सार्वजनिक जीवन में मौजूद हर व्यक्ति को पेशेवर महत्वाकांक्षाओं के दबाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. एक सफल राजनेता के तौर पर एकनाथ शिंदे को भी इन चीजों से तो जूझना ही पड़ा, लेकिन उनकी कहानी की लकीर भी बहुत टेढ़ी रही है.
कभी परिवार को माली हालत पुख्ता करने के लिए सतारा से ठाणे आना पड़ा, कभी ऑटो चलाकर गुजारा करना पड़ा. फिर बच्चों को छीनकर नियति ने जिंदगी भर का ऐसा सदमा दिया कि शिंदे घोर अवसाद में घिर गए. गुरू आनंद दिघे का सहारा मिला, तो जीवन संभला. लेकिन अगले साल उन्होंने भी बेवक्त दुनिया छोड़ दी. शिंदे के निजी और राजनीतिक जीवन में ठोकर खाना, गिरना, उठना, संभलकर बढ़ना और फिर दौड़ लगाना जारी रहा.
अब नई सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया है. ऐसा लग रहा है कि शिंदे, बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत की लड़ाई में फिलहाल आगे चल रहे हैं. इसे समझने के क्रम में यहां हम उनके निजी और अब तक के सियासी सफर पर नजर डाल रहे हैं.
शुरुआती परवरिश और ठाणे में एंट्री
कृष्णा नदी और एकनाथ शिंदे, दोनों में दो समनाताएं हैं. पहला, कृष्णा 3 राज्यों का लंबा सफर तय कर समंदर तक पहुंचती है. इसी तरह शिंदे ने राजनीति में फर्श से अर्श की लंबी यात्रा की है. दूसरा, दोनों की जननी एक ही धरती है. महाबलेश्वर की धरती.
एकनाथ शिंदे का जन्म एक मराठा परिवार में 9 फरवरी 1964 को सतारा जिले की महाबलेश्वर तहसील स्थित दारे तांब गांव में हुआ था. जल्द ही उनका परिवार रोजी-रोटी की तलाश में ठाणे आ गया. यहीं युवा शिंदे की ज्यादातर पढ़ाई लिखाई हुई. लेकिन ये सिलसिला बहुत आगे तक नहीं चला. परिवार की माली हालत बेहतर करने के लिए शिंदे ने 11वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और ऑटो चलाना शुरू कर दिया. हालांकि पढ़ाई का ये सिलसिला 2014 में उन्होंने वापस शुरू किया और ग्रेजुएशन किया. उन्हें DY पाटिल यूनिवर्सिटी से 2023 में डी लिट की मानद उपाधि भी मिली.
श्रमिक आंदोलन से होते हुए शिवसेना की चुनावी राजनीति में शिंदे
खैर वापस लौटते हैं. तो शिंदे ने ऑटो चलाया. लेकिन उनका रुझान 80 के दशक की शुरुआत से ही राजनीति की तरफ होने लगा था. वो दौर श्रमिकों के आंदोलन का था, तो यहीं से शिंदे ने अपनी राजनीति की शुरुआत की. लेकिन दूसरी तरफ मुंबई क्षेत्र में शिवसेना तेजी से पैर पसार रही थी. और ठाणे में इस कवायद का नेतृत्व कर रहे थे आनंद दिघे. इन्हीं दिघे की मार्गदर्शन में शिंदे की शिवसेना में एंट्री हुई और वे किसान नगर के शाखा प्रमुख बने.
अगले कुछ साल उन्होंने दिघे के साथ मिलकर ठाणे में शिवसेना को मजबूत किया. महाराष्ट्र में तेजी से उभरी सेना 1995 में सरकार बनाने में कामयाब रही. 1997 में शिंदे को ठाणे नगर निगम में शिवसेना का प्रत्याशी बनाया गया और जीतकर वे पहली बार पार्षद बने. यहीं से शुरु होता है उनका चुनावी राजनीति का सफर. लेकिन उनकी जिंदगी में अभी सबसे बड़ा तूफान आना बाकी था.
