वित्तीय घाटे की सीमा को देखते हुए RBI ने राज्यों को तमाम स्कीम्स पर दी जाने वाली सब्सिडी का रिव्यू करने की सलाह दी है.
दरअसल FY24 में राज्यों ने फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) को GDP के 2.9% पर बरकरार रखा है. फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी लेजिस्लेशन लिमिट 3% है. ये एक साल पहले के स्तर से थोड़ी बढ़ोतरी है. सरकारी फाइनेंसेंज पर लेटेस्ट रिपोर्ट से ये जानकारी मिली है.
कैपिटल आउटले FY23 में 2.2% से बढ़कर FY24 में GDP के 2.6% पर पहुंच गया है. इसके साथ एक्सपेंडिचर क्वालिटी में सुधार आया है. मौजूदा वित्त वर्ष में उम्मीद है कि राज्य वित्तीय अनुशासन बरकरार रखेंगे. इनसे GFD को GDP के 3.2% पर बरकरार रखने की उम्मीद है.
राज्यों का कुल कर्ज, मार्च 2024 के आखिर में गिरकर GDP के 28.5% पर पहुंच गया है. हालांकि ये 'फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट रिव्यू कमेटी (2017)' की ओर से सिफारिश किए गए 20% के स्तर से ज्यादा है.
RBI ने कहा कि इसके अलावा केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं में तार्किकता लाकर ज्यादा खर्च करने के लिए जगह बनेगी. RBI के मुताबिक स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, शोध, विकास और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ाने के लिए संसाधन जुटाने के उद्देश्य से सब्सिडी आवंटन का रिव्यू करने की जरूरत है.
RBI के अन्य सुझाव
नेक्स्ट जनरेशन फिस्कल रूल्स, जिसमें मध्यम अवधि में सस्टेनेबिलिटी के लक्ष्य के साथ छोटी अवधि में फ्लेक्सिबिलिटी को साथ में रखा जाएगा, इन नियमों पर विचार किया जा सकता है. इनसे राज्य सरकारों की किसी आर्थिक संकट से निपटने की क्षमता भी बढ़ेगी.
डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनाने से राज्यों को अपने टैक्सेशन सिस्टम को आसान बनाने और टैक्स कैपेसिटी को बढ़ाने में मदद मिल सकती है.
वित्तीय पारदर्शिता पर ज्यादा फोकस और डिस्क्लोजर से राज्यों को कम डेफिसिट और डेट रेश्यो हासिल करने में मदद मिल सकती है.
सब-नेशनल लेवल पर नेक्स्ट जनरेशन फिस्कल रिफॉर्म्स में फिस्कल डेटा जनरेशन में सुधार पर भी फोकस होगा.
राज्यों को स्टेट फाइनेंस कमीशन की नियुक्ति में तेजी लाने की जरूरत है. उन्हें एक निश्चित समयावधि में सिफारिशें देनी होंगी, जिससे लोकल यूनिट्स को संसाधन समय से उपलब्ध हो सकें.