एग्जिट पोल्स के अनुमानों को धता बताते हुए झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में INDIA अलायंस जीत की तरफ बढ़ रहा है. ज्यादातर एग्जिट पोल्स में INDIA और NDA में कड़ी टक्कर का अनुमान लगाया गया था. लेकिन यहां मामला पूरा एकतरफा हो गया है.
हेमंत सोरेन का दोबारा मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है, अगर ऐसा होता है तो वे प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में पहले मुख्यमंत्री होंगे, जो अगले चुनाव में जीतकर दोबारा मुख्यमंत्री बने.
INDIA अलायंस 56 सीटें जीत चुकी है. जबकि NDA 24 सीटों पर जीत दर्ज की है. खुद झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) 34 सीटों पर जीत दर्ज की है. ये कमोबेश बीते चुनाव जैसा ही प्रदर्शन है, जब JMM 30 सीटों पर जीती थी. JMM की गठबंधन में सहयोगी कांग्रेस 14, RJD 04 और CPI (ML) 02 सीटों पर जीत दर्ज की है.
छोटा नागपुर, कोयलांचल, पलामू और संथाल परगना; झारखंड के चारों क्षेत्रीय इलाकों में JMM ने बढ़त बनाई है. सिर्फ उत्तर छोटा नागपुर डिवीजन में BJP बराबरी की टक्कर पर नजर आ रही है.
सवाल ये है कि JMM, हेमंत सोरेन और INDIA अलायंस ने ऐसा क्या किया, जो पूरे झारखंड में इस चुनाव में इनकी तूती बोली है. इसे समझने के लिए हमें JMM सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ-साथ उनके चुनावी कैंपेन पर खास नजर डालनी होगी.
आदिवासी अस्मिता और सोरेन के लिए सहानुभूति
झारखंड के निर्माण की बुनियाद में आदिवासी अस्मिता एक प्रमुख मुद्दा था. 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश की आबादी में करीब 27% आदिवासी (ST) हैं. तकरीबन हर चौथा आदमी आदिवासी समुदाय से है. 81 में से 26 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. जाहिर तौर पर आदिवासियों के मुद्दे राज्य के लिए संवेदनशील विषय रहे हैं.
इस साल जनवरी में ED ने मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में हेमंत सोरेन का गिरफ्तार किया था. उन्हें जून के आखिर में रिहाई मिली थी. इस बीच चंपई सोरेन का विद्रोह भी सामने आया, जिन्होंने आखिरकार BJP ज्वाइन कर ली.
इससे हेमंत सोरेन के लिए लोगों के एक वर्ग में सहानुभूति पैदा होना लाजिमी था. इसकी पुष्टि चुनावी कैंपेन से भी होती है. इसमें JMM ने गिरफ्तारी और बाद के प्रकरण को सरकार गिराने की कोशिश बताया और इसे एक आदिवासी नेता के अपमान के तौर पर प्रोजेक्ट किया.
जामताड़ा में एक चुनावी सभा में हेमंत सोरेन ने कहा था, 'देश के संविधान को बचाने के लिए गठबंधन के सहयोगियों की एकता जरूरी होती है, ताकि एजेंडा-विहीन BJP को सत्ता से बाहर रखा जा सके. हम 5 साल पूरी सरकार चलाने में कामयाब रहे हैं.'
महिला वोट बैंक कंसोलिडेशन
झारखंड में 1.29 करोड़ मतदाताओं के साथ कुल वोटर्स में महिला मतदाताओं की हिस्सेदारी 50% है. प्रदेश, देश के सबसे कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में से एक है. PIB में प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के मुताबिक FY2021-22 में झारखंड में प्रति व्यक्ति आय करीब 92,000 रुपये सालाना रही. ये बिहार और उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे कम है. फिर कमजोर स्थिति के चलते महिलाओं के लिए ये मामला और भी गंभीर हो जाता है.
