पूर्व हैवीवेट विश्व बॉक्सिंग चैम्पियन माइक टायसन एक समय अपने जीवनकाल में भारत के दो स्थानों पर जाने के लिए विशेष तौर पर इच्छुक थे. एक ताजमहल और दूसरा धारावी.
दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती के तौर पर पहचान रखने वाली धारावी से मेरा पहला वास्ता '70 के दशक के अंत में तब पड़ा, जब देश के तमाम युवाओं की तरह मैंने भी जीवन में कुछ कर गुजरने का सपना लिए मुंबई में कदम रखा. ये सपना हीरों के कारोबार में कुछ बड़ा कर दिखाने का था.
आपाधापी के उस दौर में ही मेरा वास्ता धारावी से भी पड़ा. एक ऐसा रहवासी इलाका, जहां इंसानों की भीड़ घोर अमानवीय और प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हुए अपने आपको और अपने सपनों को जिंदर रखने के लिए लगातार संघर्षरत रहती है.
उस समय भी धारावी एक ऐसा जन समुद्र था, जिसमें देशभर की विविध मान्यताएं, संस्कृतियां और भाषाएं मिलती जाती थीं और फिर एकसार भी हो जाती थीं. 'गुदड़ी के लाल' की तर्ज पर येां की बेहद संकरी और लगभग हवाविहीन गलियों में आहत और अचंभित कर देने वाले दृश्य आम हैं.
यहां रहने वालों से आपके सवाल का उत्तर देश की किसी भी भाषा में तुरंत मिल जाएगा, लेकिन उन्हें साफ-सफाई, शुद्ध पानी और स्वच्छ हवा येां कब मिलेगी, इसका उत्तर दशकों तक उन्हें नहीं मिला. धारावी की इस हकीकत ने मुझे हमेशा परेशान भी किए रखा और प्रेरित भी किया.
दरअसल, ये जीवन की जमीनी सच्चाई से परिचय का बड़ा अवसर रहा. इंसानी जीवन किन विषमताओं, परेशानियों, कठिनाइयों से गुजरता हुआ अपने वजूद को बचाने और संवारने के लिए किस हद तक संघर्ष कर सकता है, ये धारावी की गलियों से गुजरकर सहजता से जाना जा सकता है.
धारावी दुनिया में ख्यात है, लेकिन सकारात्मक नहीं, नकारात्मक लिहाज़ से. दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती कहलाना हमारे लिए लज्जा का विषय है. वोां नारकीय जीवन जी रहे लोगों को इस त्रासदी से उबारने की ज़िम्मेदारी सरकार और समाज के सामर्थ्यवान तबके को मिलकर उठानी ही चाहिए, ये विचार मेरे दिमाग में तब-तब हथौड़े की तरह बजता था, जब-जब मैं विमान से मुंबई एयरपोर्ट पर उतर रहा होता था.
लेकिन कब और कैसे...? इस सवाल का उत्तर खोज पाने में असफलता ही हाथ लगती थी.
देश प्रगति के नए मुकाम हासिल करता रहेगा और धारावी में हालात बद से बदतर होते रहेंगे?
ये लाखों परिवार क्या ऐसा ही नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर रहेंगे?
मानवीय गरिमा क्या सपने तक ही सीमित रहेगी?
ऐसे तमाम सवालों का जब जवाब देने का समय आया, तो बिना किसी झिझक के हमने कदम बढ़ा लिया. सरकार ने धारावी के कायाकल्प को लेकर जैसे ही कार्यक्रम को प्रस्तुत किया, तो मुंबई से अत्यधिक लगाव और इस इलाके के हालात को लेकर दशकों से मन में मौजूद बेचैनी का नतीजा था कि हमने अन्य के मुकाबले बहुत ज़्यादा बोली लगाकर इस परियोजना को हासिल किया.
ये हमारे लिए सिर्फ एक व्यापारिक परियोजना नहीं है, बल्कि उससे कहीं बढ़कर है. सच कहूं, तो इसके माध्यम से समाज को वो सब कुछ लौटाने का विनम्र प्रयास है, जो हमारे समूह ने विगत दशकों में समाज से ही प्राप्त किया है.
