बुधवार को हाउसिंग डेवेलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन (HDFC) लिमिटेड के स्टॉक की आखिरी बार ट्रेडिंग हुई. गुरुवार को स्टॉक डिलिस्ट हो गया. भारत की सबसे बड़ी फाइनेंस कंपनी का शेयर आखिरी बार 2,729.95 रुपये प्रति शेयर पर बंद हुआ, इसमें 0.62% की हल्की गिरावट दर्ज की गई. इस तरह HDFC की एक स्वतंत्र कंपनी के तौर पर पहचान खत्म हो गई.
1 जुलाई को HDFC का HDFC बैंक के साथ विलय कर दिया गया था. अब जब HDFC का चैप्टर खत्म हो रहा है, तब BQ प्राइम आपके लिए 46 साल पुराने इस प्राइवेट सेक्टर के सबसे बड़े कर्जदाता की कहानी लेकर आया है.
हसमुखभाई ठाकोरदास पारेख को उनके चाहने वाले HTP बुलाया करते थे. 1977 में उनकी ICICI लिमिटेड (Industrial Credit and Investment Corp. of India Ltd.) के चेयरमैन के तौर पर लंबी पारी खत्म होने वाली थी. पारेख पशोपेश में थे कि आगे क्या करना है. हसमुखभाई के साथ उनके युवा चार्टर्ड अकाउंटेंट भतीजे दीपक पारेख रहते थे.
ICICI के साथ अपने कुछ आखिरी महीनों में HTP एक मॉर्गेज लेंडिंग कंपनी खोलना चाहते थे. उनकी मंशा इस कंपनी को ब्रिटेन और अमेरिका में चलने वाली कंपनियों के मॉडल पर शुरू करने की थी. उन्होंने ये प्रस्ताव तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री एचएम पटेल को बताया और तुरंत उन्हें हरी झंडी मिल गई. नई कंपनी को प्राइवेट मॉर्गेज लेंडर के तौर पर काम करना था, इस कंपनी का काम मिडिल क्लास और अमीर भारतीयों को बिना किसी सरकारी प्रतिबद्धता के कर्ज देना था.
कंपनी का नाम हाउसिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड रखा गया और मुंबई के रैमन हाउस में HTP का ऑफिस बनाया गया.
दीपक पारेख, मॉर्गेज लेंडिंग पर HTP के विचारों से अच्छी तरह परिचित थे, इस पर दोनों के बीच रमी और बियर पर लंबी चर्चाएं जो होती थीं. अब दीपक पारेख को अपने करियर को लेकर एक अहम फैसला लेना था. 1977 में उनकी कंपनी चेज मैनहट्टन बैंक पारेख को मुंबई ऑफिस से सऊदी अरब भेज रही थी. दीपक पारेख ने तब 1978 में अपनी ऊंची तनख्वाह वाली नौकरी को छोड़कर अपने चाचा के साथ काम करने का फैसला किया.
'मुझे याद है कि स्टार्टअप HDFC में शामिल होने का निर्णय लेने के लिए उन्होंने (HTP) कभी भी मेरे साथ जबरदस्ती या दबाव नहीं डाला, और वो भी 50% वेतन कटौती पर'. पारेख एक रिकॉर्ड किए गए संदेश में कहते हैं, जो वर्तमान में HT पारेख लेगेसी सेंटर में चलता है, जिसका उद्घाटन 28 जून को हुआ था.
कर्नाड ने बताया कि - जहां तक फंडिंग की बात थी, तो वर्ल्ड बैंक से लाइन ऑफ क्रेडिट मिलने के बाद HDFC की दिक्कतें कम होना शुरू हो गईं. इससे काफी चीजें सुधर गईं, क्योंकि इसके बाद दूसरे कर्जदाता भी HDFC को कर्ज देने के लिए तैयार होने लगे.
बाद के सालों में HDFC की जबरदस्त ग्रोथ हुई, क्योंकि बैंकिंग सिस्टम से अलग, कंपनी भारत की अकेली मॉर्गेज लेंडर थी. कंपनी की लगातार ग्रोथ और इसके विकासशील प्रकृति के चलते कंपनी ने भारत में फोरक्लोजर लॉ बनाने में भी अहम योगदान निभाया.
एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कंपनी के वाइस चेयरमैन और CEO केकी मिस्त्री ने BQ प्राइम से कहा था, '90 के दशक में हमारे बिजनेस में कंपटीशन आना शुरू हुआ. बल्कि हमने खुद अपना कंपटीशन तैयार किया.'
