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First Woman SEBI Chief's Tenure: ताबड़तोड़ फैसले, सख्‍ती, सुधार और चुनौतियों से भरा रहा माधबी पुरी बुच का कार्यकाल

बुच के कार्यकाल में SEBI ने 180 से ज्यादा परामर्श पत्र (Consultation Paper) जारी किए, कई मार्केट रिफार्म्स लागू किए.
NDTV Profit हिंदीनिलेश कुमार
NDTV Profit हिंदी02:12 PM IST, 28 Feb 2025NDTV Profit हिंदी
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इंडियन मार्केट रेगुलेटर SEBI यानी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड की पहली महिला चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच (Madhabi Puri Buch) का तीन साल का कार्यकाल शुक्रवार को समाप्त हो गया. सरकार ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में तुहिन कांता पांडे को अगले तीन वर्षों के लिए नियुक्त किया है.

माधबी पुरी बुच ने अपने तीन साल के कार्यकाल में बड़े और साहसिक सुधार किए, जो भारतीय शेयर बाजार को आधुनिक और पारदर्शी बनाने में मददगार रहे. खासकर डेटा-संचालित और टेक्नोलॉजी-फ्रेंडली नीतियों का प्रभाव लंबे समय तक बना रहने की उम्‍मीद है. हालांकि, कुछ प्रयास पाइपलाइन में ही रह गए हैं. आइए SEBI में उनकी लीडरशिप का अवलोकन करते हैं.

सुधारों और कड़े फैसलों का दौर

बुच के कार्यकाल में SEBI ने 180 से ज्यादा परामर्श पत्र (Consultation Paper) जारी किए, कई मार्केट रिफार्म्स लागू किए और अपने कर्मचारियों के लिए भी सख्त रुख अपनाया. वो हमेशा आंकड़ों (data) को प्राथमिकता देती थीं, साथ ही वित्तीय समावेशन (financial inclusion) और छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा पर जोर देती थीं.

उनके पूर्व के चेयरपर्सन्‍स की तरह वे पारंपरिक नौकरशाह नहीं थीं, बल्कि प्राइवेट सेक्‍टर बैक्‍ग्राउंड से रही हैं. वो जटिल चीजों को सरल तरीके से समझाने के लिए विज़ुअल स्टोरीटेलिंग का उपयोग करती थीं.

जोखिम भरा ट्रेडिंग और सुधार

अगस्त 2024 में, उन्होंने फ्यूचर और ऑप्शंस ट्रेडिंग के अत्यधिक बढ़ने पर चिंता जताई. कोविड-19 महामारी के बाद भारत में रिटेल इन्‍वेस्‍टर्स के बीच सट्टा ट्रेडिंग तेजी से बढ़ गई थी, जिससे घरेलू बचत को जोखिम हो सकता था. इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बुच के नेतृत्व में कई बड़े सुधार किए गए:

  • हर एक्सचेंज पर वीकली ऑप्शन एक्सपायरी सीमित कर दी गई.

  • खरीदारों को पहले से ही प्रीमियम का भुगतान करने की अनिवार्यता लागू हुई.

इन बदलावों का असर ये हुआ कि डेरिवेटिव ट्रेडिंग का वॉल्यूम घट गया और साथ ही, एक्सचेंज और ब्रोकर्स की कमाई पर असर पड़ा.

IPO में रिकॉर्ड उछाल और नए नियम

बुच के कार्यकाल में IPO में जबरदस्त तेजी आई. 2024 में भारतीय बाजारों में 1.6 लाख करोड़ रुपये की पूंजी जुटाई गई, जो वैश्विक स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन इस उछाल के साथ कुछ जोखिम भी थे.

छोटे और मध्यम आकार की कंपनियों (SME) के IPO पर अंकुश लगाने के लिए दिसंबर 2024 में नए नियम लागू किए गए ताकि खुदरा निवेशकों को गलत आंकड़ों से गुमराह होने से बचाया जा सके.

इसके अलावा, बुच ने IPO दस्तावेजों की तेजी से समीक्षा के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग शुरू करने की घोषणा की.

AI और टेक्नोलॉजी का इस्‍तेमाल 

  • इनसाइडर ट्रेडिंग और फ्रंट-रनिंग की जांच में AI का इस्तेमाल किया गया

  • एल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algo Trading) पर सख्त निगरानी रखी गई

  • T+2 से T+1 और फिर उसी दिन (Same-Day) सेटलमेंट सिस्टम लागू किया गया

  • IPO सेटलमेंट अवधि घटाकर T+3 कर दी गई (पहले ये T+6 थी)

छोटे निवेशकों के लिए 'माइक्रो SIP'

बुच के कार्यकाल की सबसे चर्चित योजनाओं में से एक है- माइक्रो SIP स्‍कीम. इस स्‍कीम के तहत मात्र 250 रुपये/महीने से निवेश शुरू किया जा सकता है. हालांकि, SEBI ने अभी इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया है, लेकिन SBI म्यूचुअल फंड ने 17 फरवरी 2025 को इसे लागू कर दिया.

अधूरे सपने, आरोप और चुनौतियां

बुच ने ग्रे मार्केट को रेगुलेट करने और म्यूचुअल फंड व इंश्योरेंस का ज्‍वाइंट प्रॉडक्‍ट लाने की योजना बनाई थी, लेकिन ये अब तक पूरी नहीं हो पाई. उनके कार्यकाल में SEBI कर्मचारियों की नाराजगी और खुदरा निवेशकों के लिए कड़े नियमों को लेकर आलोचना भी हुई.

फर्जी रिपोर्ट्स के आधार पर शॉर्ट सेलिंग करने-कराने वाले हिंडनबर्ग से जुड़े मामले में भी उन पर आरोप लगे, जबकि कांग्रेस ने भी कुछ मामलों को उछाला. बुच पर पद का दुरुपयोग करने के भी आरोप लगे. SEBI चेयरपर्सन ने तमाम आरोपों को बेबुनियाद बताया.

तीन SEBI अधिकारियों ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि बुच की ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं उठा सकता.

एक अधिकारी ने कहा, 'बुच बहुत ईमानदार हैं, लेकिन मूर्खता को सहन नहीं करतीं. कभी-कभी उनका रवैया सख्त हो सकता है, जिससे कुछ लोग नाराज हो जाते हैं.'

SEBI के कई कर्मचारी उनके कड़े फैसलों से असंतुष्ट थे, लेकिन एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि उनकी सख्ती सही दिशा में थी.

जानकारों का मानना है कि SEBI जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्र में एक महिला चेयरपर्सन होने के कारण उन पर अतिरिक्त दबाव था. उनके हर फैसले को आलोचनात्मक नजरिए से देखा गया.

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