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राइट्स इश्यू को ज्यादा आसान बनाने के लिए SEBI ने सुझाए कई तरीके, मर्चेंट बैंकर की जरूरत खत्म करने का प्रस्ताव

प्रस्ताव में कंपनियों को अपनी ऑब्जरवेशन के लिए SEBI के पास ड्राफ्ट लेटर ऑफ ऑफर दाखिल करने की अनिवार्यता खत्म करने की बात कही.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी10:41 AM IST, 21 Aug 2024NDTV Profit हिंदी
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पैसे जुटाने के लिए राइट्स इश्यू के विकल्प को ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए मार्केट रेगुलेटर SEBI ने मौजूदा रेगुलेटरी फ्रेमवर्क में बदलाव करने के लिए कुछ प्रस्ताव दिए हैं.

मार्केट रेगुलेटर की ओर से दिए गए इन प्रस्तावों में एक ये है कि कंपनियों के लिए SEBI के पास 'ड्राफ्ट लेटर ऑफ ऑफर' देने का जरूरत को खत्म कर दिया जाए.

इसकी जगह पर SEBI ने सुझाव दिया है कि राइट्स इश्यू से जुड़ी सिर्फ जरूरी जानकारियां दी जाएं. जैसे- इश्यू लाने का मकसद क्या है, प्राइसिंग, रिकॉर्ड डेट और एंटाइटलमेंट रेश्यो क्या है. जिससे प्रोसेस आसान होगा और मंजूरियां मिलने में भी कम समय लगेगा.  

अभी का प्रोसेस बहुत ही थका देने वाला है और मर्चेंट बैंकरों से डिटेल्ड ऑफर डॉक्यूमेंट्स बनवाने में 50 से 60 दिन लग जाते हैं. कोई समयसीमा नहीं होने की वजह से पैसे जुटाने में भी देरी का सामना करना पड़ता है.

SEBI का ये प्रस्ताव पूरी प्रक्रिया को आसान और तर्कपूर्ण बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है. जिसमें कुछ डॉक्यूमेंट्स की जरूरतों को भी हटाने की बात कही गई है.

राइट्स इश्यू के लिए अभी तक 50 करोड़ रुपये से कम के इश्यू साइज के लिए मर्चेंट बैंकरों की अनिवार्यता नहीं है, SEBI ने अब इसे आगे बढ़ाकर मर्चेंट बैंकरों की जरूरत को ही खत्म करने का प्रस्ताव दिया है.

ऐसे कई काम जो मौजूदा समय में मर्चेंट बैंकर्स संभाल रहे हैं, SEBI उन्हें इश्युअर्स, रजिस्ट्रार ऑफ इश्यू और स्टॉक एक्सचेंज को देना चाहती है. इन कामों में ड्यू डिलिजेंस सर्टिफिकेट जमा करना, ऑफर डॉक्यूमेंट ड्राफ्ट करना, इंटरमीडियरी चुनना और इश्यू की मार्केटिंग करना शामिल हैं.

SEBI ने प्रस्ताव में कहा है कि राइट्स इश्यू एस्क्रो अकाउंट को मैनेज करने का राइट्स DSE’s को ट्रांसफर किया जाना चाहिए, जबकि रजिस्ट्रार, सर्टिफिकेट भेजने, रिफंड और एप्लीकेशन मनी को अनब्लॉक करने की जिम्मेदारी लेंगे.

रेगुलेटर ने ये भी प्रस्ताव दिया कि स्टॉक एक्सचेंज और डिपॉजिटरीज को एप्लीकेशन्स के वैलिडेशन के लिए एक रियल-टाइम सिस्टम तैयार करना चाहिए. जो प्रस्ताव के 6 महीने के भीतर ही काम करना शुरू कर दे.

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