Explainer: IPC-CrPC की जगह देश में लागू हुए भारतीय न्‍याय संहिता समेत 3 नए कानून, FIR से लेकर सजा तक क्‍या-क्‍या बदला?

BNS, BNSS, BSA Explained: नए कानूनों में कई धाराएं हटा दी गई हैं तो कई नई धाराएं जोड़ी भी गई हैं. वहीं कई अपराधों के लिए धाराएं बदल दी गई हैं. पढ़ें पूरी डिटेल.

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देशभर में आज, 1 जुलाई सोमवार से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं और इसी के साथ गुलाम भारत में बने कानूनों का अ‍स्तित्‍व खत्‍म हो गया है. ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्‍ट (IEC) की जगह भारतीय न्‍याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्‍य संहिता (BSS) लागू हो गए हैं.

नए कानूनों में कई धाराएं हटा दी गई हैं तो कई नई धाराएं जोड़ी भी गई हैं. वहीं कई अपराधों के लिए धाराएं बदल दी गई हैं. कानून में इन नए बदलावों से पुलिस, वकील और अदालतों के कामकाज में भी बदलाव आएंगे, वहीं आम लोगों पर भी इनका बड़ा असर पड़ेगा.

नए कानूनों से एक आधुनिक न्याय प्रणाली स्थापित होगी जिसमें ‘जीरो FIR', ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना, ‘SMS' (मोबाइल फोन पर संदेश) के जरिये समन भेजने जैसे बदलाव शामिल हैं. तलाशी और जब्‍ती समेत सभी जघन्य अपराधों के घटना स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान भी इसमें शामिल हैं. किसी भी मामले में मुकदमा/सुनवाई पूरी होने के 45 दिन के भीतर फैसला सुनाया जाएगा.

बदल गए न्याय संहिताओं के नाम

  • इंडियन पीनल कोड (IPC) अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) हो गया है

  • कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)

  • इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) अब हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)

FIR से फैसले तक बदल गए प्रावधान

IPC में जहां 511 धाराएं थीं, वहीं BNS यानी भारतीय न्‍याय संहिता में 357 धाराएं हैं. इनमें ओवरलेपिंग वाली धाराओं को मिलाते हुए उन्‍हें सरल किया गया है. दरअसल ‘ओवरलैप' धाराओं का आपस में विलय कर दिया गया तथा उन्हें सरलीकृत किया गया है.

  • जीरो FIR: अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में जीरो FIR के तहत प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो. इससे कानूनी कार्यवाही शुरू होने में देरी नहीं होगी. 15 दिन के भीतर मामला संबंधित थाना को ट्रांसफर करना होगा.

  • चार्जशीट और फैसला: नए कानूनों के तहत आपराधिक मामलों में 90 दिन के भीतर चार्जशीट फाइल करनी होगी और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय करने होंगे. सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर फैसला सुनाया जाएगा.

  • मॉब लिंचिंग: नए कानून में भीड़ के हत्‍या करने पर नई धाराएं जोड़ी गई है. मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल की कैद या उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है.

  • राजद्रोह नहीं, अब देशद्रोह: नए कानून में संगठित अपराधों और आतंकवाद के कृत्यों को परिभाषित किया गया है. इसमें राजद्रोह की जगह देशद्रोह को रखा गया है.

File Photo/ Source: Reuters
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महिलाओं और बच्‍चों के लिए कानून

महिलाओं-बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को न्‍याय संहिता में कुल 36 धाराओं के तहत रखा गया है. किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड या उम्रकैद का प्रावधान जोड़ा गया है. दहेज हत्या और दहेज प्रताड़ना को धारा 79 और 84 में परिभाषित किया गया है. शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने के अपराध को दुष्‍कर्म से अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है.

दुष्‍कर्म की स्थिति में पीड़िता का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी और मेडिकल रिपोर्ट 7 दिन के भीतर देनी होगी. अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास और न्यूनतम 10 वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है. वहीं, 16 साल से कम आयु की पीड़ित से दुष्कर्म किए जाने पर 20 साल का कठोर कारावास, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है.

नए कानून में और क्‍या-क्‍या बदला?

भारतीय दंड संहिता (CrPC) में 484 धाराएं थीं, जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं. इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑडियो-वीडियो के जरिए साक्ष्य जुटाने को भी अहमियत दी गई है. नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है.

  • सरकारी अधिकारी या पुलिस ऑफिसर के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी. यदि इजाजत नहीं दी गई तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा.

  • FIR दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होगा. चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे.

  • केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को फैसला देना होगा. इसके बाद सात दिनों में फैसले की कॉपी उपलब्ध करानी होगी.

  • हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ऑनलाइन, ऑफलाइन सूचना देने के साथ-साथ लिखित जानकारी भी देनी होगी.

  • महिलाओं के मामलों में पुलिस को थाने में यदि कोई महिला सिपाही है तो उसकी मौजूदगी में पीड़ित महिला का बयान दर्ज करना होगा.

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में कुल 531 धाराएं हैं. इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है. इसके अलावा 14 धाराएं खत्म हटा दी गई हैं. इसमें 9 नई धाराएं और कुल 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं.

  • अब इसके तहत ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज हो सकेंगे. सन 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट कम्प्यूरीकृत कर दिए जाएंगे.

BSA: अब इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी मान्‍य

  • अब तक इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं.

  • नए कानून में 6 धाराएं रद्द कर दी गई हैं. वहीं नए एक्‍ट में दो नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं.

  • इसमें गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान तय किए गए है.

  • दस्तावेजों की तरह इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कोर्ट में मान्य होंगे. इसमें मोबाइल फोन, मैसेजेस, ई-मेल वगैरह से मिलने वाले सबूत भी वैध माने जाएंगे.

सामुदायिक सेवा का दंड

छोटे-मोटे अपराधों के लिए पहली बार देश में सामुदायिक सेवा का स्‍थाई प्रावधान किया गया है. इसमें गिरफ्तार किए गए लोगों को सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा करनी होगी.

  • लोक सेवकों के अवैध व्‍यापार करने, मानहानि के मामले, छोटी-मोटी चोरी करने, पब्लिकली नशा करने, आत्महत्या का प्रयास करने जैसे मामलों में सामुदायिक सेवा करनी होगी.

  • नए कानून के तहत पहली बार ऐसा प्रावधान किया गया है, जिसमें नशे की हालत में हंगामा करने या 5,000 रुपये से कम की संपत्ति की चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दंड के तौर पर माना गया है

लॉ-मेकर्स का मानना है कि सामुदायिक सेवा अपराधियों को सुधरने का मौका देती है. जबकि जेल की सजा उन्हें कठोर अपराधी बना सकती है. पहले भी कोर्ट छोटे-मोटे क्राइम या पहली बार क्राइम की स्थिति में सामुदायिक सेवा की सजा देते रहे हैं, लेकिन अब ये एक स्थाई कानून बन गया है.

पुरानी जांच और ट्रायल पर असर नहीं

वे मामले जो एक जुलाई से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच और ट्रायल पर नए कानून का कोई असर नहीं होगा. एक जुलाई से सारे अपराध नए कानून के तहत दर्ज होंगे. अदालतों में पुराने मामले पुराने कानून के तहत ही सुने जाएंगे. नए मामलों की नए कानून के दायरे में ही जांच और सुनवाई होगी.

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