SEBI के अतिरिक्त डिस्क्लोजर नियमों (Enhanced Disclosures norms) को लेकर बाजार में काफी चर्चा हो रही है. कहा जा रहा है कि इसकी वजह से ही भारतीय बाजारों से FPIs बिकवाली कर रहे हैं, लेकिन क्या वाकई ऐसा है?
PTI ने सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर लिखा है कि मार्केट रेगुलेटर SEBI के अतिरिक्त डिस्क्लोजर नियमों का बड़ी संख्या में FPIs पर असर नहीं होगा.
हिस्सेदारी घटाने की तत्काल जरूरत नहीं: सूत्र
अगर किसी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक या FPIs को अतिरिक्त डिस्क्लोजर नियमों (New beneficial ownership disclosure norms) के तहत अपनी होल्डिंग घटानी पड़ती है तो उनके पास इस साल सितंबर तक का समय है, जबकि इन डिस्क्लोजर्स की वजह से फिलहाल ऐसी कोई तात्कालिक जरूरत नहीं दिखाई पड़ती है, मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने ये जानकारी दी है.
पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर इस शख्स ने बताया कि ऐसे FPIs जिन्हें मार्केट रेगुलेटर SEBI के कंस्लटेशन पेपर और बोर्ड नोट के मुताबिक अतिरिक्त डिस्क्लोजर देने हैं, उनकी संख्या अनुमान से काफी कम है. नए नियमों के तहत FPIs को इस बात का खुलासा करना होगा कि भारत में उनके पास जो एसेट्स हैं उनका वास्तविक मालिक कौन है.
SEBI के बोर्ड नोट के मुताबिक, रेगुलेटर ने 3 लाख करोड़ रुपये की AUM को ऊंचे जोखिम वाले पोर्टफोलियो के रूप में बांटा है, ये अनुमान से काफी कम है. डिस्क्लोजर्स को ज्यादा व्यवस्थित करने के लिए रेगुलेटर और कस्टोडियन ने निवेशकों के एक तय क्लास के लिए छूट की भी योजना बनाई है. जिसमें सॉवरेन वेल्थ फंड्स (SWF), ग्लोबल एक्सचेंज में लिस्ट कंपनियां, पब्लिक रिटेल फंड्स और डायवर्सिफाइड ग्लोबल होल्डिंग्स के साथ दूसरे रेगुलेटेड पू्ल्ड इंवेस्टमेंट व्हीकल्स शामिल हैं.
अब ये समझ लीजिए कि किन FPIs के लिए ये डिस्क्लोजर नियम लाए गए हैं.
इन FPIs पर लागू डिस्क्लोजर
FPIs जो किसी एक कॉर्पोरेट ग्रुप में अपने इक्विटी AUM का 50% से ज्यादा रखते हैं, उन्हे अतिरिक्त डिस्क्लोजर देना होगा.
FPIs जिनका भारतीय शेयर बाजार में 25,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश है, उन्हें अतिरिक्त डिस्क्लोजर देना होगा
FPIs के लिए अतिरिक्त डिस्क्लोजर को लेकर प्रस्तावों को मार्केट रेगुलेटर ने जून की बोर्ड मीटिंग में मंजूरी दी गई थी. जबकि मई में इसे लेकर रेगुलेटर ने एक कंसल्टेशन पेपर जारी किया था. जिसमें SEBI ने FPIs के लिए रिस्क बेस्ड 3 कैटेगरी बनाने का प्रस्ताव दिया था.
कम जोखिम (Low Risk): सॉवरेन फंड और सेंट्रल बैंक फंड जैसी सरकारी संस्थाएं
मध्यम जोखिम (Moderate Risk): निवेशक बेस के साथ पेंशन या पब्लिक रिटेल फंड
उच्च जोखिम (High Risk): बाकी सारे विदेशी निवेश (FPIs)
क्यों लाए गए अतिरिक्त डिस्क्लोजर नियम
SEBI का कहना है कि अतिरिक्त डिस्क्लोजर्स का मकसद मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग (MPS) और अधिग्रहण टेकओवर नियमों में होने वाली हेरफेर या गड़बड़ियों को रोकना है.
मामले की जानकारी रखने वाले शख्स ने कहा कि ऐसी कंपनियां जिनका प्रोमोटर निर्धारित नहीं है, यानी उनका कोई प्रोमोटर नहीं है, ऐसी कंपनियों में FPIs होल्डिंग्स में मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियमों के उल्लंघन का कोई जोखिम नहीं है.
देश में ऐसी कई कंपनियां हैं जिनका कोई प्रोमोटर नही है, जैसे ICICI बैंक या HDFC बैंक. इसलिए, इसमें अतिरिक्त डिस्क्लोजर से छूट मिलती है. इस शख्स ने कहा कि जैसा बाजार को लग रहा है, उसके उलट FPIs को अपनी होल्डिंग कम करने के लिए कोई तत्काल डेडलाइन नहीं है.
अतिरिक्त डिस्क्लोजर और छूट के लिए कस्टोडियन किस तरह के SOPs का पालन करेंगे, इसकी प्रक्रिया अक्टूबर 2023 में जारी की गई थी. 31 अक्टूबर, 2023 तक अतिरिक्त डिस्क्लोजर के नियमों को पूरा करने वाले FPIs के पास अपनी होल्डिंग्स को रीबैलेंस करने के लिए जनवरी 2024 के अंत तक का समय दिया गया था. SEBI ने FPIs को अतिरिक्त 10 से 30 कामकाजी दिनों के साथ जनवरी के अंत तक डिस्क्लोजर नियमों को पूरा करने की इजाजत दी है. FPIs अगर डिटेल्स देने में नाकाम रहते हैं तो उनको अपनी हिस्सेदारी 6 महीने या सितंबर तक घटानी होगी.