शेयर ब्रोकर के पास क्लाइंट्स की वित्तीय क्षमता से जुड़े दस्तावेज होने चाहिए, मार्केट रेगुलेटर SEBI का ये फरमान देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज NSE के रेवेन्यू पर असर डाल सकता है.
जहां सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी SEBI ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस सेगमेंट में रिटेल भागीदारी को रोकने से साफ इनकार कर दिया है. वहीं, वो इसका आकलन कर रहा है कि क्या 17 मई के मास्टर सर्कुलर को रिस्क के आधार पर क्लाइंट्स का विश्लेषण करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.
SEBI का लक्ष्य रिटेल निवेशकों को जोखिम भरे डेरिवेटिव्स पर दांव लगाने से रोकना है. ऐसा इसलिए, क्योंकि मार्केट रेगुलेटर के एक सर्वे के मुताबिक FY19 से FY22 तक F&O बाजार में 10 में 9 इंडिविजुअल ट्रेडर्स ने पैसे गंवाए हैं.
हालांकि, इस कदम से NSE के वॉल्यूम और रेवेन्यू को भी नुकसान पहुंचेगा. उसकी पहली तिमाही की अर्निंग कॉल के मुताबिक, एक्सचेंज को अपने ट्रांजैक्शन चार्जेज में से करीब 82% ऑप्शंस ट्रेडिंग से ही मिलते हैं और लगभग 9% इक्विटी कैश मार्केट से मिलतें हैं.
डेरिवेटिव्स वॉल्यूम में गिरावट से NSE के फाइनेंशियल्स पर सीधा असर पड़ता है. उसका F&O वॉल्यूम तिमाही-दर-तिमाही 8% गिरा है. हालांकि, कैश मार्केट में ये 18% बढ़ा है. फ्यूचर्स के लिए रेवेन्यू में गिरावट आई है. जबकि ऑप्शंस से रेवेन्यू बढ़ा है. जून में, इक्विटी डेरिवेटिव्स सेगमेंट में औसत डेली टर्नओवर में मासिक आधार पर 3.2% की गिरावट आई है. जबकि, एक साल पहले के मुकाबले ये 7.6% बढ़कर 1,56,500 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है.
सिक्योरिटी ट्रांजैक्शंस टैक्स (STT) में बढ़ोतरी के बाद, NSE को ट्रांजैक्शन चार्ज से होने वाली आय में 6% की कमी आई है. एक्सचेंज ने अर्निंग कॉल में कहा कि उसका ऑप्शंस ट्रेडिंग के लिए स्लैब बेस्ड ट्रांजैक्शन चार्ज है.
सरकार F&O सेगमेंट में रिटेल भागीदारी को कम करने की कोशिश कर रही है. NSE के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर और मैनेजिंग डायरेक्टर आशीष कुमार चौहान ने कहा कि इस साल सरकार ने इक्विटी डेरिवेटिव्स पर सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स को बढ़ा दिया है.
SEBI ने क्लाइंट्स के रिस्क-बेस्ड एसेसमेंट के लिए ब्रोकर्स को जिम्मेदार बनाने को लेकर कई कदम उठाए हैं. इससे डेरिवेटिव ट्रेडिंग वॉल्यूम कम होने की संभावना है. चौहान ने कहा कि ये देखना होगा कि डेरिवेटिव्स सेगमेंट के लिए किस तरह के अतिरिक्त रेगुलेशंस लाए जाते हैं. NSE ने कहा कि वो ट्रेडिंग के घंटों को बढ़ाने के लिए बाजार भागीदारों के साथ चर्चा कर रहा है. हालांकि, इस मामले में फैसला नहीं लिया गया है.
कोविड के दौरान ट्रेडिंग में दिलचस्पी काफी बढ़ी थी, क्योंकि वर्क फ्रॉम होम कर रहे निवेशकों ने इक्विटी मार्केट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. जब ये खत्म हुआ और वर्क फ्रॉम ऑफिस शुरू हुआ तो इसमें गिरावट देखने को मिली.
कैश मार्केट में हिस्सा लेने वाले रिटेल निवेशक जनवरी 2020 में 30 लाख से बढ़कर जनवरी 2022 में करीब 1.2 करोड़ पर पहुंच गए. वहीं, अप्रैल 2023 तक ये गिरकर 67 लाख पर पहुंच गए. उसके बाद लगातार दो महीने बढ़ोतरी के साथ जून 2023 तक ये 89 लाख पर पहुंच गए, जो 6 महीने में सबसे ज्यादा है.
NSE के मुताबिक, 2022 और 2023 में गिरावट के बावजूद सेकेंडरी मार्केट में ट्रेड करने वाले एक्टिव निवेशकों की संख्या महामारी के पहले के स्तर से बेहतर बनी हुई है.
इक्विटी डेरिवेटिव्स सेगमेंट में FY19 से FY22 तक रिटेल भागीदारी 500% बढ़ी है. इसमें रिटेल निवेशकों की संख्या जून 2023 में 34 लाख रही है, जो FY23 के दौरान के मासिक औसत 28 लाख से ज्यादा है.