भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने मंगलवार को फंड डायवर्जन के आरोप में जेनसोल इंजीनियरिंग, इसके CEO अनमोल सिंह जग्गी और प्रोमोटर-निदेशक पुनीत सिंह जग्गी को सिक्योरिटीज मार्केट से प्रतिबंधित कर दिया.
बाजार रेगुलेटर ने दोनों कंपनी अधिकारियों को किसी भी प्रमुख मैनेजरियल पद पर रहने से भी रोक दिया है.
जेनसोल को घोषित स्टॉक स्प्लिट को रोकने के लिए कहा गया है, साथ ही रेगुलेटर ने इसके खातों और संबंधित सभी पक्षों के खातों की जांच करने के लिए एक फोरेंसिक ऑडिटर की नियुक्ति का भी निर्देश दिया है.
SEBI ने पाया है कि कंपनी के फंड को लग्जरी प्रॉपर्टी खरीदने और प्रोमोटरों के निजी खर्चों का पेमेंट करने के लिए डायवर्ट किया गया है.
बता दें, SEBI को शेयर प्राइस में हेराफेरी और फंड डायवर्जन के बारे में जून 2024 में शिकायत मिली थी. SEBI की जांच में फर्जी दस्तावेज, फंड का दुरुपयोग और धोखाधड़ीपूर्ण खुलासे पाए गए.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने पुष्टि की गई पेमेंट देरी का हवाला देते हुए मार्च 2025 में जेनसोल की क्रेडिट रेटिंग को घटाकर 'D' कर दिया था. जब रेगुलेटर ने उन्हें अचानक डाउनग्रेड के बारे में बताने के लिए कहा, तो पता चला कि कंपनी ने सरकारी लेंडर्स IREDA और पावर फाइनेंस से फैब्रिकेटेड डेट सर्विसिंग कंडक्ट सबमिट किए थे.
SEBI की जांच मुख्य रूप से 6,400 इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने के लिए जेनसोल द्वारा उठाए गए 663.89 करोड़ रुपये के लोन के इर्द-गिर्द रही है. हालांकि इसमें से केवल 4,704 EV वास्तव में 567.73 करोड़ रुपये में खरीदे गए थे. इसमें 200 करोड़ रुपये से अधिक की राशि का हिसाब नहीं मिल पाया.
सैंक्शन लोन कथित तौर पर एक डीलर, गो-ऑटो प्राइवेट लिमिटेड को दिए गए, जिसने बदले में जग्गी भाइयों से जुड़ी विभिन्न कंपनियों को पैसे ट्रांसफर किए, जिनमें कैपब्रिज वेंचर्स LLP, मैट्रिक्स गैस एंड रिन्यूएबल्स और वेलरे सोलर इंडस्ट्रीज शामिल हैं.
जेनसोल में प्रमोटर की हिस्सेदारी, जो कभी 70% से अधिक थी, मार्च 2025 तक घटकर 35% रह गई. इसमें से 75.74 लाख शेयर IREDA के पास गिरवी रखे गए थे, जिनमें से कई कथित तौर पर जब्त कर लिए गए हैं. इस बीच, खुदरा निवेशकों के पास कंपनी के लगभग 65% शेयर बने हुए हैं.
जेनसोल के स्टॉक एक्सचेंज खुलासे भी आलोचना के घेरे में हैं. इस साल जनवरी में, कंपनी ने दावा किया था कि उसे 30,000 EV प्री-ऑर्डर मिले हैं. लेकिन केवल 29,000 यूनिट के लिए गैर-बाध्यकारी MoU थे, जिनमें डिलीवरी शेड्यूल या प्राइसिंग निर्धारण नहीं था.
इसी तरह, रेफेक्स ग्रीन मोबिलिटी के साथ 315 करोड़ रुपये की रणनीतिक साझेदारी के बारे में एक खुलासा किया गया था. मार्च 2025 में इसे बिना किसी हलचल के वापस ले लिया गया.