केकी कहते हैं, 'केनरा बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और कुछ दूसरे पब्लिक बैंक, इक्विटी इंफ्यूजन की मांग के साथ HDFC के पास आए, इन लोगों ने अपनी खुद की हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां बनाने के लिए भी HDFC से सलाह मांगी, जिसके लिए हम तुरंत तैयार हो गए.'
केकी आगे कहते हैं कि HDFC ने इसलिए ये मदद की, क्योंकि तब भारत का हाउसिंग फाइनेंस मार्केट काफी बड़ा था.
चूंकि HDFC की इक्विटी में सरकार का कोई योगदान नहीं था, तो कंपनी को फंड इकट्ठा करने के लिए तेजी से पब्लिक होना था. 1978 में जब HDFC का IPO आया, तो बहुत लोगों ने इसे नहीं खरीदा. चूंकि बहुत सारे लोग मॉर्गेज लेंडिंग कॉन्सेप्ट से परिचित नहीं थे, इसलिए IPO फेल हो गया और ब्रोकर्स को इसे इसे बचाना पड़ा.
कंपनी को बिजनेस के पहलू पर भी लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा. फंडिंग को लेकर काफी मुश्किलें थीं, लोग भी घर बनाने के लिए पैसा लोन पर लेने को लेकर शंका में थे, क्योंकि उस समय के हिसाब से ये काफी अनोखा विचार था.
HDFC के मैनेजिंग डॉयरेक्टर रेनू सूद कर्नाड ने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में BQ प्राइम से कहा था, 'जब हमने शुरुआत की, तो लोग हमारे तब के चेरयमैन HT पारेख पर हंसते थे, वो कहते थे कि आपको कोई भी पैसा वापस नहीं करेगा, क्योंकि फोरक्लोजर नियम नहीं हैं. दरअसल HT पारेख ने भारतीय लोगों की अच्छाई पर दांव लगाया था.'
लेकिन लोगों की शंका तब खत्म हुई, जब मुंबई के उपनगर मलाड के रहने वाले DB रेमेडियोस 30,000 का कर्ज लेकर HDFC से कर्ज लेने वाले पहले शख्स बने. उन्होंने ये कर्ज 10.5% के फिक्स रेट पर लिया था.
90 के दशक के मध्य तक आते-आते HDFC नेतृत्व के पास एक और विचार आया. आर्थिक उदारवाद के बाद भारत में पैसे वालों की संख्या बढ़ रही थी. होम लोन देने का काम सही था. लेकिन अब दूसरी चीजों पर भी कर्ज देने की जरूरत महसूस हुई. इनमें व्हीकल लोन, कंजप्शन लोन, क्रेडिट कार्ड जैसी अन्य चीजें शामिल थीं. लेकिन ये ऐसी चीज नहीं थी, जिसे HDFC आंतरिक ढंग से ही कर सकता था.
1994 में HDFC ने बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन किया, जो मिल भी गया. इस तरह HDFC बैंक की शुरुआत हुई. सिटीबैंक के एक महात्वकांक्षी बैंकर आदित्य पुरी को HDFC बैंक का नेतृत्व सौंपा गया. यहां HDFC सिर्फ नजर रखने की भूमिका में था. पुरी के नेतृत्व में आने वाले दशकों में HDFC बैंक भारत का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक बनकर उभरा. 2020 में पुरी रिटायर हुए और कमान शशिधर जगदीशन के हाथ में आई, जो अब बैंक के मैनेजिंग डॉयरेक्टर और चीफ एक्जिक्यूटिव ऑफिसर हैं.
HTP के निधन के कुछ समय बाद 1997 में दीपक पारेख ने HDFC में नॉन-एक्जिक्यूटिव चेयरमैन के तौर पर नेतृत्व संभाला.
2000 के दशक तक हाउसिंग फाइनेंस सेगमेंट में जबरदस्त कंपटीशन बढ़ चुका था. तत्कालीन CEO के वी कामथ के नेतृत्व में ICICI बैंक लिमिटेड ने भारत में रिटेल लेंडिंग ग्रोथ में तेजतर्रार कदम बढ़ाने शुरू कर दिए, जिसमें हाउसिंग पर बड़ा ध्यान केंद्रित किया गया था. SBI जैसे दूसरे देनदारों ने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी थी. लेकिन HDFC की अग्रणी भूमिका बरकरार रही.
