बढ़ती आबादी के बीच भारत (India) और इंडोनेशिया (Indonesia) ऐसे दो मुल्क हैं, जो इमर्जिंग मार्केट (Emerging Market) इन्वेस्टर्स के लिए सबसे मुफीद नजर आते हैं. निवेश के लिहाज से ये दोनों ही देश बड़ी भूमिका निभाने के लिए दिखते हैं. फिडेलिटी इंटरनेशनल (Fidelity International) और ब्लैकरॉक इन्वेस्टमेंट इंस्टीट्यूट (BlackRock Investment Institute) की एक रिपोर्ट में ये बात कही गई है. जिसमें इन दोनों देशों को EM इन्वेस्टर्स के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद बताया गया है.
इमर्जिंग एशिया में बीते कुछ साल में इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर तेजी आई है और इसकी वजह से देशों की इकोनॉमी में इजाफा हुआ है. इसके चलते इमर्जिंग एशिया में भारत और इंडोनेशिया पर EM इन्वेस्टर्स का फोकस बढ़ा है. किस्मत से भारत और इंडोनेशिया, दोनों ही देश चुनाव के दौर से गुजर रहे हैं. दोनों ही देश खुद को बड़े इकोनॉमिक पावरहाउस में बदलने में लगे हैं जिसमें उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी आबादी है.
दोनों ही देशों की आबादी चीन के मुकाबले तेजी से बढ़ रही है. 2023 के बीच में ही आबादी के आकड़ों में भारत चीन (China) से आगे निकल गया. इसका एक बड़ा असर दक्षिण एशियाई शेयर बाजार पर पड़ा.
ब्लैकरॉक की एनालिसिस पर जाएं तो देश की बढ़ती आबादी का उस देश के शेयर प्राइस वैल्यूएशन पर सीधा असर पड़ता है. फिडेलिटी का मानना है कि फाइनेंशियल सेक्टर को इस डेवलपमेंट का सबसे ज्यादा फायदा मिलने वाला है. क्योंकि कॉरपोरेट हो या फिर कंज्यूमर, क्रेडिट की जरूरतें सभी की बढ़ने वाली हैं.
सिंगापुर में फिडेलिटी इंटरनेशनल के फंड मैनेजेर इयान सैमसन (Ian Samson) ने कहा, 'भारत और इंडोनेशिया का लेबर फोर्स युवा है. पड़ोसियों के मुकाबले इन दोनों की इकोनॉमी का डेमोग्राफिक डिविडेंड तेजी से बढ़ सकता है'. इयान के मुताबिक, 'छोटी से बड़ी सभी कंपनियों को फाइनेंसिंग की जरूरत है. इससे ही समझ में आता है कि इमर्जिंग मार्केट्स में GDP और बैंक शेयर एक-दूसरे के साथ हाथ से हाथ मिलाकर चलते हैं'.
भारत और इंडोनेशिया की आबादी में 2040 तक 10% की बढ़ोतरी का अनुमान है. इसके साथ ही, वर्ल्ड बैंक ने बताया कि चीन की आबादी में 4% की गिरावट आ सकती है.
काम करने वाली आबादी, जिसे 15 साल से 64 साल के बीच माना जाता है. चीन में काम करने वाली आबादी में गिरावट आ रही है, वहीं भारत दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी के बीच सबसे युवा है.
ब्लैकरॉक इन्वेस्टमेंट इंस्टीट्यूट के जीन बोइविन (Jean Boivin) ने मार्च में अपने एक नोट में कहा था, जिस देश में कामकाजी आबादी सबसे ज्यादा हो, उसकी भविष्य में होने वाली कमाई में अच्छी तेजी देखने को मिलती है. इसके साथ ही माइग्रेशन, लेबर-फोर्स की बढ़ती भागीदारी और ऑटोमेशन इसमें बड़ी भूमिका अदा करते हैं.
भारत और इंडोनेशिया, दोनों ही देश के डेमोग्राफिक डिविडेंड में भरोसा बढ़ रहा है. आने वाले चुनाव भी इस तेजी में घी का काम कर रहे हैं.
एनालिस्ट्स के मुताबिक, स्ट्रक्चरल रिफॉर्म में रेगुलेटर की ओर से लगने वाली पाबंदी में कमी आएगी, जॉब मार्केट में एक लचीलापन आएगा और अपनी डेमोग्राफी को बेहतर करने के लिए विदेशी निवेश बहुत जरूरी होगा.
फिडेलिटी के सैमसन ने कहा, 'कर्मचारी और उनकी प्रोडक्टिविटी से ग्रोथ तय होती है'. उन्होंने कहा, 'भारत और इंडोनेशिया में स्ट्रक्चरल रिफॉर्म देखने को मिल रहा है और बढ़ती नौकरियां और डेमोग्राफिक डिविडेंड भी नजर आ रहा है'.
कुछ प्रगति हुई है और बहुत सारी होनी बाकी है. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोवो सुबिआंतो (Prabowo Subianto) , जिन्होंने अक्टूबर 2023 में कामकाज संभाला था, उन्होंने सालाना 8% GDP ग्रोथ का लक्ष्य रखा है, जबकि उसकी इकोनॉमी इसके कहीं नीचे है.
इन्वेस्टर्स की नजर इस पर भी है कि क्या राज्य सरकारें लेबर, लैंड और दूसरी पॉलिसी में उन नियमों को लागू करेंगी, जो केंद्र सरकार ने लागू की हैं. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की पार्टी बहुमत से जीत पाएगी. इसके साथ ही, क्या रिफॉर्म्स में बदलाव को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और क्या इसका असर बाजार पर पड़ता है.
सॉवरेन डेट (Sovereign Debt) और आयु पर निर्भरता (Age dependency) का अनुपात, जो काम करने के लिए कम या ज्यादा उम्र को निर्धारित करता है, उसके साथ फिस्कल दबाव लॉन्ग-टर्म में निवेश के लिहाज से बेहतर है.
ब्लूमबर्ग (Bloomberg) की ओर से जुटाए गए डेटा के मुताबिक, ग्लोबल फंड्स ने भारत के बॉन्ड इंडेक्स में $5.5 बिलियन का निवेश किया है. फरवरी में जब अंतरिम बजट आया, तो पॉपुलिस्ट बजट के मुकाबले इंफ्रास्ट्रक्चर में रिकॉर्ड निवेश पर फोकस किया गया, जिससे निवेशकों ने राहत की सांस ली होगी.
वहीं, विदेशी निवेशकों ने इंडोनेशिया के नोट्स से $1.8 बिलियन बाहर निकाले. सरकार की ओर से वित्तीय हालात को सुधारने के लिए खर्च बढ़ाने के कदम के चलते ये पैसा बाहर निकाला गया है.
HSBC ग्लोबल एसेट मैनेजमेंट में फिक्सड इनकम के डायरेक्टर संजय शाह (Sanjay Shah) ने कहा, 'बढ़ती आबादी से हेल्थकेयर और पेंशन की लागत बढ़ती है. इसके साथ ही विकसित इकोनॉमी में अधिकतर EM इकोनॉमी के मुकाबले सोशल बेनेफिट्स ज्यादा दिए जाते हैं'. उन्होंने कहा, 'EM इकोनॉमी में, पेंशन प्लान का दबाव कम होता है और फिक्स्ड बेनिफिट भी कम ही रहता है'. इससे सरकार पर फंडिंग का दबाव कम पड़ता है.