बैंक अकाउंट एक रखें या एक से ज्यादा. ये सवाल हर किसी के मन में आता है, लेकिन इस सवाल को हममें से हर कोई नजरअंदाज कर जाता है. जरूरत के मुताबिक, हम एक या एक से ज्यादा अकाउंट बना लेते हैं. इसके नफा-नुकसान को हम समय के साथ समझते हैं. अक्सर नुकसान भी भुगतते हैं. एक ऐसे समय में जब बैंकों का विलय चल रहा है, बैंक कम हो रहे हैं, ATM की संख्या घट रही है, बैंक फ्रॉड हो रहे हैं. ये सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि बैंक अकाउंट एक रखें या एक से ज्यादा. क्यों. सवाल ये भी तो हो सकता है कि दो बैंक अकाउंट रखें या दो से ज्यादा.
सिंगल अकाउंट के फायदे भी हैं, खतरे भी
एक बैंक अकाउंट रखने का फायदा ये है कि सारा वित्तीय लेन-देन आंखों के सामने रहता है. कर्ज से लेकर बचत और निवेश तक फिंगर प्वाइंट पर होते हैं. इससे अपनी आमदनी का बजट बनाना आसान होता है और वित्तीय योजनाएं आसानी से बनाई जा सकती हैं. इसके अलावा ट्रांजेक्शन की निगरानी में चूक होने का खतरा भी कम रहता है. बहुत ज्यादा लॉग-इन की डिटेल याद रखनी नहीं पड़ती. बैंक अकाउंट को मेंटेन करने का खर्च भी सीमित होता है. बल्कि, कई बैंक तो ट्रांजेक्शन पर्याप्त रखने पर ये खर्च भी नहीं वसूलते हैं.
एक बैंक अकाउंट का नुकसान
मगर, एक बैंक अकाउंट के नुकसान भी बहुत हैं, किसी कारणवश अगर हम बैंक क्रेडेन्शियल भूल गए या गलती से पासवर्ड लिखने की कोशिश में तीन से ज्यादा प्रयास कर लिया तो ट्रांजेक्शन रुक जाता है.
कई बार बैंक आपके अकाउंट में एक प्रतिबंध लगा देते हैं. रकम अकाउंट में आई नहीं कि वो रोक ली जाती है और आप उस रकम का उपयोग नहीं कर पाते. तब बहुत मुश्किल होती है.
अगर अकाउंट लोन से भी जुड़ा है और लोन की किस्त देने में डिफॉल्ट हो गया, तो इकलौते अकाउंट से ट्रांजेक्शन मुश्किल हो जाता है. दैनिक ट्रांजेक्शन पर भी असर होता है.
बैंक अकाउंट उद्देश्यपूर्ण होना जरूरी
मल्टीपल अकाउंट्स यानी एक से ज्यादा अकाउंट की वकालत भी कई लोग करते हैं. देश के मशहूर इकॉनोमी एक्सपर्ट और मार्केट एक्सपर्ट CA सचिन अग्रवाल कम से कम दो अकाउंट जरूर रखने की हिदायत देते हैं. उनका कहना है कि एक अकाउंट ऐसा हो जहां लाइफ टाइम सेविंग्स रहे. दूसरा अकाउंट ऐसा हो जो तरह-तरह के ट्रांजेक्शन के लिए हों जैसे क्रेडिट कार्ड, UPI आदि.
इससे आप अपनी राशि भी सुरक्षित रख सकते हैं और दैनिक जीवन में लेन-देन को भी कम जोखिम के साथ आगे बढ़ा सकते हैं. सचिन अग्रवाल एक से ज्यादा अकाउंट रखने की वकालत करते हुए कहते हैं कि इसे एक सीमा में होना और इनका उद्देश्यपूर्ण होना जरूरी है.
एक से अधिक अकाउंट का इस्तेमाल बिलिंग, सेविंग, निवेश और विवेकाधिकार वाले खर्च के तौर पर करना आसान हो जाता है. वित्तीय प्रबंधन इससे आसान रहता है. लक्ष्य आधारित बचत को भी प्रोत्साहन मिलता है.
डबल अकाउंट बेहतर विकल्प
एक फायदा ये भी है कि अगर किसी एक बैंक अकाउंट में कोई समस्या आ जाती है, तो हम दूसरे बैंक अकाउंट से उसका समाधान निकाल लेते हैं. जिस बैंक से अधिक ब्याज मिले उस बैंक से जुड़े अकाउंट का आप इस्तेमाल कर सकते हैं. आमदनी बढ़ाने में इससे मदद मिलती है. हम बिजनेस और पर्सनल अकाउंट भी अलग-अलग रख सकते हैं. एक से अधिक अकाउंट रहने पर फ्रॉड होने की स्थिति में भी स्थिति बेकाबू नहीं होती. टैक्स मैनेजमेंट में भी आसानी रहती है.
एक से ज्यादा अकाउंट की दिक्कतें क्या हैं?
एक से ज्यादा अकाउंट होने की परेशानियां भी कम नहीं हैं. अधिक अकाउंट्स को मैनेज करना मुश्किल होता है. बचत, निवेश, लेन-देन, बिलिंग आदि भुगतान याद नहीं रह पाते. अधिक अकाउंट होने के कारण अनावश्यक फीस देनी पड़ती है. अगर खातेदार सीनियर सिटिजन हैं तो मुश्किलें और भी बढ़ जाती हैं. उन्हें अपने अकाउंट्स याद रखने में मुश्किलें आती हैं.
कई बार वे भूल जाते हैं. एक से अधिक शहरों में अगर अकाउंट हो, तो मुश्किल और बढ़ जाती है. एक से ज्यादा अकाउंट रहने पर उससे जुड़े कार्ड और ट्रांजेक्शन का हिसाब रखना मुश्किल हो जाता है और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. संसद में सरकार की ओर से रखी गई जानकारी के मुताबिक, 2018 के बाद से बीते पांच साल में 20 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि मिनिमम बैलेंस नहीं रहने के कारण खातेदारों से वसूल की गई है.
एक अकाउंट या एक से ज्यादा अकाउंट के सवाल को अगर दो अकाउंट या दो से ज्यादा अकाउंट्स के सवाल तक ले जाते हैं, तो हम बीच का रास्ता अपना रहे होते हैं. एक अकाउंट के कारण होने वाली परेशानी से भी बचना जरूरी है और मल्टीपल अकाउंट रखने से जुड़ी दिक्कतों का भी सामना करना है. ऐसे में दो अकाउंट रखना फायदेमंद हो सकता है. एक कारोबार से जुड़ा हो और दूसरा व्यक्तिगत. या फिर, एक सेविंग्स के लिए समर्पित हो और दूसरा खर्च या निवेश के लिए. सिंगल या मल्टीपल अकाउंट्स के बदले दो अकाउंट रखने का विकल्प कहीं ज्यादा सुरक्षित, उपयोगी और फायदेमंद हो सकता है.