इस माहौल में सोरेन सरकार की 'मैय्या सम्मान योजना' जबरदस्त ढंग से महिलाओं को आकर्षित करने में कामयाब रही है. इसके तहत लाभार्थियों को हर महीने 1,000 रुपये/महीना दिया जाता है. इससे महिलाओं की खरीद की ताकत मजबूत हुई. जबकि सरकार के लिए इससे एक अलग वोट बैंक तैयार हुआ.
कल्याणकारी योजनाओं का असर
जैसा ऊपर बताया मैय्या सम्मान योजना का महिला वोट बैंक पर बड़ा असर हुआ. लेकिन इसके अलावा भी सोरेन सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए पहचान बना चुकी है. खासतौर पर 'आपकी सरकार आपके द्वार' जैसे कार्यक्रम ने आम और निचले तबके के लोगों का सरकार से कनेक्ट मजबूत किया.
हमने लोगों की भलाई के लिए काम किया है, हम सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ 'आपकी सरकार आपके द्वार; जैसी योजनाओं से लोगों तक पहुंचा रहे हैं, जहां सरकारी अधिकारी लोगों के घर जाकर उनकी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करते हैं.हेमंत सोरेन
जरा अलग-अलग वर्गों के लिए तैयार की गई इन कल्याणकारी योजनाओं को देखिए; दिव्यांगों के लिए स्वामी विवेकानंद नि:शक्त स्वाबलंबन प्रोत्साहन योजना, नि:शक्त पेंशन योजना, अनाथ पेंशन योजना, अंत्योशक्ति सहायता योजना, विवाह सहायता योजना, चिकित्सा सहायता योजना. और भी तमाम स्कीम्स. मतलब इन योजनाओं के जरिए गरीब, दिव्यांग, बुजुर्ग, महिला, युवा समेत तमाम वर्गों को लाभ पहुंचाया गया, इससे सरकार की पैठ मजबूत हुई.
चुनावी कैंपेन और मजबूत गठबंधन
सोरेन का चुनावी कैंपेन आदिवासी अस्मिता, महिला, गरीबों और अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर केंद्रित रहा. ऊपर इन मुद्दों पर हम चर्चा कर ही चुके हैं. लेकिन सोरेन ने अपने कैंपेन के दौरान एक दूसरे पहलू पर भी मतदाताओं का ध्यान खींचने की कोशिश की.
सोरेन ने BJP को 'एजेंडा-विहीन' बताया, जिसके पास कोई ठोस मुद्दे नहीं हैं. उन्होंने BJP की केंद्र सरकार पर झारखंड की योजनाओं में अडंगा लगाने का आरोप भी लगाया.
उन्होंने कहा कि झारखंड का कोयला रॉयल्टी और योजनाओं के हिस्से का केंद्र सरकार पर 1.36 लाख करोड़ रुपये बकाया है, ये पैसा झारखंड की योजनाओं में अडंगा लगाने के लिए रोका गया है.
जाहिर तौर पर सोरेन का प्रचार BJP पर भारी पड़ा, जिसका कैंपेन तमाम दूसरी चीजों के साथ मुख्यत: बांग्लादेश से अवैध प्रवास; 'रोटी, बेटी और माटी' को खतरे पर फोकस रहा.
दूसरी तरफ सोरेन के साथ राज्य में कांग्रेस जैसी मजबूत साझेदार है. इसके अलावा CPI (ML) और RJD के साथ ने इसे और मजबूत किया. जबकि BJP की साथी पार्टियों में कोई भी बहुत मजबूत जनाधार वाली पार्टी नहीं रही. AJSU, LJP छोटे खिलाड़ी रहे हैं, फिर JDU का असर भी बिहार के पड़ोसी राज्य में सीमित रहा.
तो स्पष्ट हो चुका है कि झारखंड के अब तक के 24 साल के चुनावी इतिहास में हेमंत सोरेन सबसे बड़े नेता बनने के लिए तैयार हैं. अगर चंपई सोरेन के छोटे से कार्यकाल को छोड़ दिया जाए, तो बीते 10 साल (सोरन और उसके पहले रघुवर दास की सरकार) में झारखंड को नेतृत्व में स्थायित्व मिला है, जिसके आगे आने वाले 5 साल के लिए भी बरकरार रहने की मजबूत संभावना है.