इस पुनर्वास कार्यक्रम के माध्यम से देश की संवेदनशीलता का नया अध्याय शुरू हो रहा है. ये हम सबके दृढ़ संकल्प और प्रयास से मानवीय गरिमा, सुरक्षा और समावेश वाली एक नई धारावी के निर्माण करने का ऐतिहासिक अवसर है. अब जबकि हम इस पूरी तरह अनजान सफर, लेकिन निर्धारित लक्ष्य पर आगे बढ़ने की शुरुआत कर रहे हैं, हमें आगे आने वाली भारीभरकम चुनौतियों का पूरा अहसास है.
कुछ लोग इस परियोजना की तुलना 1960 के दशक में सिंगापुर के आवास संकट को हल करने में सफल रहे ट्रेलब्लेज़िंग प्रोजेक्ट से करते हैं, लेकिन धारावी तीन कारणों से अपने आप में एक अनूठा प्रोजेक्ट है.
सबसे पहली बात ये कि ये दुनिया के सबसे बड़े शहरी पुनर्वास और पुनरुद्धार प्रोजेक्टों में से है. इसमें लगभग 10 लाख लोगों का पुनर्वास किया जाना है. 10 लाख तो विश्व के तमाम महत्वपूर्ण शहरों की आबादी तक नहीं होती है.
दूसरा ये कि इस दौरान न सिर्फ आवासीय इकाइयों, बल्कि विभिन्न आकार और पैमानों के अलग-अलग व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का पुनर्वास भी होगा. धारावी में जीवन निर्वाह के लिए चल रहे तमाम काम-धंधों के पूरे परिवेश और कारोबारी ताने-बाने को व्यवस्थित किया जाएगा, ताकि वो और बेहतर अवसर व साधनों के साथ जीवन जी सके.
तीसरा, प्रोजेक्ट का लक्ष्य व्यापक और समग्र पुनर्विकास का होगा, क्योंकि इसमें पात्र और अपात्र, दोनों तरह के निवासियों की आवास और पुनर्वास संबंधी ज़रूरतों को पूरा किया जाएगा.
हम एक ऐसे विश्वस्तरीय उपनगर का निर्माण करेंगे, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल और प्रेरणा का कारण रहे. 21वीं सदी भारत की सदी है, इसका अहसास इस परियोजना से दुनिया को हो सकेगा.
हम एक ऐसा संस्थागत तंत्र बनाने का प्रयास करेंगे, जिससे न सिर्फ धारावी के लोगों की, बल्कि अपनी-अपनी असीमित प्रतिभा और जीवट के लिए ख्यात प्रत्येक मुंबईकर की भावनाओं को धारावी के कायाकल्प की इस यात्रा में सहज रूप से जोड़ सकें. नई धारावी, पुरानी धारावी की मौलिकता और सामूहिकता की भावना को नष्ट किए बिना मुंबई के सर्वोत्कृष्ट चरित्र - भावना, धैर्य, एकता, विविधता, रंग और दृढ़ संकल्प को प्रदर्शित करेगी.
हम धारावी में जीवन और जीविका, दोनों को व्यवस्थित करने की समग्र रूप से शुरुआत कर रहे हैं. ये मेरी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता है कि धारावीवासियों के घरों में जो आज नहीं है- गैस, पानी, बिजली, साफ-सफाई और जल निकासी, स्वास्थ्य देखभाल और मनोरजन की सुविधाएं और खुली जगह, वो हम मुहैया कराएंगे.
हम धारावी वासियों के लिए विश्वस्तरीय अस्पताल और स्कूल, दोनों की व्यवस्था भी करेंगे. धारावीवासी अपने पुराने घरों से तभी स्थानांतरित होंगे, जब उनके रहने की वैकल्पिक व्यवस्था तैयार होगी. अभी गलियों में घुसते ही नाक पर रूमाल रखने को विवश कर देने वाली सड़ांध भरी धारावी अतीत का हिस्सा बन गुम हो जाएगी, इसके स्थान पर एक नई धारावी जन्म लेगी, जो गर्व से गुनगुनाएगी.
