दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने सरकार द्वारा सभी मेडिकल डिवाइस को 'ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट' के तहत ड्रग्स के तौर पर वर्गीकृत करने के फैसले पर मुहर लगा दी है.
जस्टिस राजीव शकधर और तारा वितस्ता गंजू की सदस्यता वाली डिवीजन बेंच ने कहा कि सरकार के पास ये फैसला लेने का अधिकार है. बेंच ने ये भी कहा कि ऐसा कर सरकार अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करवाना चाहती है और मरीजों के अधिकारों की सुरक्षा चाहती है.
सरकार द्वारा इस संबंध में 2020 और 2018 में दिए गए आदेशों के खिलाफ सर्जिकल मैन्युफैक्चर्रस एंड ट्रेडर एसोसिएशन ने कोर्ट में अपील लगाई थी, जिस पर 1 सितंबर को ये आदेश आया है.
2018 के सरकार के नोटिफिकेशन से चार मेडिकल डिवाइस- नेबुलाइजर, ब्लड प्रेशर मॉनिटर्स, डिजिटल थर्मामीटर्स और ग्लूकोमीटर्स को एक्ट के तहत डिफाइन 'ड्रग' की श्रेणी में डाल दिया गया था. वहीं 2020 के नोटिफिकेशन में स्वास्थ्य मंत्रालय ने लोगों और जानवरों के ऊपर इस्तेमाल होने वाले मेडिकल उपकरणों को ड्रग मानने का आदेश दिया था.
एसोसिएशन का कहना था कि हितधारकों से बिना चर्चा के ये नोटिफिकेशन जारी किए गए थे और इनसे माइक्रो, स्मॉल और मी़डियम एंटरप्राइजेज पर गैरजरूरी आर्थिक बोझ लादा गया. एसोसिएशन ने कहा कि इनमें से कई डिवाइस को दूसरे कानूनों और पैमानों के अंतर्गत पहले से ही नियमित किया जाता है.
बेंच ने कहा कि सरकार ने पहले भी ऐसा किया है. नोटिफिकेशन के जरिए सरकार पहले भी 15 अलग-अलग तरह के मेडिकल डिवाइस को ड्रग्स के तौर पर नोटिफाई कर चुकी है. इसलिए ये कोई नया फैसला नहीं है.
बेंच ने कहा कि 2018 का नोटिफिकेशन वैध है और इसकी सिर्फ इसलिए आलोचना नहीं की जानी चाहिए कि इसने दो डिवाइस- नेबुलाइजर और ग्लूकोमीटर को ड्रग कैटेगरी में जोड़ दिया,जिनके ऊपर जुलाई 2018 में ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड की 80वीं बैठक में चर्चा नहीं की गई थी.