इनकम टैक्स रिटर्न (Income Tax Return) को फाइल करते समय ऐसी कई बातें हैं, जिनका ध्यान रखना जरूरी है. खास तौर पर सैलरीड लोगों (Salaried People) को इनका ज्यादा ध्यान रखना चाहिए. ये गलतफहमी है कि सैलरी हासिल करने वाले लोगों के लिए टैक्स रिटर्न फाइल करना सबसे आसान होता है और उन्हें ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती है. सैलरीड समेत हर व्यक्ति को सभी छोटी से छोटी डिटेल्स पर ध्यान देना होता है. आइए ऐसी कुछ डिटेल्स को जान लेते हैं, जिन्हें हर समय फॉलो करना चाहिए.
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छोटी इनकम को न छोड़ें
ऐसा कई बार होता है, जब टैक्सपेयर सोचता है कि टैक्स रिटर्न फाइल करते समय केवल बड़ी राशि ही मायने रखती है, लेकिन ये सही नहीं है. चाहे कोई इनकम कितनी भी छोटी हो, उसकी जानकारी रिटर्न में देनी होती है. इसलिए, टैक्सपेयर को उनकी सभी इनकम का जिक्र करना चाहिए. बहुत से लोग ये सोचकर छोड़ देते हैं कि सिर्फ कुछ हजार रुपये ही हैं. लेकिन फिर उन्हें टैक्स विभाग से नोटिस मिल जाता है. और उन्हें मुश्किल से बचने के लिए बहुत से चक्कर लगाने पड़ते हैं. ये बात काम नहीं आती कि इनकम की जानकारी इसलिए नहीं दी गई क्योंकि वो बहुत ज्यादा नहीं है. इससे टैक्सपेयर के लिए लायबिलिटी बन जाती है और इसलिए उन्हें पूरी डिटेल्स का ध्यान रखना चाहिए.
पूरे टैक्स का भुगतान करें
सैलरीड लोगों को ये बड़ी गलतफहमी है कि एंप्लॉयर के जरिए टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) कटने के बाद उनकी सारी लायबिलिटी खत्म हो जाती है. और उन्हें कोई अतिरिक्त राशि का भुगतान नहीं करना होता. ये सही नहीं है, क्योंकि इसमें टैक्स केवल सैलरी से मिली इनकम पर होता है. लेकिन ऐसा हो सकता है कि व्यक्ति को दूसरे स्रोतों से भी अतिरिक्त इनकम मिली हो. इसमें जमा पर ब्याज, डिविडेंड और इनकम टैक्स रिफंड पर ब्याज शामिल हो सकता है. अगर ये बात है, तो इस अतिरिक्त राशि पर भी टैक्स लायबिलिटी होगी और इसे छोड़ा नहीं जा सकता. इसे छोड़ने पर व्यक्ति को डिमांड नोटिस मिल सकता है. टैक्स ऑफिसर इस गलती का असेसमेंट कर नोटिस भिजवा सकता है.
TDS पूरा टैक्स नहीं होता है
कई बार टैक्सपेयर्स के बीच ये धारणा होती है कि अगर किसी इनकम पर TDS है, तो उसमें कुछ और करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि टैक्स का भुगतान हो गया है. ये सही नहीं है क्योंकि TDS का रेट अहम है. उदाहरण के लिए, बैंक की फिक्स्ड डिपॉजिट में, कमाया गया ब्याज टैक्सेबल होता है और बैंक इस पर 10% की दर पर TDS काटता है, जब एक निश्चित राशि पार कर जाती है. दूसरी तरफ, ऐसा हो सकता है कि टैक्सपेयर 30% ब्रैकेट में हो और इसलिए उनको कुछ टैक्स का भुगतान और करना होगा, क्योंकि दरों में अंतर है. इसका मतलब हुआ कि कुछ टैक्स बकाया होगा, जिसे टैक्सपेयर को चुकाना होगा. ऐसी स्थिति को आने नहीं देना चाहिए और इसका ध्यान रखना चाहिए. अगर इसमें कमी होती है, तो टैक्स के साथ ब्याज भी लगाया जाएगा और आप पर बकाया पैसा बढ़ जाएगा.
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रिटर्न फाइल करना जरूरी
एक बात जिसे बहुत से लोग सोचते हैं कि अगर उन पर टैक्स लायबिलिटी नहीं है, तो रिटर्न फाइल करने की जरूरत नहीं है. ऐसी कई स्थितियां हैं, जिसमें व्यक्ति को रिटर्न फाइल करना होता है और बहुत से मामलों में, रिफंड हासिल करने के लिए ये करना होता है. और इसलिए रिटर्न फाइल करना अहम है. अगर कोई टैक्स नहीं चुकाना है, तो भी रिटर्न फाइल करना होगा. ऐसा नहीं करने पर टैक्स विभाग से नोटिस मिल सकता है. और ऐसी स्थिति से बचना चाहिए. इसलिए समय पर रिटर्न फाइल कर दें. इसके दो फायदे होंगे. पहला, आपको रिफंड मिल जाएगा और दूसरा, लॉस कैरी फॉरवर्ड होगा. इससे टैक्सपेयर को रिकॉर्ड बनाने में भी मदद मिलेगी, क्योंकि इसमें सारी जानकारी दी जाती है.
अर्णव पंड्या
(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)