ट्रंप के ट्रेड से जुड़े फैसलों के चलते विदेशी निवेशकों (Foreign Investors) ने धीरे-धीरे उभरते बाजारों से पैसे निकालना शुरू कर दिया जिनमें भारत भी शामिल है. सितंबर 2024 के आखिर से 15 फरवरी 2025 तक फॉरेन पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के कस्टडी में मौजूद भारतीय एसेट्स $931.1 बिलियन से गिरकर $748.1 बिलियन तक पहुंच गए हैं. वैल्यू में $183 बिलियन की गिरावट आई है.
रुपये के आंकड़ों में समान अवधि के दौरान FPIs की वैल्यू 77.96 लाख करोड़ रुपये से घटकर 64.77 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है. इसमें 13.18 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. कस्टडी के तहत मौजूद एसेट्स में हर 100 रुपये के लिए FPIs केवल रुपये ही बचा सके. बाकी राशि गंवाई.
रुपये के आधार पर एसेट वैल्यू में गिरावट करीब 16% है. जबकि डॉलर टर्म में ये 19% है. FPIs के करीब 42% एसेट्स अंडर मैनेजमेंट अमेरिकी बाजार में हैं. इसके बाद सिंगापुर, लक्जमबर्ग, आयरलैंड और मॉरीशस के हैं. कुल मिलाकर इन देशों के पास विदेशी निवेशकों के कुल एसेट्स का 68% हिस्सा है.
FPIs इमर्जिंग मार्केट्स से पैसे निकाल रहे हैं और बेहतर रिटर्न के लिए उन्हें अमेरिकी बाजार में लगा रहे हैं. FPI एसेट वैल्यू में बदलाव तीन चीजों का काम है: हर ट्रेडिंग डे पर नेट इनफ्लो/ आउटफ्लो होना, एसेट कीमतों में गिरावट और डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट.
डॉलर में सितंबर के आखिर के बाद से करीब 3.4% की तेजी आई है. रुपये के मुकाबले डॉलर में तेजी से FPI रिटर्न की मात्रा घटी है, जब वो बिकवाली करते हैं और अपना पैसा खुद के देश में वापस ले जाते हैं.
समान अवधि के दौरान बेंचमार्क निफ्टी 50 में 11.68% की करेक्शन आई. जबकि ब्रॉडर मार्केट इंडेक्स में इस दौरान 15.28% की करेक्शन देखने को मिली. इसके मुकाबले दी गई अवधि के दौरान FPIs ने वैल्यू में 19.6% गंवाए हैं. 30 सितंबर के बाद FPIs में भी बड़ा आउटफ्लो देखने को मिला है.
सेकेंडरी मार्केट में उन्होंने 2.93 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की. जब प्राइमेरी मार्केट की भागीदारी को शामिल कर देते हैं, तो ये राशि 2.06 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाती है. डॉलर की टर्म में उन्होंने 30 सितंबर के बाद से $159.12 बिलियन गंवाए हैं.
FPIs को फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर का करीब 30% एक्सपोजर है. इस सेक्टर के लिए AUC यानी एसेट अंडर कस्टडी में 18% की गिरावट आई है. इसके बाद ऑयल और गैस आता है, जहां AUC में 13.6% की गिरावट है. ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट सेक्टर की एसेट वैल्यू में 10.9% की गिरावट है. इसके बाद FMCG, पावर और कैपिटल गुड्स सेक्टर है.