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एंटीबायोटिक के गलत इस्‍तेमाल से दुनियाभर में 3.9 करोड़ मौत की आशंका! भारत पर कितना असर और उपाय क्‍या हैं?

भारत के लिए ये स्‍टडी इसलिए भी चिंता का विषय है, क्‍योंकि भविष्‍य में होने वाली मौत के आंकड़े में सबसे ज्‍यादा हिस्‍सेदारी दक्षिण एशिया से होगी.
NDTV Profit हिंदीनिलेश कुमार
NDTV Profit हिंदी12:29 PM IST, 18 Sep 2024NDTV Profit हिंदी
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एंटीबायोटिक दवाओं का ज्‍यादा इस्तेमाल या इनका गलत इस्‍तेमाल लोगों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है. लैंसेट की स्‍टडी के मुताबिक, एंटीमाइक्रोबियल रजिस्‍टेंस (AMR) की वजह से साल 1990 से 2021 के बीच दुनियाभर में हर साल 10 लाख से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई.

आने वाले दशकों में भी इसका खतरा बना हुआ है. स्‍टडी के मुताबिक, अगले 25 वर्षों में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की वजह से 3.90 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है.

भारत के लिए ये इसलिए भी चिंता की बात है, क्‍योंकि भविष्‍य में होने वाली मौत के आंकड़े में सबसे ज्‍यादा लोग दक्षिण एशिया से होंगे. भारत, बांग्‍लादेश, श्रीलंका और पाकिस्‍तान जैसे देश दक्षिण एशिया में ही आते हैं.

साल 2025 से 2050 के बीच इसकी वजह से दक्षिण एशिया में सीधे तौर पर 1.18 करोड़ लोगों की मौत होने का अंदेशा है. इससे भारत काफी हद तक प्रभावित हो सकता है.

एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस का संबंध सीधे तौर पर एंटीबायोटिक दवाओं के गलत या अत्‍यधिक इस्‍तेमाल से है. ये अक्‍सर तब होता है जब संक्रामक बैक्टीरिया और फंगस पर एंटीबायोटिक दवाओं का असर होना बंद हो जाता है.

ये स्‍टडी समय के साथ एंटीमाइक्रोबियल रजिस्‍टेंस (AMR) के वैश्विक स्वास्थ्य प्रभावों का पहला गहन विश्लेषण (In-Depth Analysis) है, जो दुनियाभर के 204 देशों और टेरीटरीज के लिए 1990 से 2021 तक के रुझानों को दिखाती है. साथ ही साल 2050 तक संभावित प्रभावों का अनुमान भी लगाती है.

लैंसेट की स्‍टडी: खतरे की घंटी 

ग्लोबल रिसर्च एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस रिपोर्ट (Global burden of bacterial antimicrobial resistance 1990–2021: a systematic analysis with forecasts to 2050) के मुताबिक,

  • 1990 से 2021 के बीच दुनिया भर में हर साल AMR से 10 लाख से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई. इस अवधि में, 5 साल से कम उम्र के बच्चों में AMR से होने वाली मौतों में 50% की कमी आई, जबकि 70 साल और उससे ज्‍यादा उम्र के लोगों में 80% से ज्‍याद की बढ़ोतरी हुई.

  • पूर्वानुमानों से संकेत मिलता है कि आने वाले दशकों में AMR से होने वाली मौतें लगातार बढ़ेंगी. ये आंकड़े 2022 की तुलना में 2050 तक लगभग 70% बढ़ जाएंगे. बुजुर्गों पर इसका ज्‍यादा असर पड़ेगा.

  • स्‍टडी के मुताबिक, 1990 और 2022 के बीच 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में AMR मौतों में काफी गिरावट देखी गई. ये आंकड़ा 1990 में 4.88 लाख हुआ करता था, जो कि 2022 में घटकर 1.93 लाख रह गया. अनुमान है कि ये आंकड़ा 2050 तक आधा हो जाएगा.

  • अन्य सभी उम्र वर्ग में AMR से मौत की दर बढ़ रही है. 70 से अधिक उम्र के बुजुर्गों में AMR डेथ रेट तीन दशकों में पहले से 80% बढ़ गई है. साल 2050 तक ये 5.12 लाख से 146% बढ़कर 13 लाख होने का अनुमान है.

भारत के संदर्भ में फैक्‍ट्स

केवल भारत की बात करें तो साल 2019 में देश में सेप्सिस से होने वाली 29.9 लाख मौतों में से 60% बैक्टीरिया संक्रमण के कारण हुईं. इनमें से करीब 10.4 लाख मौतें (Sepsis Related) एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस से जुड़ी थीं, जबकि, 2.9 लाख मौतें सीधे तौर पर AMR के चलते हुईं.

  • देश में सबसे आम पाए जाने वाले प्रतिरोधी रोगाणु ई कोली (E. Coli), क्लेबसिएला निमोनिया (Klebsiella Pneumoniae) और एसिनेटोबैक्टर बाउमानी (Acinetobacter Baumannii) है.

  • इनमें ई कोली का संबंध आंत में संक्रमण से है. क्लेबसिएला का निमोनिया और यूरिनरी ट्रैक्ट के संक्रमण से, जबकि एसिनेटोबैक्टर बाउमानी का संबंध अस्पताल में होने वाले संक्रमण से है.

ऐसे बचाई जा सकती है करोड़ों जानें

रिसर्चर्स ने बताया है कि हेल्‍थ सर्विस और एंटीबायोटिक दवाओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित हो तो साल 2025 से 2050 के बीच कुल 9.2 करोड़ लोगों की जान बच सकती है.

इस स्‍टडी में कहा गया है कि लोगों को AMR के खतरे से बचाने के लिए निर्णायक कार्रवाई जरूरी है. बेहतर स्वास्थ्य सेवा, रोकथाम और नियंत्रण के उपाय अपनाना और नई एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुंच के जरिए लोगों को इस खतरे से बचाया जा सकता है.

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