केंद्र सरकार ने पिछले कुछ दिनों में चावल के निर्यात पर प्रतिबंध बढ़ा दिए हैं क्योंकि देश अगले साल चुनाव से पहले बढ़ती खाद्य लागत से निपट रहा है. चावल पर प्रतिबंध अब उन सभी किस्मों को कवर करता है, जिन्हें दक्षिण एशियाई देश विदेशी बाजारों में भेजते हैं. सरकार के इस फैसले से वैश्विक आपूर्ति ज्यादा प्रभावित होने लगी है.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, अब ये अनुमान लगाया जा रहा है कि अगली वस्तु क्या हो सकती है. देश के कुछ प्रमुख चीनी उत्पादक क्षेत्रों में कम बारिश के कारण चीनी के शिपमेंट पर प्रतिबंध लग सकता है.
हालांकि माॅनसून खत्म होने में अभी एक महीने से अधिक का समय है और परिदृश्य तेजी से बदल सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, गेहूं का टैरिफ भी खत्म किया जा सकता है.
दुनिया पर व्यापक असर
केंद्र सरकार ने उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से बचाने के लिए कदम उठाए हैं. भारत, दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है, जबकि गेहूं और चीनी के उत्पादन में ये दूसरे नंबर पर है. ऐसे में चावल के बाद गेहूं और चीनी के एक्सपोर्ट पर नियम सख्त किए गए तो तय है कि इसका दुनिया पर बड़ा असर पड़ सकता है.
पिछले हफ्ते सरकार ने बासमती, गैर-बासमती और उबले चावल के निर्यात पर नियम सख्त किए हैं. केंद्र सरकार के चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद इस महीने की शुरुआत में एशिया में चावल की कीमतें 15 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं.
मॉनसून ने बढ़ाई चिंता
मौसम ब्यूरो के अनुसार, देश के प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में इस सीजन में अब तक बारिश सामान्य से 12% कम रही है. इससे 2022-23 की सर्दियों की खराब फसल के बाद उत्पादन को लेकर चिंता बढ़ गई है.
देश के कुछ सबसे बड़े चीनी उत्पादक क्षेत्रों को फसलों की सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले भूजल (लैंड वाटर) और तालाबों-जलाशयों को फिर से भरने में मदद के लिए बारिश की सख्त जरूरत है.
उत्पादन में कमी हुई तो निर्यात पर प्रतिबंध लग सकता है. और ऐसा हुआ तो न्यूयॉर्क और लंदन में ट्रेड होने वाली बेंचमार्क कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है.
केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, बीते गुरुवार तक देश के 146 मुख्य जलाशयों में जल भंडारण, एक साल पहले की तुलना में 21% कम था.
इसका मतलब ये हो सकता है कि भारत की सर्दियों में बोई जाने वाली सबसे बड़ी खाद्यान्न फसल गेहूं के लिए पानी कम उपलब्ध होगा. फसलों की बुवाई आमतौर पर अक्टूबर में शुरू होती है.
चीनी के निर्यात पर फैसला
एशियाई देश अब गेहूं पर इंपोर्ट टैक्स खत्म करने पर विचार कर रहे हैं. इससे संभवतः घरेलू कीमतें कम होंगी और मिल मालिकों को सस्ता विदेशी अनाज खरीदने की अनुमति मिलेगी. पिछली बार देश ने 2017-18 में बड़ी मात्रा में आयात किया था. इधर, चीनी को लेकर सरकार का कहना है कि 2023-24 के लिए इसके निर्यात पर कोई भी निर्णय 'अंतिम उत्पादन अनुमान' उपलब्ध होने पर किया जाएगा.