...जब लगा कि सब खत्म हो गया
कभी-कभी जब लगता है कि सब ठीक चल रहा है, तभी कुछ बड़ा झटका लगता है. इंसान को जिंदगी की नश्वरता का अहसास हो जाता है. ऐसा ही बड़ा झटका शिंदे को लगा. उनकी आंखों के सामने उनका छोटा बेटा दीपेश और बेटी सुवधा उनके पैतृक गांव के तालाब में नांव पलटने के बाद डूब गए. एकनाथ शिंदे की दुनिया उजड़ गई. वे गहरे डिप्रेशन में चले गए.
इस बीच उनके गुरू आनंद दिघे सामने आए. उन्होंने शिंदे को संगठन में नई जिम्मेदारियां दीं, ताकि उनका मन व्यस्त रहे. नतीजा ये हुआ कि 2001 में उन्हें ठाणे नगर निगम में सदन के नेता के तौर पर चुना गया.
लेकिन 2001 में ही शिंदे पर एक और वज्रपात हुआ. गणेश उत्सव के दौरान आनंद दिघे कुछ लोगों से मिलने जा रहे थे, जहां उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया. अगले दो दिन वे सिंघानिया अस्पताल में भर्ती रहे. लेकिन वहीं इलाज के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई. गुस्साए शिवसैनिकों की 1,500 की भीड़ ने विजयपत सिंघानिया के उस अस्पताल को आग के हवाले कर दिया. शिंदे के ऊपर से उनके गुरू का साया चला गया. अब उन्हें खुद को मजबूत करना था, क्योंकि ठाणे का भार अब बाला साहेब ठाकरे ने उनके कंधों पर सौंप दिया.
विधानसभा में शिंदे
2004 में शिवसेना ने उन्हें पहली बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया. शिंदे ने ये चुनाव जीता, इसके बाद अगले 4 चुनाव (2009, 2014, 2019 और 2024) लगातार जीते. 2024 में वे पांचवी बार विधायक बने हैं.
2005 में उन्हें बाला साहेब ठाकरे ने ठाणे का जिला प्रमुख बनाया. यहां से उनकी ठाणे-कल्याण क्षेत्र पर पकड़ मजबूत होती चली गई. 2014 में उन्हें विधानसभा कार्यकाल के आखिरी के महीनों में नेता प्रतिपक्ष भी बनाया गया. इसके पहले उन्हें शिवसेना के विधायक दल का नेता चुना गया था. ये नियुक्ति उनके बढ़ते हुए कद की तस्दीक कर रही थी. 2014 में वे अपने बेटे और आर्थोपैडिक डॉक्टर श्रीकांत शिंदे को लोकसभा टिकट दिलवाने में कामयाब रहे. युवा श्रीकांत शिंदे ने बड़ी जीत दर्ज की, 2014 में उन्होंने ठाणे संसदीय क्षेत्र से लगातार तीसरी जीत हासिल की है.
2014 में NDA 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही. BJP ने 122 सीटें जीतीं, जिसके चलते देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने. इस सरकार में एकनाथ शिंदे PWD मंत्री बने थे. 2019 में जब शिवसेना ने NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई तो शिंदे को स्वास्थ्य एवम् परिवार कल्याण मंत्री बनाया गया.
बागी हुए शिंदे और बने मुख्यमंत्री
शिंदे शुरू से ही NCP के साथ सरकार बनाने को लेकर असहज थे. शिवसेना में खुद ये असहजता बढ़ रही थी. दरअसल वैचारिक विरोध के साथ-साथ शिंदे का ठाणे-कल्याण में राजनीतिक विरोध भी NCP और जितेंद्र अव्हाड जैसे नेताओं से रहा था. फिर उद्धव ठाकरे ने खुद मुख्यमंत्री का पद लेकर और आदित्य ठाकरे को चुनाव लड़ाकर ये भी साफ कर दिया था कि पार्टी का भविष्य किस दिशा में जाएगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके बावजूद शिंदे ने उद्धव ठाकरे पर BJP के साथ सरकार बनाने का दबाव भी बनाया. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
2022 में वे दो तिहाई विधायकों को इकट्ठा करने में कामयाब रहे. आखिरकार उनकी बगावत के बाद सरकार गिर गई. इस तरह एकनाथ संभाजी शिंदे महाराष्ट्र के बीसवें मुख्यमंत्री बने. वे करीब ढाई साल तक CM रहे.