Chandrayaan-3 India Moon Mission Explained: देश के तीसरे मून मिशन के तहत चंद्रयान-3 ने बड़े गर्व के साथ चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की. इसके साथ ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया. निर्धारित समय 6:04 बजे से 2 मिनट पहले ही चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर चांद पर लैंड हुआ और बेंगलुरू स्थित कमांड सेंटर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
अपने पहले ही मिशन में भारत ने चांद पर पानी होने की बात बताई थी. 22 अक्टूबर 2008 में चांद पर भेजा गया पहला चंद्रयान 14 नवंबर 2008 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, लेकिन तब तक उसने चांद की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि कर दी थी.
अब सवाल ये है कि इस मिशन से भारत काे क्या कुछ हासिल होगा?
मिशन चंद्रयान-3, देश के लिए बेहद खास मिशन है. ISRO ने चांद के उसी हिस्से में जाने की सोची, जो अब तक अछूता था और उसने ऐसा कर दिखाया. चांद के दक्षिणी ध्रुव यानी साउथ पोल में सूर्य की रोशनी बमुश्किल ही पहुंचती है. इसके कुछ हिस्से तो ऐसे हैं, जो करोड़ों साल से अंधेरे में डूबे हैं. चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर अब तक किसी देश ने लैंडिंग नहीं की है. इसरो का मिशन कामयाब हुआ और भारत ऐसा करने वाला पहला देश बन गया.
चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव इसलिए भी बेहद अहम है, क्योंकि माना जाता है कि इस क्षेत्र में पानी की बर्फ मौजूद है, जो भविष्य में यहां इंसानों के बसने की उम्मीद जगा सकती है.
इस मिशन से भारत की स्पेस इंडस्ट्री को बड़ा उछाल मिल सकता है. ये देश को अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभारेगा.
चंद्रयान-3, अंतर-ग्रहीय मिशन (Interplanetary Mission) के लिए नई तकनीक दिखाएगा. मिशन की कामयाबी से भारत की साख मजबूत हुई है और भविष्य के अन्य मून मिशन पर भी इसका असर पड़ेगा.
चंद्रयान 3 के विक्रम लैंडर में 'प्रज्ञान' रोवर है. ISRO की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, लैंडिंग के बाद लैंडर से निकला रोवर चंद्रमा की सतह की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करेगा.
चंद्रयान-3, चांद की सतह पर पानी की खोज भी करेगा. ये दक्षिणी ध्रुव पर जमी मिट्टी में पानी के निशान का पता लगाता है, तो ये भविष्य के प्रयोगों के लिए अधिक उपयोगी होगा.
'प्रज्ञान' अपने लेजर बीम का इस्तेमाल, चंद्रमा की सतह के एक टुकड़े को पिघलाने के लिए करेगा, जिसे 'रेगोलिथ' (Regolith) कहा जाता है, और इस प्रक्रिया में उत्सर्जित गैसों का विश्लेषण करेगा.
चंद्रयान का एक पेलोड 'रेडियो एनैटमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर' (RAMBHA), चंद्रमा की सतह के पास आवेशित कणों के घनत्व को मापेगा और समय के साथ इनमें होने वाले बदलावों की जांच करेगा.
एक अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) रासायनिक संरचना को मापेगा और चंद्रमा की सतह की खनिज संरचना का भी पता लगाएगा, जबकि लेसर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) चंद्रमा की मिट्टी की मौलिक संरचना निर्धारित करेगा.
ब्रह्मांड के कुछेक ग्रहों पर इंसानों के बसने को लेकर कई संभावनाओं पर रिसर्च जारी है. भारत समेत कई देशों के मंगल मिशन का एक उद्देश्य ये भी रहा है. इसी तरह चांद पर भी इंसानों के बसने की संभावना पर काफी लंबे समय से चर्चा होती आ रही है.
इस मिशन के जरिये भारत न केवल चंद्रमा की सतह और वहां के वातावरण के बारे में ढेरों जानकारियां हासिल करेगा. इस मिशन के तहत ये भी पता लगाया जाएगा कि चंद्रमा भविष्य में इंसानों के बसने लायक है या नहीं.
चंद्रमा पर पानी का पता लगने पर उससे ऑक्सीजन बनाने का विकल्प भी मिलेगा, यानी इसके जरिये मानव जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है.