सुप्रीम कोर्ट ने अदाणी पावर (Adani Power) की याचिका पर 280 करोड़ रुपये के रिफंड से जुड़े मामले में हिमाचल सरकार को नोटिस जारी किया है.
मामला किन्नौर में दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट्स और इनके लिए जमा किए गए अपफ्रंट प्रीमियम के रिफंड से जुड़ा है. ये नोटिस जस्टिस NM सुंद्रेश के नेतृत्व वाली बेंच ने जारी किया है.
दरअसल 2005 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2 हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट्स के लिए आवेदन बुलाए थे. उस वक्त सबसे ज्यादा बोली ब्रेकल कॉरपोरेशन NV ने लगाई थी.
हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसके आधार पर ब्रेकल को 980 MW का जंगी थोपन और थोपन पोवारी हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट का ठेका दिया था. लेकिन ब्रेकल सही वक्त पर पेमेंट पूरी नहीं कर पाई.
प्री-इंप्लीमेंटेशन एग्रीमेंट और हिमाचल प्रदेश की हाइड्रोपावर पॉलिसी के नियमों का पालन करते हुए अदाणी पावर ने ब्रेकल में 280 करोड़ रुपये का निवेश किया. दरअसल ब्रेकल को अपफ्रंट प्रीमियम और दूसरे पेमेंट्स का 50% हिस्सा चुकाना था, जो करीब 173 करोड़ रुपये था.
इस कदम के बाद हिमाचल प्रदेश कैबिनेट ने ब्रेकल को शोकॉज नोटिस जारी कर दिया. इसमें पूछा गया कि क्यों तथ्यों को छुपाने के चलते कंपनी को आवंटित ठेके को रद्द नहीं किया जाना चाहिए?
मामले में जांच करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमिटी का गठन किया गया. कमिटी ने जांच के बाद कहा कि ब्रेकल और उसके कंसोर्शियम पार्टनर्स द्वारा अहम जानकारी को दबाने के आरोपों को सही नहीं पाया गया है. इसलिए ब्रेकल को आवंटित ठेके को रद्द किया जाना मुश्किल है.
2015 में सरकार ने ब्रेकल द्वारा जमा किए गए अपफ्रंट प्रीमियम को वापस करने का फैसला किया. लेकिन बाद में सरकार ने अपना फैसला पलट दिया और कभी ये पैसा वापस नहीं किया.
अदाणी पावर ने 2019 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में केस फाइल किया और एक सिंगल जज बेंच ने रिफंड की अपील को मान लिया. जवाब में हिमाचल सरकार ने हाई कोर्ट की ही एक डिवीजन बेंच के सामने अपील दायर की.
तब हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अदाणी पावर और ब्रेकल के बीच समझौता हिमाचल सरकार की सहमति के बिना हुआ था. इसके चलते हाइड्रोपावर पॉलिसी और ठेके की शर्तों का उल्लंघन हुआ है.