जो प्रोमोटर्स अपनी कंपनियों पब्लिक से प्राइवेट करना चाहते हैं, यानी अपनी कंपनियों को शेयर बाजार से डीलिस्ट करना चाहते हैं, उनके लिए मार्केट रेगुलेटर SEBI ने एक फिक्स्ड प्राइस मैकेनिज्म को पेश किया है. इस कदम का मकसद कंपनियों के लिए पब्लिक से प्राइवेट में ट्रांजिशन को आसान बनाना और माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स के साथ उचित व्यवहार शामिल है.
इस नए फिक्स्ड प्राइस नियम के तहत प्रोमोटर्स को एक फिक्स्ड डीलिस्टिंग प्राइस देना होगा, जो कि नए परिभाषित फ्लोर प्राइस से कम से कम 15% ज्यादा होना चाहिए. इस फ्लोर प्राइस को अलग-अलग वैल्युएशन मेट्रिक्स पर कैलकुलेट किया जाएगा.
कैसे तय होगा फिक्स्ड प्राइस?
इनमें पिछले 52 हफ्तों के दौरान खरीदार द्वारा चुकाया गया या भुगतान करने योग्य वॉल्यूम वेटेड एवरेज प्राइस, पिछले 26 हफ्तों में भुगतान की गई सबसे ज्यादा कीमत और स्वतंत्र वैल्युअर की ओर से निर्धारित की गई एडजस्टेड बुक वैल्यू शामिल है.
इसके अलावा अक्सर ट्रेड होने वाले शेयरों के लिए फ्लोर प्राइस में रेफरेंस डेट से पहले 60 ट्रेडिंग दिनों के दौरान औसत मार्केट प्राइस को लिया जाएगा.
डीलिस्टिंग का सबसे ज्यादा प्रचलित तरीका रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रोसेस है. इसमें शेयरधारकों को वो कीमत पर बोली लगानी होती है, जिस पर वो अपने शेयरों को वापस कंपनी को बेचना चाहते हैं. बोली लगाने की अवधि के बाद कंपनी सबसे ज्यादा बोली पर बायबैक प्राइस तय करती है. अगर मंजूर कर लिया जाता है, तो शेयरधारक उस कीमत पर बेचते हैं वरना अपने शेयरों को रख लेते हैं.
पिछले सिस्टम के मुकाबले क्या है अंतर?
इससे अलग फिक्स्ड प्राइस फ्रेमवर्क में कंपनी शेयरों के लिए निश्चित कीमत ऑफर करती है, जिसमें बोली नहीं होती. मुख्य अंतर ये है कि रिवर्स बुक बिल्डिंग में शेयरधारक अपनी बोली के जरिए कीमतों को प्रभावित कर पाते हैं. जबकि फिक्स्ड प्राइस कंपनी की ओर से सीधा ऑफर होता है.
इसके अलावा नए नियमों के तहत खरीदारों पर सख्त शर्तें लगाईं गईं हैं. उन्हें ब्याज भुगतान वाला एस्क्रो अकाउंट शुरू करना होगा और शेयरधारकों से मंजूरी मिलने के सात कामकाजी दिनों के अंदर कुल रकम का 25% डिपॉजिट करना होगा. ये कदम डीलिस्टिंग प्रोसेस की वित्तीय सुरक्षा बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है.
इसके अलावा पारदर्शिता बढ़ाने की कोशिश के तहत नियमों में शेयरधारकों की ओर से ई-वोटिंग को अनिवार्य बनाया गया है, जिससे ये सुनिश्चित होगा कि ज्यादातर वोट किसी डीलिस्टिंग प्रस्ताव के पक्ष में हों.
 
     
          
         
          
         
          
         
          
        