पुनर्वास के साथ आजीविका भी बड़ी चुनौती है. हम यहां मौजूद तमाम छोटे-छोटे उद्योगों को समर्थन और सुदृढ़ता देकर धारावी का कायाकल्प एक आधुनिक बिज़नेस हब के रूप में करना चाहते हैं. इस कार्य हेतु नए ज़माने की नौकरियों के लिए इन लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा, जिसमें युवाओं और महिलाओं पर मुख्य फोकस होगा.
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञों और सिविल सोसायटी की मदद लेकर बहु-आयामी रणनीति को अमल में लाया जाएगा. इसमें कौशल विकास आधारित ट्रेनिंग सेंटर, उत्पाद केंद्रित और सेवा केंद्रित उद्यमिता मॉडल्स के लिए साझे सुविधा केंद्र, R&D सेंटर, डेटा सेंटर और MSME हेल्पडेस्क आदि का समन्वय होगा.
धारावी के कायाकल्प के प्रयास नए नहीं हैं, बल्कि इनका लगभग आधी शताब्दी लंबा इतिहास है. इस बार, पहले के अनुभवों के आधार पर टेंडर डिजाइन में किए गए कुछ स्मार्ट बदलावों ने बोली लगाने वालों की भागीदारी और इसके सफल क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया है.
उदाहरण के लिए, इस टेंडर में अपात्र किरायेदारों के पुनर्वास की भी व्यवस्था है. धारावी से सटी रेलवे की 45 एकड़ भूमि को शामिल करने से पात्र लोगों का वोीं के वोीं पुनर्वास सुनिश्चित हो सका है और प्रोजेक्ट रीडेवलपमेंट का काम तत्काल शुरू किया जाना संभव हो रहा है.
ये उल्लेखनीय है कि ये ऐतिहासिक प्रोजेक्ट महाराष्ट्र की विभिन्न राज्य सरकारों और राज्य के सभी राजनीतिक दलों के अलावा मौजूदा केंद्र सरकार (जिसने रेलवे की जमीन उपलब्ध कराई) के समर्थन और सक्रिय सहयोग का परिणाम है.
हमारी टीम को और मुझे अहसास है कि धारावी प्रोजेक्ट का डिज़ाइन और कार्यान्वयन एक चुनौती है, जो बहुत विशाल स्तर की है. हम ये भी जानते हैं कि ये प्रोजेक्ट हमारे लचीलेपन, हमारी क्षमता और हमारे निष्पादन कौशल के अंतिम बिन्दु तक की परीक्षा होगा. इतने वर्षों में, अदाणी समूह ने अपनी अत्यधिक प्रेरित, अनुभवी और ऊर्जावान टीम की मदद से एक समाधान-परक संस्कृति विकसित की है. मुझे विश्वास है कि सभी हितधारकों के समर्थन के साथ हम इतिहास रचेंगे और धारावी, मुंबई और भारत को गौरवान्वित करेंगे.
हमारा काम पूरा होने के बाद, अगर माइक टायसन फिर धारावी का दौरा करते हैं, तो वो उस धारावी को पहचान नहीं पाएंगे, जो उन्होंने पहले देखी थी. लेकिन मुझे विश्वास है कि उन्हें धारावी की आत्मा फिर भी हमेशा की तरह जीवंत मिलेगी.
ईश्वर ने चाहा तो डैनी बॉयल जैसे लोगों को पता चल जाएगा कि नई धारावी करोड़पति पैदा कर रही है, वो भी स्लमडॉग कहलाए बिना. जिन्हें हमारे इस भरोसे पर शक है, तो उनके लिए तमाम भारतवासियों की ओर से प्रख्यात कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां...
"कौन कहता है, आसमां में सुराख हो नहीं सकता...
एक पत्थर तो जरा तबीयत से उछालो यारों..."
लेखक अदाणी समूह के चेयरमैन हैं.
डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.