Income Tax Return NIL-ITR Explained: इनकम टैक्स रिटर्न की आखिरी तारीख 31 जुलाई है. यानी अब गिनती के दिन शेष रह गए हैं. इनकम टैक्स को लेकर ज्यादातर लोगों का मानना है कि जिनकी आय 5 लाख रुपये से कम है, उन्हें ITR दाखिल करने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि उन्हें टैक्स नहीं देना पड़ता. लेकिन मामला कुछ और ही है.
दरअसल, वास्तविक छूट की सीमा केवल 2.5 लाख रुपये तक की आय के लिए है. बाकी IT एक्ट की धारा 87A के तहत सरकार 12,500 रुपये की छूट देती है, यानी 2.5 लाख रुपये की आय पर दिया जाने वाला टैक्स माफ हो जाता है. ऐसे में उनके लिए भी ITR दाखिल करना जरूरी समझा जाता है और इसके कई फायदे भी होते हैं.
ये तो हुई ओल्ड टैक्स रिजीम की बात. न्यू टैक्स रिजीम में इनकम टैक्स से छूट की सीमा 7 लाख रुपये है. लेकिन टैक्स छूट के बावजूद लोगों को जीरो ITR दाखिल करना होता है. हालांकि उन्हें टैक्स के तौर पर एक भी पैसा नहीं देना होता. इसे NIL ITR या जीरो रिटर्न कहा जाता है.
गुरुग्राम स्थित एक बड़ी फर्म में ACFO और CA अमित कुमार ने BQ हिंदी से बातचीत के दौरान इस बारे में विस्तार से बताया.
जीरो रिटर्न (NIL ITR ) से मतलब ऐसे ITR से है, जहां टैक्सपेयर्स पर कोई टैक्स देनदारी नहीं होती. जब भी किसी टैक्सपेयर की आय इनकम टैक्स की छूट की सीमा से कम होती है तो उन पर टैक्स शून्य बनता है.
ये तब हो सकता है जब किसी व्यक्ति की आय, मूल छूट सीमा (Basic Exemption Limit) से कम हो या जब नेट इनकम, कटौती और छूट का दावा करने के बाद मूल छूट सीमा से नीचे हो जाती है.
शॉर्ट में कहा जाए तो वे टैक्सपेयर्स जिनकी टैक्स की देनदारी शून्य होती हैं, उनकी ओर से फाइल किए गए इनकम टैक्स रिटर्न को NIL ITR कहा जाता है.
NIL रिटर्न, आयकर विभाग को ये दिखाने के लिए दाखिल किया जाता है कि आपकी आय, टैक्सेबल इनकम से नीचे है, इसलिए आपने टैक्स का भुगतान नहीं किया है.
जीरो ITR दाखिल करने की पात्रता मुख्य रूप से टैक्सपेयर्स की टैक्स देनदारी सीमा से नीचे आने वाली इनकम पर आधारित होती है.
जीरो ITR दाखिल करने से वित्तीय लेनदेन और आय विवरण का एक तरह से वैलिड डाक्युमेंटेशन यानी वैध दस्तावेजीकरण हो जाता है, जो भविष्य में या किसी संभावित ऑडिट के लिए उपयोगी हो सकता है.
यदि आप इस साल से ही ITR की शुरुआत कर रहे हैं और आपकी कुल आय, टैक्सेबल इनकम लिमिट से कम है, लेकिन आप इसका रिकॉर्ड रखना चाहते हैं, तो आपको NIL रिटर्न दाखिल करना होगा.
आप कई वर्षों से अपना आयकर रिटर्न दाखिल कर रहे थे और इस वर्ष 'टैक्सेबल इनकम लिमिट' से नीचे आ गए हों तो आपको NIL ITR दाखिल करना चाहिए.
भले ही आपकी इनकम, टैक्स लिमिट से कम हो, जीरो ITR आपकी आय के प्रमाण के रूप में भी कार्य करता है. ये लोन, वीजा या वैसे अन्य वित्तीय लेनदेन के लिए आवेदन करते समय सहायक हो सकता है, जिसके लिए इनकम वेरिफिकेशन जरूरी होता है.
अब जीरो रिटर्न भरने के फायदों के बारे में भी जान लीजिए.
जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा, इनकम टैक्स रिटर्न, आय प्रमाण के रूप में काम करता है. इससे लोने देने वाले बैंकों या NBFC से लोन पाना आसान हो जाता है. जब आप ITR फाइल करते हैं तो ये इस बात का सबूत होता है कि आपकी ओर से आय अर्जित की जा रही है. इससे आपकी क्रेडिट प्रोफाइल बनती है. ITR आपकी साख स्थापित करने में मदद करती है, जो लोन स्वीकृति की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कारक है.
कुछ स्कॉलरशिप या फेलोशिप प्रोग्राम्स के लिए आय की सीमा एक महत्वपूर्ण शर्त होती है. जैसे कि कम आय वाले परिवारों के सदस्यों को UGC की ओर से मिलने वाली नेशनल रिसर्च फेलोशिप. ऐसे मामलों में ITR एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित होता है. CA अमित कुमार बताते हैं, 'भले ही परिवार की आय मूल छूट सीमा से कम हो, ITR दाखिल करने से छात्रवृत्ति आवेदन प्रक्रिया में मदद मिल सकती है.'
यदि कोई टैक्सपेयर्स TDS कटौती (स्रोत पर टैक्स कटौती) को रोकने के लिए फॉर्म 15G/H जमा करने में विफल रहता है, तो जीरो रिटर्न दाखिल करने से उनकी नियोक्ता कंपनी द्वारा काटी गई TDS राशि की वापसी का दावा किया जा सकता है. कटी गई राशि रिफंड के तौर पर उनके खाते में वापस आ जाती है.
कई देशों का वीजा लेने के लिए ITR की आवश्यकता होती है. विदेश यात्रा के लिए वीजा अधिकारी आम तौर पर पिछले कुछ वर्षों के ITR की मांग कर सकते हैं. ऐसा व्यक्ति का इनकम-लेवल सत्यापन के लिए जरूरी हो सकता है. वीजा आवेदन के समय बैंक स्टेटमेंट, ITR और अन्य फाइनेंशियल डाॅक्युमेंट्स के साथ एप्लीकेशन जमा करना आवश्यक होता है. अगर आप विदेश जाने की योजना बना रहे हैं तो ITR भर दीजिए. इससे आपके लिए वीजा लेना आसान हो सकता है.
कुछ मामलों में, किसी व्यक्ति या व्यवसाय को वित्त वर्ष के दौरान घाटा हो सकता है. ऐसे में जीरो रिटर्न फाइल करके वो इस घाटे को भविष्य के वर्षों में आगे बढ़ा सकते हैं. नुकसान की राशि को भविष्य की टैक्सेबल इनकम के अगेन्स्ट एडजस्ट किया जा सकता है, जिससे बाद के वर्षों में इनकम जेनरेट होने पर आपकी टैक्स लायबिलिटी कम हो जाएगी.