रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट की माने तो आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश कम है. कोरोना महामारी के बाद इसमें तेजी का रुख जारी है, मगर ये अब भी बहुत ज्यादा नहीं है. इकोनॉमी में उत्पादन में संभावित ग्रोथ के चलते न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी देखी गई है.
न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट, खासतौर पर छोटी अवधि की दरें होती हैं और ये अर्थव्यवस्था की सेहत से जुड़ी होती हैं. अगर ये ज्यादा नहीं है तो बताती हैं कि इकोनॉमी महंगाई का दबाव पैदा किए बिना पूरी क्षमता से काम कर रही है. RBI ने कहा है कि "Q4FY24 के लिए न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट का अनुमान 1.4 से 1.9% है, जबकि Q3,FY22 के लिए हमारा पिछला अनुमान 0.8-1.0% था" यानी मौजूदा हालात को देखते हुए ये बढ़त बहुत ज्यादा नहीं है.
फिलहाल महंगाई की दरें 4.5 से 5% के बीच हैं, अगर रेपो रेट या बेंचमार्क रेट जो कि 6.5% है, इसमें से महंगाई की दर को घटा दें तो वास्तविक पॉलिसी दरें, न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट की रेंज 1.4 से 1.9% के बीच बैठती हैं. जो निश्चित रूप से ज्यादा नहीं है
न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट पर ज्यादा गौर नहीं किया जाता. इसे आंकने का कोई फॉर्मूला भी नहीं है, मगर इसका अनुमान लगाया जाता है क्योंकि ये सही मॉनेटरी पॉलिसी तय करने के लिए जरूरी है. न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट का अनुमान इकोनॉमी में अनिश्चितता को भी दिखा सकता है, ऐसे में मॉनेटरी पॉलिसी में किसी भी आकलन को सावधानी से करने की जरूरत है.
रियल पॉलिसी इंट्रेस्ट रेट और न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट का फर्क मॉनेटरी पॉलिसी के रुख को मापता है. फिलहाल, रेपो रेट या बेंचमार्क रेट 6.5% है. यदि महंगाई को एडजस्ट करने के बाद ब्याज दरें न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट से ज्यादा हैं तो मॉनेटरी पॉलिसी को महंगाई विरोधी माना जाता है. लेकिन यदि रियल पॉलिसी इंट्रेस्ट रेट्स, न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट से कम है तो मॉनेटरी पॉलिसी को एक्सप्लेशनरी या अकोमोडेटिव माना जाता है.
जब रिटल रेपो रेट, न्यूट्रल इंट्रेस्ट रेट पर या उसके करीब होती है, तो मॉनेटरी पॉलिसी न्यूट्रल होती है. ये स्थिति तब बनी रहने की उम्मीद है जब महंगाई लक्ष्य के अनुरूप यानी करीब हो और इकोनॉमी में प्रोडक्शन अपने संभावित स्तर पर या उसके करीब हो.