीय संस्था अदाणी ग्रुप या किसी दूसरी कंपनी पर फर्जी रिपोर्ट दाखिल कर बाजार की व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश करती, तो उस पर जरूर एक्शन लिया जाता.
जे एन गुप्ता कहते हैं कि - 'जब मेरी कंपनी एक रिपोर्ट जारी करती है, तो मुझे कानून का पालन करना पड़ता है, मैं SEBI के नियमों को मानता हूं, 'दुर्भाग्य से, इस तरह की स्थिति में जब हिंडनबर्ग एक रिपोर्ट जारी करता है, SEBI के नियम उस पर लागू नहीं होते, इसलिए SEBI किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में असमर्थ है.'
BQ प्राइम हिंदी के सवाल पर कि क्लीन चिट मिलने के बाद SEBI के काम करने के ढंग में क्या बदलाव आ सकते हैं-
इस पर गुप्ता कहते हैं कि किसी नियम को बदले जाने की जरूरत नहीं है. बाजार को ठीक तरह से चलाने के लिए SEBI के पास पहले से ही सारे अधिकार हैं. जरूरत है तो बस इनको बेहतर तरीके से समझने की.
वो आगे कहते हैं, अदाणी हिंडनबर्ग रिपोर्ट में SC एक्सपर्ट कमिटी ने अदाणी ग्रुप को क्लीनचिट दी. इसके बाद भी यह मामला चल रहा है. आमतौर पर ऐसे मामले, जिन पर देश दुनिया की नजर पड़ जाती है और वे राजनीति का मुद्दा बन जाते हैं, तो कोई भी संस्था इस पर अपनी कार्रवाई पूरी करने की मुहर लगाने से बचना चाहती है.
मान लीजिए कि किसी संस्था के अधिकारी ने जांच पूरी होने की बात कर विषय पर जांच बंद कर दी और आने वाले 2-3 साल में रिपोर्ट पर कुछ नया खुलासा हुआ. तो ऐसे मौके पर उस अधिकारी के लिए कुछ भी कर पाना चुनौती भरा हो जाता है. यही कारण है कि जांच को अनंत समय तक चलने के लिए छोड़ दिया जाता है. अब ये संस्था और अधिकारी के लिए भी मुनासिब रास्ता बचता है. ऐसे मौके पर अधिकारियों को सुरक्षित रखना जरूरी हो जाता है, ताकि जांच समय से पूरी हो सके.
SEBI ने जांच में पाया कि कुल 6 एंटिटीज थीं, जिन्होंने अदाणी हिंडनबर्ग रिपोर्ट से पहले अदाणी ग्रुप के शेयर शॉर्ट किए. इनमें से कुछ ऐसे होंगे, जिन्होंने जान बूझकर ये किया और कुछ ने रिपोर्ट से अनजान होकर शेयर शॉर्ट किए होंगे. इनको SEBI कैसे अलग करेगा.
इस सवाल पर जे एन गुप्ता कहते हैं कि 'आमतौर पर निवेशक शेयर शॉर्ट करते हैं. SEBI के पास वो तमाम डेटा मौजूद है, जिसके आधार पर वो उन निवेशकों में भेद कर सके कि किसने जानकर शेयर शॉर्ट किए और किसने अनजाने में. जिन 6 ने शेयर शॉर्ट किए उनमें 4 विदेशी एंटिटीज थीं, एक को-ऑपरेट एंटिटी और एक इंडिविजुअल. इन 6 के ट्रेडिंग पैटर्न, हिस्ट्री और इस ट्रेडिंग में किसी कानून का उल्लंघन के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है.
अदाणी हिंडनबर्ग रिपोर्ट से सबसे ज्यादा नुकसान रिटेल निवेशकों को उठाना पड़ा. क्या इस पर मार्केट रेगुलेटर कुछ कर सकता है?
इस सवाल पर JN गुप्ता बताते हैं कि अगर ये सोचा जाए कि मार्केट रेगुलेटर इस पर निवेशकों को मुआवजा दे, तो यह संभव नहीं होगा.
ऐसे मौकों से बचने के लिए निवेशकों को जितनी शिक्षा दी जाए, वही जरूरी है. निवेशकों को समझदारी से फैसले लेने के लिए मार्केट रेगुलेटर ट्रेनिंग दे सकते हैं, लेकिन बाजार में जुआ लगाने वाले निवेशकों को कोई नहीं बचा सकता है. फिर बात चाहे मार्केट कैश हो या F&O, रिस्क हमेशा ही निवेशकों के साथ चलता है.
जे एन गुप्ता कहते हैं कि 'देखा जाए तो हिंडनबर्ग गलत नहीं था क्योंकि उसने तो यही कहा कि ये सब करके उसका मकसद सिर्फ पैसा बना है, इसे लेकर वो बिल्कुल पारदर्शी था, लेकिन भारत में वो लोग जो फंस गए और जिन्होंने हिंडनबर्ग को सपोर्ट किया, ये जाने बिना की हिंडनबर्ग की मंशा क्या है, वो ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने अंदर झांककर देखना चाहिए, उन्होंने अपने लिए क्या नुकसान किया है.'