2009 में SBI चेयरमैन ओपी भट्ट हाउसिंग फाइनेंस मार्केट में उथल-पुथल मचाने के लिए टीजर लोन प्रोडक्ट लेकर आए. इस योजना के तहत नए कर्जदारों को शुरुआती एक या दूसरे साल तक एक फिक्स्ड लोन रेट मिल रही थी, जिसकी दर काफी कम थी. इसके बाद लोन पर फ्लोटिंग रेट थी, जो बाजार से जुड़ी थी. शुरुआत में SBI के लिए ये योजना काफी सफल रही और बैंक, HDFC के साथ बाजार पर कब्जा जमाने के लिए सीधे प्रतिस्पर्धा में आ गया.
भट्ट के कदम से बड़े पैमाने पर लोगों को हैरानी हुई, यहां तक कि रेगुलेटर RBI भी परेशानी में था. ये प्रोडक्ट पूरी तरह कानूनी था, लेकिन इससे किसी कर्जदार को शुरुआत में फिक्स पीरियड के बाद अप्रत्याशित ऊंची दरों का सामना करना पड़ सकता था. उस वक्त पारेख ने इस प्रोडक्ट की आलोचना की थी, लेकिन प्रतिस्पर्धा के चलते HDFC को भी आखिरकार इसे लेकर आना पड़ा.
2011 तक RBI इस तरह के टीजर लोन के लिए जरूरी प्रावधान बना चुका था, जिसकी वजह से SBI और HDFC दोनों को अपने इस प्रोडक्ट को वापस लेना पड़ा. बाद के सालों में कर्जदाताओं ने इस तरह के प्रोडक्ट के साथ प्रयोग करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें बाजार से कभी मदद नहीं मिली. आखिरकार RBI ने बैंकों की सभी नई रिटेल लोन रेट को 2019 में एक बाहरी बेंचमार्क से जोड़ दिया.
31 मार्च तक बैंकिंग सिस्टम से 19.36 लाख करोड़ रुपये के कुल होम लोन बांटे गए. होम लोन बांटने के मामले में SBI पहले नंबर पर है, जिसने 6.4 लाख करोड़ रुपये के लोग बांटे हैं. दूसरे नंबर पर है, जिसकी लोन बुक पिछले वित्त वर्ष के खात्मे पर 4.99 लाख करोड़ रुपये की रही थी. HDFC का कुल आउटस्टैंडिंग लोन 6.2 लाख करोड़ रुपये का है.
4 अप्रैल, 2022 को मुंबई में रिपोर्टर्स से बात करते हुए पारेख ने HDFC और HDFC बैंक के विलय की घोषणा की, जिससे सभी हैरान रह गए. इस विलय से देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक तैयार होने वाला था, जो बाकी बैंकों से कई मील आगे था.
पारेख के मुताबिक ये विलय फौरी तौर पर बहुत जरूरी था, क्योंकि बड़े गैर-बैंकिंग लेंडर्स के लिए RBI ने नियम काफी कड़े कर दिए हैं. HDFC के स्तर पर मौजूद NBFCs को इस सेक्टर के टॉप प्लेयर्स मानकर, उनका रेगुलेशन बैंकों की तरह किया जाएगा. इससे इन कंपनियों द्वारा कानून की कमियों का जो फायदा उठाया जाता था, उसमें बड़ी गिरावट आएगी.
ये विलय आखिरकार 30 जून को HDFC और HDFC बैंक के बोर्ड द्वारा अनुमति दिए जाने के बाद पूरा हुआ. HDFC के अस्थायी अनुमानों के मुताबिक, अब HDFC बैंक की कुल लोन बुक 22.45 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े पर पहुंच गई है. कंपनी का डिपॉजिट पोर्टफोलियो भी 20.63 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है. ये केवल SBI से कम है, जिसकी 31 मार्च तक लोन बुक 34.69 लाख करोड़ रुपये की है. अब HDFC, तीसरे नंबर पर काबिज ICICI बैंक से भी बहुत आगे हो गया है.
ब्लूमबर्ग के अनुमानों के मुताबिक, मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से HDFC बैंक दुनिया का चौथा सबसे बड़ा लेंडर बन जाएगा.
इस विलय से HDFC बैंक को मोर्टगेज लोन मार्केट में एंट्री का मौका भी मिलेगा. साथ ही 8,000 अतिरिक्त ब्रॉन्च, 4,000 हाउसिंग फाइनेंस एक्सपर्ट भी पेरेंट कंपनी से बैंक में शामिल होंगे.